बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का मामला

-डीएम की रिपोर्ट में हॉस्पिटल मैनेजमेंट दोषी, मुश्किल वक्त में कॉलेज छोड़ भाग गए थे डॉक्टर

LUCKNOW:

गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में मासूम बच्चों की मौत मामले में बड़ी लापरवाही सामने आई है। कॉलेज के जिम्मेदार डॉक्टर्स की लापरवाही से ही बच्चों की जान गई। प्रिंसिपल से लेकर डॉक्टर्स की लापरवाही के कारण इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की जान गई। डीएम गोरखपुर ने की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, जिस वक्त बच्चे मर रहे थे, उस वक्त भी दो वे अधिकारी गायब थे जिन पर मेडिकल कॉलेज की जिम्मेदारी थी। साथ ही पुष्पा सेल्स को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद किए जाने का जिम्मेदार माना गया है। ऑक्सीजन आपूर्ति को जीवन रक्षक मानते हुए फर्म द्वारा ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था।

मुश्किल समय में भागे डॉक्टर

डीएम की रिपोर्ट के अनुसार 10 अगस्त को मेडिकल कॉलेज संकट के दौर से गुजर रहा था, लेकिन प्रिंसिपल डॉ। राजीव मिश्र सुबह ही मुख्यालय से बाहर चले गए। इसके अलावा संस्थान में ऑक्सीजन की उपलब्धता बनाए रखने की जिम्मेदारी एनेस्थीसिया विभाग के डॉ। सतीश कुमार पर भी थी। वह भी 11 अगस्त को मुंबई चले गए। डीएम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 'मेडिकल कॉलेज छोड़ने से पहले इन दोनों अधिकारियों ने यदि समस्या का समाधान समय से कर दिया होता तो ऐसी परिस्थितियां नहीं होतीं, जबकि दोनों अधिकारियों को फर्म द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद किए जाने की जानकारी रही होगी.'

आपस में नहीं समन्वय

रिपोर्ट में कहा है प्रिंसिपल डॉ। राजीव मिश्र और एनेस्थीसिया के एचओडी डॉ। सतीश कुमार के कॉलेज से बाहर होने पर यह जिम्मेदारी सीएमएस डॉ। रमा शंकर शुक्ल, कार्यवाहक प्रिंसिपल डॉ। राम कुमार, 100 बेड के वार्ड के नोडल प्रभारी अधिकारी डॉ। डॉ। कफील खान और बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ। महिमा मित्तल की थी। लेकिन वे एक साथ टीम के तौर पर इसके लिए तैयार नहीं थे। कहा गया है कि प्रिंसिपल ने बाल रोग विभाग की सुविधाओं, रखरखाव, भुगतान पर ध्यान नहीं दिया।

घोटाले की आशंका

आठ पेज की रिपोर्ट में डीएम ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बड़े घोटाले की आशंका जताई है। रिपोर्ट के अनुसार 'ऑक्सीजन सिलेंडर की लॉग बुक 10 अगस्त से बनाए जाने, स्टॉक बुक में ओवरराइटिंग करने और लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म के बिलों का क्रमवार या तिथिवार भुगतान न होने के पीछे वित्तीय अनियमितता होना प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है, जिसके लिए ऑडिट एवं प्रकरण की चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा उच्च स्तरीय जांच कराया जाना उचित होगा.'

डॉ। सतीश भी हैं दोषी

एइएस वार्ड में एसी खराब होने के कारण बच्चे उमस से बेहाल थे। डॉ। कफील खान ने डीएम को बताया कि उन्होंने एनेस्थीसिया एचओडी को लिखित में इसकी जानकारी दी थी लेकिन एसी ठीक नहीं कराया गया। डॉ। सतीश ऑक्सीजन उपलब्धता न रखने के भी जिम्मेदार थे। उन्हें अपना दायित्सव न निभाने का दोषी पाया गया है।

घटना के बाद बनाई लागबुक

रिपोर्ट मे कहा गया है कि ऑक्सीजन का हिसाब रखने वाली लॉग बुक 10 अगस्त को ही तैयार की गई। स्टॉक रजिस्टर भी एक जुलाई से पहले का नहीं थी। स्टॉक रजिस्टर में ओवरराइटिंग की गई। जिसके लिए स्टॉक बुक व लॉग बुक मेनटेन रखने के प्रभारी डॉ। सतीश के साथ चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल को जिम्मेदार माना गया। रिपोर्ट के अनुसार डॉ। सतीश ने कभी लाग बुक न चेक की और न ही साइन किया। इसके लिए प्रिंसिपल भी जिम्मेदार हैं।

भुगतान के लिए लिपिक जिम्मेदार

लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली फर्म लगातार भुगतान का आग्रह कर रही थी। लेकिन बजट मिलने पर भी लेखा अनुभाग के कार्यालय सहायक उदय प्रताप शर्मा, लेखा लिपिक संजय कुमार त्रिपाठी और सहायक लेखाकार सुधीर कुमार पांडेय ने प्रिंसिपल को सूचना नहीं दी और पत्रावली प्रस्तुत नहीं की। इसके लिए इन्हें दोषी माना गया है।

मुख्य सचिव ने बनाई जांच कमेटी

बच्चों की मौत मामले की जांच के लिए मुख्य सचिव राजीव कुमार ने तीन सदस्यी जांच कमेटी गठित की है। जिसमें सचिव वित्त, पीजीआई के डॉ। हेम चंद्रा व एनएचएम निदेशक आलोक कुमार है। साथ ही डीएम गोरखपुर से मिली जांच रिपोर्ट को उन्होंने अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा को सौंप दिया है।