विस्थापित कश्मीरियों पर रिसर्च करेगी सीसीएस यूनिवर्सिटी

आईसीएसएसआर ने दिया इतिहास विभाग को प्रोजेक्ट

दिल्ली व जम्मू में रहने वाले माइग्रेट कश्मीरियों का जानेंगे हाल

Meerut। आमतौर पर माना जाता है कि कश्मीर से सिर्फ कश्मीरी पंडित ही विस्थापित हुए हैं। हालांकि 1948 में कबिलाई आक्रमण के साथ ही 1965, 1971, 1989 में कश्मीर घाटी में हुए हमलों के बाद भी सैकड़ों लोगों ने पलायन किया। यह लोग इधर-उधर जाकर बस गए। इनका न सरकार के पास कोई रिकार्ड हैं न ही इन लोगों के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी हैं। इन्हीं विस्थापित कश्मीरियों पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नए सिरे से शोध करवा रहा है। इसके लिए सीसीएसयू के इतिहास विभाग को यह प्रोजेक्ट सौंपा गया है। विभाग की ओर से गठित टीम ने शोध कार्य शुरू भी कर ि1दया है।

यह है स्थिति

दिल्ली व जम्मू में रह रहे विस्थापित कश्मीरियों की स्थिति काफी दयनीय हैं। इन लोगों के पास न तो काम हैं न ही जीवनयापन करने के लिए कोई साधन। बड़ी बात यह है कि यहां आठ से दस लोग एक ही कमरे में रहकर गुजारा कर रहे हैं। शिक्षा से लेकर सरकारी योजनाएं तक इन लोगों के पास नहीं पहुंच रही हैं।

ऐसे होगा काम

जम्मू-कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के बारे में अधिक तथ्यों को सामने लाने के लिए इस प्रोजेक्ट के तहत जम्मू-कश्मीर का खाका तैयार किया जाएगा। दिल्ली व जम्मू में रह रहे विस्थापित लोगों के जीवनयापन के तरीके व सरकार की ऐसे लोगों के लिए बनाई गई नीतियों व योजनाओं के हर पहलू का अध्यन किया जाएगा।

इन बिंदुओं पर रहेगा फोकस

विस्थापन को रोकने के लिए सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाएं।

बार-बार होने वाले माइग्रेशन को रोकने में सरकार क्यों विफल रही।

विस्थापित होने वाले सिर्फ हिंदू हैं या मुस्लिम भी हैं।

सरकार के पास रजिस्टर्ड आंकड़ों से इतर ऐसे लोगों की संख्या व स्थिति क्या है।

सरकार की ओर से मिलने सहायता राशि से इन लोगों को कितना लाभ मिला।

पलायन करने वाले लोगों के लिए अलग कॉलोनियां क्यों नहीं बनाई गई। इसके राजनैतिक कारणों पर भी रिसर्च की जाएगी।

इस प्रोजेक्ट पर हम काम कर रहे हैं। इस तरह का शोध पहली बार होने जा रहा है। अभी प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

आराधना, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, सीसीएसयू

अगर यह प्रोजेक्ट सही तरह से पूरा होता है तो निश्चित ही विस्थापित कश्मीरियों की अलग तस्वीर निकलकर आएगी। यही नहीं लोगों को इसकी वास्तविक स्थिति का भी पता लगेगा।

आशुतोष, डायरेक्टर, जम्मू-कश्मीर अध्यन केंद्र,