आज रांची पहुंचेंगे नोबेल विजेता

कल प्रोजेक्ट भवन में कार्यक्रम

RANCHI (21 May): बच्चों की मुस्कान बरकरार रखने के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे नोबेल पीस प्राइज विनर कैलाश सत्यार्थी एक बड़े जनांदोलन की तैयारी में हैं। जल्द ही वे बाल मजदूरी, ट्रैफिकिंग और अन्य तरह के बाल अपराध के खिलाफ 'सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत' यात्रा की शुरुआत करने वाले हैं। श्री सत्यार्थी मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन के नये सभागार में आयोजित समारोह में शिरकत करेंगे। झारखंड विधानसभा की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य सरकार की ओर से श्री सत्यार्थी का स्वागत किया जाएगा। नोबेल प्राइज मिलने के बाद श्री सत्यार्थी पहली बार रांची आ रहे हैं। वे सोमवार को सिटी रांची पहुंचेंगे।

कोडरमा में अभ्रक के खदानों से बच्चों को निकाला

श्री सत्यार्थी ने वैसे तो बाल मजदूरी और बाल शोषण के खिलाफ अनगिनत काम किये हैं, लेकिन कोडरमा-गिरिडीह इलाके में बाल मजदूरों को अभ्रक के अवैध खदानों से निकाल कर स्कूल पहुंचाना बड़ी उपलब्धि रही। इलाके के ख्भ्0 गांवों में उन्होंने बेहद जमीनी स्तर पर काम किया और हजारों बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाया। उनकी पहल पर ही पहली बार उस इलाके में बचपन के मुद्दे को लोगों की बातचीत का अहम हिस्सा बनाया जा सका। फिलहाल पूरी दुनिया में फ्.भ्0 करोड़ बच्चे शोषण के शिकार हैं। उन्हें स्कूली शिक्षा तक मयस्सर नहीं। श्री सत्यार्थी इन बच्चों को फोकस कर ही आंदोलन करने की तैयारी कर रहे हैं। इस मंगलवार को रांची में आयोजित अभिनंदन समारोह में वे भारत यात्रा की तारीख और रूट की घोषणा करेंगे।

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झारखंड की धरती से रहा है पुराना नाता

कैलाश सत्यार्थी का झारखंड से तीन दशक पुराना रिश्ता रहा है। उन्होंने यहां कई जनांदोलनों का नेतृत्व किया। इस दौरान काफी यातनाएं भी झेलनी पड़ीं। उनके कई साथी मारे गए, कई को जेल जाना पड़ा और कई लोगों को दस-दस साल तक मुकदमा भी झेलना पड़ा। उन्होंने सबसे पहले वर्ष क्98ब् में बंदुआ मजदूरी के खिलाफ महाजुटान आंदोलन की शुरुआत की। उनके साथ शुरुआत में क्भ् हजार लोग जुटे। उनके पुराने साथी रहे शत्रुघ्न ओझा बताते हैं कि श्री सत्यार्थी ने पलामू के पाटन स्थित छिछौरी गांव में कालीन उद्योग में बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे बच्चों को वहां से निकाला। उनके पुनर्वास की व्यवस्था कराई और फिर पूरे पलामू इलाके में बंधुआ मजदूरी और जमींदारी प्रथा के खिलाफ बड़ी लड़ाई छेड़ी। महाजनों से सीधे भिड़ गए और लाखों एकड़ भूदान की जमीन हजारों खेतीहर किसनों के बीच बंटवाया। पलामू से गुलामी की कुप्रथा को समाप्त कराने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। श्री ओझा बताते हैं कि उसी वक्त से उनके साथ जुड़े सभी लोग उन्हें 'भाई साहब' कहकर पुकारते हैं। आज भी श्री सत्यार्थी इसी संबोधन से खुद को पुकारा जाना ज्यादा पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष क्99क् में श्री सत्यार्थी ने नगर उंटारी से लेकर दिल्ली तक बाल मजदूरी उन्मूलन को लेकर यात्रा की थी। तब बीस हजार लोग उनके साथ चले थे। लाखों लोगों को उन्होंने प्रभावित किया। उन्होंने झारखंड में अपने आंदोलनों से न केवल बाल मजदूरी बल्कि गुलामी प्रथा के खिलाफ प्रभावी आंदोलन किया और काफी हद तक इस इलाके से इन प्रथाओं को समाप्त कराने में अहम भूमिका अदा की। श्री ओझा याद करते हैं कि पूरे आंदोलन के क्रम मे श्री सत्यार्थी बेहद सरल जीवन जीते नजर आए। जहां गए, वहीं जमीन पर बैठे। जैसा खाना मिला, खा लिया। ज्यादातर रोटी और साग खाकर दिन भर चलते रहे। एक वक्त था, जब श्री ओझा के पास एक मोटरसाइकिल हुआ करती थी। उसी में बैठकर वे पूरे पलामू क्षेत्र की खाक छाना करते थे। आज भी जब श्री सत्यार्थी से मिलते हैं, तो पुराने दिनों को याद करते वे श्री ओझा को गले लगा लेते हैं।