पासवर्ड हो जाएंगे बीते जमाने की बात
फिंगरप्रिंट स्कैनर
इस टेक्नोलॉजी को पॉप्युलर किया था एप्पल ने, लेकिन आज के दौर में लगभग हर स्मार्टफोन कंपनी अपने स्मार्टफोन में इस टेक्नोलॉजी को यूज करती है। स्मार्टफोन में ही नहीं बल्कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मास्टकार्ड में होने लगा है। मास्टरकार्ड और मश्हूर बायोमेट्रिक कंपनी Zwipe एक साथ आए और उन्होंने दुनिया का पहला फिंगरप्रिंट ऑथेंटिकेटेड कार्ड बनाया। तो अब कह सकते है कि वो दिन दूर नहीं जब पासवर्ड याद रखने का झंझट खत्म हो जाएगा।
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वॉइस रेकिग्निशन
ये टेक्नोलॉजी आवाज के अलग-अलग खासियत जैसे की पिच, रेंज आदि को समझ कर डिवाइस की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। ये बेहद ही खास टेक्नोलॉजी है जिसमें पासवर्ड या यूजरनेम का कोई भी चक्कर नहीं रहता है।
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रेटीना रेकिग्निशन
आपको पता है ये टेक्नोलॉजी 1980 में ही डेवेलप हो गई थी। ये आंखों में मौजूद ब्लड वैसल्स को रिग्कनाइज करता है। हाल ही में सैमसंग ने अपने नोट 7 में आईरिस स्कैनर टेक्नोलॉजी को यूज किया है। वहीं जापान में Telco NTT DoCoMo कंपनी और फोन बनाने वाली कंपनी Fujitsu ने एक ऐसा स्मार्टफोन लॉन्च किया है जो मोबाइल पेमेंट के लिए यूजर्स के आईरिस को स्कैन करता है।
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हार्टबीट रेकिग्निशन
ये टेक्नोलॉजी बाकि टेक्नोलॉजी से थोड़ी कॉमप्लेक्स है और यही वजह है कि ये अभी ज्यादा पॉप्युलर नहीं है। लेकिन हो सकता है कि ये टेक्नोलॉजी समय के साथ प्रचलित हो जाए।
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फेशियल बायोमेट्रिक्स
ये टेक्नोलॉजी चेहरे के हाव भाव देखकर खुद ब खुद डिवाइस को अनलॉक कर देगा। Finnish की कंपनी Uniqul ने ऐसा सिस्टम डेवेलप कर लिया है जिससे सारे पेमेंट चेहरे के स्ट्रक्चर को पढ़कर हो जाएगा।

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