भारत के नाविक को नई ताकत देगा IRNSS-1 सैटेलाइट मिशन

बता दें कि साल 2018 के मध्य से पहले भारत अपना IRNSS-1 सैटेलाइट मिशन अंतरिक्ष में भेजेगा। भारत के खुद के अपने नेवीगेशन मैप सिस्टम नाविक NavIC को नई ताकत देने स्पेस में जाएगा यह आठवां उपग्रह। भारत के पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहीकल यानि PSLV-C41 की 43 उड़ान के साथ स्पेस में भेजा जाएगा IRNSS-1 सैटेलाइट। इस नए सैटेलाइट से भारत गूगल मैप से भी बेहतर नाविक सिस्टम का बेहतर इस्तेमाल कर पाएगा। यह सैटेलाइट श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भेजा जाएगा।

 

GSAT-11

यह एक हाईबीम कम्यूनीकेशन सैटेलाइट है, जो Ka and Ku बैंड्स पर काम करता है। यह सैटेलाइट काफी पावरफुल है, क्योंकि यह Ku बैंड पर 32 यूजर्स के लिए फ्रीक्वेंसी बीम उपलब्ध कराता है, जबकि इस सैटेलाइट में Ka बैंड के लिए भी 8 फ्रीक्वेंसी बीम जनरेट करने की क्षमता है। आपको बता दें कि ये दोनों हाई फ्रीक्वेंसी बैंड इंटरनेशनल सैटेलाइट प्रसारण से लेकर विमानों के बीच मोबाइल और इंटरनेट कम्यूनीकेशन के लिए इस्तेमाल होते हैं। Ku बैंड 12 से 18 गीगाहर्टज क्षमता की रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करता है, जबकि Ka बैंड 26.5 से लेकर 40 गीगा हर्ट्ज फ्रीक्वेंसी पर काम करता है। भारत द्वारा दुनिया भर में बढ़ते टीवी प्रसारण और बेहतर विमान सेवाओं के लिए ये सैटेलाइट बेहद काम का साबित होगा। भारत का यह सैटेलाइट साल मिड 2018 से पहले लॉन्च किए जाने की संभावना है। जबरदस्त पेलोड वाला यह सैटेलाइट फ्रांस के French Guiana स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।

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Chandrayaan-2 Mission

जुलाई 2018 के बाद अंतरिक्ष में लॉन्च होने वाला भारत का यह मोस्ट अवेटेड चंद्रयान मिशन है। Chandrayaan-2 मिशन पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इस मिशन में एक यान चांद की कक्षा में 100 मिलोमीटर नजदीक तक जाएगा, इसके बाद एक लैंडर और रोबोटिक रोवर यान से अलग होकर चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करेंगे। इसके बाद 6 छोटे पहिए वाला रोवर चांद की सतह पर छोड़ा जाएगा, जो सेमी ऑटोनॉमस मोड में काम करते हुए चांद की सतह और उसकी मिट्टी की जांच करके उसकी रिपोर्ट इसरो को भेजेगा। बता दें कि इसरो द्वारा अक्टूबर 2008 में Chandrayaan-1 प्रोब मिशन चांद पर भेजा गया था, लेकिन चंद्रयान 2 एक रोवर मिशन है जिसके द्वारा हमें चांद की बनावट, उसकी सतह, वहां के वातावरण और उसकी सतह के नीचे दबी बर्फ के बारे में बहुत सारी नई जानकारियां मिलेंगी, जो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के अंतरिक्ष विज्ञानियों के लिए भी बहुत काम की होंगी।

 

GSAT-29 Mission

साल 2018 के मध्य में स्पेस में भेजा जाने वाला भारत का यह सैटेलाइट इसरो के काफी उन्नत I-3K Bus को सपोर्ट करता है। यह सैटेलाइट Ka और Ku की मल्टी बीम फ्रीक्वेंसी और ऑप्टिकल कम्यूनीकेशन पेलोड को एक साथ पहली बार अंतरिक्ष में लेकर जाएगा। यह अपने आप में बहुत ही खास बात है। भारत के गांवों में मौजूद VRC विलेज रिसोर्स सेंटर्स को देश दुनिया से जोड़ने में यह सैटेलाइट बहुत ही कमाल का काम करेगा। जीसैट-29 मिशन GSLV-MkIII-D2 रॉकेट के साथ जल्दी ही अंतरिक्ष में भेजे जाने की संभावना है।

इसरो के ये सभी फ्यूचर प्रोजेक्ट्स अंतरिक्ष में भारत की लंबी उड़ान को और भी शक्तिशाली बनाएंगे, ताकि स्पेस साइंस और प्रसारण के मामले में भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो सके।


Source: https://www.isro.gov.in/missions


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