- पूरे साल गोरखपुर में होता रहता है ब्वॉयज का लीग

- ग‌र्ल्स को नहीं मिलती कोई सुविधा, न होते हैं गेम्स

GORAKHPUR: 'चक दे इंडिया' मूवी तो आपने देखी ही होगी। उसमें ग‌र्ल्स हॉकी की जो हालत दिखाई गई थी, ठीक वैसी ही हालत गोरखपुर के महिला क्रिकेट की है। फैसिलिटी की बात तो दूर, ग‌र्ल्स प्लेयर के लिए एक मैदान तक नहीं है, जहां वे रेग्युलर प्रैक्टिस कर सकें। कभी इस ग्राउंड, तो कभी उस ग्राउंड पर पहुंचकर प्रैक्टिस करने वाली कुछ फीमेल क्रिकेटर्स का हौसला भी अब टूटने लगा है।

1992 से परेशान हैं बेटियां

गोरखपुर शहर में टैलेंट की तो कोई कमी नहीं लेकिन इसके कद्रदानों की काफी कमी है। यहां क्रिकेट एसोसिएशन होने के बाद भी ग‌र्ल्स को न तो ग्राउंड मिल पाता है और न ही अन्य सुविधाएं। उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है। गोरखपुर में फीमेल क्रिकेट की नींव 1992 में रखी गई लेकिन ग‌र्ल्स को सुविधाएं आज तक नहीं मिल पाई।

हार गई पहली मैच

1992 में एडी और कार्मल ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज की कुछ स्टूडेंट्स ने टीचर्स के कहने पर स्कूल की टीम में हिस्सा लिया और गोरखपुर की पहली ग‌र्ल्स टीम फॉर्म की गई। स्कूल लेवल पर फॉर्म हुई इस टीम में रीना सिंह, शांता, रॉकी जायसवाल, प्रियंका और आराधना सिंह अहम हैं। बगैर किसी सुविधा और प्रैक्टिस के इंटर स्कूल क्रिकेट में गोरखपुर की हिस्सेदारी तो हुई, लेकिन कोई कमाल नहीं हो सका। कानपुर में ऑर्गनाइज स्कूल स्टेट टूर्नामेंट में इन्हें हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद टीम एकाध मैच खेली लेकिन सुविधा के अभाव में अपनी-अपनी राह पकड़ ली।

2005 के बाद बीसीसीआई ने थामा हाथ

वुमंस क्रिकेट एसोसिएशन का जब 2005 में बीसीसीआई में मर्जर हो गया, तो इसका फायदा गोरखपुर के खिलाडि़यों को भी मिला। गोरखपुर टीम की मेंबर रही रीना सिंह ने फिर से ग‌र्ल्स क्रिकेट को आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू की। शुरुआत में सेंट एंड्रयूज कॉलेज पर चल रहे गोरखपुर क्रिकेट एसोसिएशन के मैदान में प्रैक्टिस शुरू हुई। इस दौरान करीब 30 से 40 ग‌र्ल्स प्रैक्टिस के लिए आने लगी थीं लेकिन कुछ विवादों के चलते खेल मैदान से हटना पड़ा। इसी के साथ प्रैक्टिस पर ब्रेक लग गई।

तीन साल रहे बेमिसाल

गोरखपुर ग‌र्ल्स क्रिकेट के लिए 2012-13 से लेकर 2015 तक का पीरियड काफी बेमिसाल रहा। इस दौरान 2012-13 में टीम इंटर स्कूल स्टेट क्रिकेट चैम्पियनशिप के फाइनल मुकाबले तक पहुंची। हालांकि वह जीत हासिल नहीं कर सकी। वहीं 2013-14 और 2014-15 में टीम ट्रॉफी पर कब्जा जमाने में कामयाब रही। इस दौरान ग‌र्ल्स गोरखपुर में चल रही प्राइवेट एकेडमी लक्ष्य के ग्राउंड पर प्रैक्टिस कर रही थी मगर एक गवर्नमेंट और एसोसिएशन की ओर से कोई हेल्प न मिलने की वजह से एक बार फिर ग‌र्ल्स क्रिकेट पर ब्रेक लगा। इस समय कुछ खिलाड़ी खुद ही प्रैक्टिस कर अपना हुनर बचाने की कोशिश में लगी हैं।

कॉलिंग

गोरखपुर में ग‌र्ल्स के लिए कोई फैसिलिटी नहीं है। कभी रीजनल, कभी सेंट एंड्रयूज तो कभी यूनिवर्सिटी में जाकर प्रैक्टिस करना पड़ता है। इसकी वजह से कई खिलाडि़यों ने क्रिकेट छोड़ दिया।

- रीना सिंह, कोच, ग‌र्ल्स क्रिकेट

ग‌र्ल्स को सेंट एंड्रयूज कॉलेज ग्राउंड पर खेलने की जगह दी गई है। यहां उन्हें बॉल भी मुहैया कराई जाती है। जो इंटरेस्टेड ग‌र्ल्स हैं, वह यहां आकर रेग्युलर प्रैक्टिस करती हैं। कुछ प्रैक्टिस के लिए दूसरे प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन में भी जाती हैं। जब गोरखपुर का मैच होता है, तो उन्हें बुलाया जाता है। हमारी कोशिश है कि बरसात के बाद उनके लिए व्यवस्था और बेहतर की जाए।

- गजेंद्र तिवारी, सेक्रेटरी, गोरखपुर क्रिकेट एसोसिएशन