-जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बेहद खराब

-राज्य के औसत से कम है दून के इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी प्रतिशत

-पिछले चार दिनों में तीन डिलीवरी सड़क पर हुई

DEHRADUN : राज्य में सड़क पर अथवा वाहन में डिलीवरी होने की खबरें मिलती रहती हैं। क्08 एंबुलेंस में अब तक सैकड़ों डिलीवरी हो चुकी हैं। पिछले तीन दिनों में राज्य में अलग-अलग स्थानों पर तीन डिलीवरी वाहन में अथवा सड़क पर हुई हैं। ये घटनाएं राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर स्थिति का सबूत हैं। सरकार इंस्टीट्यूशन डिलीवरी की बात तो करती है, लेकिन इसके लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। राज्य के राजधानी वाले जिले में ही आज में ब्म् प्रतिशत डिलीवरी घरों में हो रही है।

घोषणाएं नहीं आ रही काम

अस्पताल में प्रसव के अभियान को दून में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। स्वास्थ्य विभाग और नेशनल हेल्थ मिशन के तहत जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य के लिए अनेक घोषणाएं किये जाने के बाद भी दून जिले में सौ में से ब्म् महिलाएं घरों में ही बच्चों को जन्म दे रही हैं। हालांकि यह शहरों में स्थिति काफी बेहतर है, लेकिन गांवों की स्थिति बहुत खराब है।

स्वास्थ्य सेवाओं से सवालिया निशान

सरकार की ओर से गर्भवती महिलाओं और नवजात के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई गई हैं। एएनएम और आशा वर्कर के माध्यम में एक-एक गर्भवती महिला का विवरण तैयार करने और डिलीवरी के समय अस्पताल में भर्ती कराने, जच्चा-बच्चा को खुशियों की सवारी योजना के तहत बिना पैसा लिये घर तक पहुंचाने के अलावा गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार के लिए आर्थिक सहायता देने तक की योजनाएं चलाई गई हैं, लेकिन अस्पतालों के लिए प्रसिद्ध दून में तब भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।

राज्य के औसत से पीछे दून

उत्तराखंड में इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी का प्रतिशत म्0.7 प्रतिशत आंका गया है, लेकिन दून के सीएमओ कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार दून में केवल भ्ब् प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही डिलीवरी के लिए अस्पतालों में पहुंचती हैं। इस आंकड़े में सरकारी के अलावा प्राइवेट अस्पतालों में होने वाली डिलीवरी भी शामिल हैं। देहरादून जैसे राजधानी वाले जिले के लिए यह स्थिति काफी निराशाजनक है।

शिशु मृत्यु पर अंकुश का लक्ष्य भी दूर

इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी कम होने के कारण दून में शिशु मृत्यु दर में कमी लाने का लक्ष्य भी फिलहाल हासिल कर पाना संभव नहीं लग रहा है। हालांकि दून में पांच साल की उम्र तक मरने वाले शिशुओं की संख्या फ्0 प्रति हजार है, जो राष्ट्रीय औसत ब्फ् से कम है, लेकिन शिशु मृत्यु दर क्0 से क्ख् प्रति हजार को आदर्श स्थिति माना गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने के लिए कहा है, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी आने वाले सालों में आदर्श स्थिति को हासिल कर पाना असंभव प्रतीत हो रहा है।

शिशु मृत्यु दर में कमी लाना सबसे बड़ा गोल है और इस गोल को तभी हासिल किया जा सकता है, जबकि लोगों को अस्पतालों में डिलीवरी कराने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रेरित किया जाए। स्वास्थ्य विभाग और नेशनल हेल्थ मिशन के तहत अनेक घोषणाएं की गई हैं। केंद्र सरकार भी इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही है और राज्य सरकार हेल्थ विभाग से माध्यम से प्रयास कर रही है।

डॉ। टीसी पंत, सीएमओ