Agency: कारगिल वॉर के दौरान एक समय ऐसा आया, जब इंडियन फोर्सेस के निशाने पर पाक के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ थे। लेकिन ये दोनों हमले में बाल-बाल बच गए। इंडियन गवर्नमेंट के एक दस्तावेज से इस बात का खुलासा हुआ है। इंडिया और पाकिस्तान के बीच कारगिल वॉर मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए था। इंडियन मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक कारगिल वॉर में इंडियन एयरफोर्स के जगुआर का निशाना चूक गया, नहीं तो नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ तभी एक झटके मारे गए होते।

 

क्या था मामला?
कारगिल वॉर के दौरान इंडियन एयर फोर्स के एक जगुआर ने एलओसी के ऊपर उड़ान भरी। इसका उद्देश्य पाकिस्तानी आर्मी के एक ठिकाने पर लेजर गाइडेड सिस्टम से बमबारी करने लिए टारगेट को सेट करना था। इसके पीछे आ रहे दूसरे जगुआर को बमबारी करनी थी। लेकिन शायद पवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ की सांसे बाकी थीं। इसलिए दूसरा जगुआर निशाने से चूक गया और उससे लेजर बास्केट के बाहर बम गिरा। इससे वो ठिकाना बच गया, जहां परवेज और नवाज मौजूद थे। दस्तावेज के अनुसार, जब भारतीय विमान पाकिस्तानी ठिकाने पर निशाना लगा रहा था, तब नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ वहां मौजूद थे। दरअसल, इस हादसे पर व्यापक प्रतिक्रिया के डर से अभी तक इस मामले को सार्वजनिक नहीं किया गया था।

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एक फैसले से मिला जीवनदान
खबर के मुताबिक, इंडियन गवर्नमेंट के इस दस्तावेज में लिखा है कि 24 जून को जगुआर एसीएलडीएस ने प्वाइंट 4388 पर निशाना साधा। पायलट ने एलओसी के पार गुलटेरी को लेजर बॉस्केट में चिह्नित किया, लेकिन बम सही निशाने पर नहीं गिरा क्योंकि उसे लेजर बॉस्केट से बाहर गिराया गया था। बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि हमले के समय पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ उस समय गुलटेरी ठिकाने पर मौजूद थे। दस्तावेज के अनुसार जब पहले जगुआर ने निशाना साधा तब तक ये खबर नहीं थी कि वहां पाकिस्तानी पीएम शरीफ और मुशर्रफ व डिफेंस सेक्रेटरी इफ्तिकार अली मौजूद हैं। हालांकि एक एयर कमाडोर जो उस समय एक उड़ान में थे ने पायलट को बम न गिराने का निर्देश दिया जिसके बाद बम को एलओसी के निकट इंडियन इलाके में गिरा दिया गया।


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उसके बाद क्या हुआ था?
यह घटना 24 जून 1999 की है। एक ओर, जहां इंडिया ने नवाज और उनके सिपहसलारों को निशाने पर ले रखा था, वहीं दूसरी ओर नवाज की ओर से दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक डायलॉग की शुरुआत हुई जिसके बाद नवाज ने इस मामले में इंडिया संग रिटैलिएट कर लिया। इसी के बाद 25 जून को इंडियन मीडिया में खबर आई कि पाकिस्तान ने बातचीत के जरिए मामले का हल निकालने की वकालत की है जिसके बाद 26 तारीख को आखिरी इंडियन चौकी पर दोबारा कब्जा जमाने के बाद इंडिया ने वॉर खत्म होने की घोषणा कर दी। गौरतलब है इंडियन एयरफोर्स के इन एयरक्राफ्ट्स ने आदमपुर एयरबेस से उड़ान भर कर एलओसी के पास पाक के गुलटेरी बेस को टारगेट कर रखा था। हालांकि, इंडियन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशन की परमीशन नहीं थी। हो सकता है इसी कारण ऐन मौके पर टारगेट को छोड़ दिया गया हो। खैर, उस दिन अगर ये हमला हो जाता तो निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाता जिसमें लाखों लोग मारे जाते। अब इसे चूक कहिए या फिर कोई संयोग, इस एक घटना ने कई दूरगामी परिणामों से बचा लिया। 

 

कारगिल वॉर: एक नजर - क्या था कारगिल वॉर?
इंडिया और पाकिस्तान के बीच कारगिल वॉर मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए था। पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने एलओसी पार करके इंडिया की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन पाक को मुंह की खानी पड़ी। पाक की ओर से परवेज मुशरर्फ तो इंडिया की ओर से वेद प्रकाश मलिक ने युद्ध का नेतृत्व किया।


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क्या था पाक का दावा?
पाकिस्तान ने दावा किया कि लडऩे वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी थे। उनके मुताबिक, ये थर्ड पार्टी इंसर्जेंसी थी जिसके उनका कोई वास्ता नहीं था।

 

क्या थी सच्चाई?
लेकिन वॉर में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी।

5,000

घुसपैठिए इस जंग में शामिल थे पाक की ओर से

30,000

इंडियन सोल्जर्स ने लिया जंग में हिस्सा

1000

से ज्यादा घुसपैठिए और पाक परस्त सैनिक मारे गए युद्ध में

527

इंडियन सोल्जर्स हुए जंग में शहीद

National News inextlive from India News Desk

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