उत्तराखंड मामले को लेकर हाईकोर्ट जाने की तैयारी में

-कॉलोनियों के बटवारे को 15 मई को हुए द्विपक्षीय समझौते से पीछे हटा उत्तर प्रदेश

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DEHRADUN: उत्तरप्रदेश आवास विकास परिषद की कॉलोनियों का मुद्दा फिर गर्माने लगा है। उत्तराखंड में स्थित उत्तर प्रदेश की आवासीय कॉलोनियों का मामला उलझता ही जा रहा है। उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच क्भ् मई को इन सभी कॉलोनियों का बंटवारा सिडकुल व उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास परिषद की तर्ज पर दो माह में करने का समझौता हुआ था, लेकिन उत्तर प्रदेश इस समझौते से भी पीछे हट गया है। ऐसे में उत्तराखंड आवास विकास परिषद ने इन कॉलोनियों के बंटवारे के मामले में हाईकोर्ट में जाने का निर्णय लिया है।

क्8 कॉलोनियों का है मामला

उत्तराखंड गठन के क्भ् साल बाद भी राज्य में स्थित उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद की क्8 कॉलोनियों के बंटवारे का मामला सुलझ नहीं सका है। कॉलोनियों का नियंत्रण अब भी उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद के पास है, मगर उत्तराखंड की सीमा में होने के कारण उसे मानचित्र पास करने का अधिकार नहीं है। ख्0क्फ् में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि उप्र आवास विकास परिषद उत्तराखंड में स्थित अपनी योजनाओं व परिसंपत्तियों के संबंध में मानचित्र मंजूरी के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता।

हो रहा अवैध निर्माण

इन कॉलोनियों में जमकर अवैध निर्माण हो रहे हैं। इस बीच क्भ् मई को दोनों राज्यों के बीच इन कॉलोनियों का दो माह के भीतर बंटवारा करने का समझौता किया गया था। बंटवारे की इस प्रक्रिया में सिडकुल व उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास परिषद के बीच हुए बंटवारे का फार्मूला अपनाने पर सहमति बनी थी। इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने राज्य में स्थित उत्तर प्रदेश आवास विकास कॉलोनियों व अन्य परिसंपत्तियों में मनमाने ढंग से निर्माण व विकास पर शासन ने प्रभावी अंकुश लगा दिया।

इसके अनुसार यह आवासीय योजनाएं व अन्य परिसंपत्तियां जब तक उत्तराखंड को हस्तांतरित नहीं हो जाती, तब तक इनमें होने वाले किसी भी स्थल विकास, भवन निर्माण व भू-उपयोग परिवर्तन के संबंध में उत्तराखंड के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा ही तय प्रक्रिया के अनुसार निर्णय लिए जाने थे, लेकिन उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद इस द्विपक्षीय समझौते से अब पीछे हट गया। सचिव आवास डीएस गब्र्याल ने बताया कि इन कॉलोनियों में बिक्री पर पहले ही रोक लगी है। उत्तर प्रदेश द्वारा समझौते से पीछे हटने के बाद मामला हाईकोर्ट में ले जाया जाएगा।