मानव तस्करों के प्रचार-प्रसार कर जरिया बना

वाशिंगटन (एएफपी)। यूएन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के मीडिया एंड कम्युनिकेशन के निदेशक लियोनॉर्ड डोएल ने कहा कि मध्य पूर्व एशिया और अफ्रीका में फेसबुक और व्हाट्सएप मानव तस्करों के लिए प्रचार का जरिया बना हुआ है। वे सोशल मीडिया के इन प्लेटफार्म के जरिए अपनी सेवाओं का प्रवासियों के साथ मिलकर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर प्रवासियों के साथ अत्याचार करते हैं, यात्रियों को बंधक बना लेते हैं और उनके साथ मारपीट करके उन्हें प्रताडि़त करते हैं ताकि वे उनसे फिरौती वसूल सकें।

आईएसआईएस जिहाद के लिए कर रहा इस्तेमाल

डोएल ने रेफ्यूजी डीप्ली द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा में कहा कि बर्बर आतंकी संगठन इस्लामिक इस्टेट (आईएस) जैसे उग्रवादी भी खुद के प्रचार-प्रसार के लिए फेसबुक पर पेज बना रहे हैं। फेसबुक को मानव तस्करी जैसे मामले की जांच करनी चाहिए। रेफ्यूजी डीप्ली एक मीडिया ग्रुप है जो प्रवासन संबंधी मुद्दों पर काम करता है। तस्कर इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। बड़ी तकनीकी कंपनियों की मानवता के प्रति बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने प्लेटफार्म पर कोई भी मानव विरोधी गतिविधियों को न होने दें।

हर तरह के सोशल मीडिया में संवाद के माहिर

एक्सपर्ट के अनुसार, तस्कर संवाद के लिए हर तरह के सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप्लीकेशन के इस्तेमाल में माहिर हैं। फेसबुक पेज, प्राइवेट ग्रुप और फेसबुक लाइव वीडियो एप और व्हाट्सएप का इस्तेमाल इनके बीच सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं। लियोनॉड के अनुसार, लोग सोशल मीडिया पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी सर्च कर रहे हैं। सोशल मीडिया को चाहिए कि ऐसा करने वालों को उनकी ओर से एक वार्निंग दी जानी जाए कि वे जो भी कर रहे हैं वह गैर कानूनी है। डोएल ने कहा कि फेसबुक और अन्यों को भी ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे मानव तस्करों को इसके इस्तेमाल से रोका जा सके।

फेसबुक को फिरौती का नेक्सस तोड़ने की जरूरत

डोएल ने कहा कि सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक को विशेष कर पश्चिमी अफ्रीका में फिरौती का नेक्सस तोड़ने की जरूरत है। तस्कर प्रवासियों का अपहरण कर लेते हैं, उन्हें प्रताडि़त करते हैं और सोशल मीडिया के जरिए उनकी तस्वीरें या उनके वीडियो बनाकर उनके परिजनों को भेजकर फिरौती मांगते हैं। उन्होंने कहा कि हम उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। फेसबुक ने उनके प्रस्ताव को बड़े पैमाने पर अनदेखी की है, सिर्फ छोटे लेवल पर फेसबुक के कुछ कर्मियों ने थोड़ी मदद की है। यह कहने में थोड़ अटपटा जरूर लग रहा है लेकिन यह सही है कि उन्होंने कोई प्रयास नहीं किए।

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