यहां से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
हंसी के इस बादशाह को इस उपाधि तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। इसकी शुरुआत की इन्होंने बस कंडक्टर बनकर। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर मे एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनका असली नाम था बरूदीन जमालुदीन काजी उर्फ जॉनी वाकर। बचपन से ही इन्होंने एक्टर बनने का सपना देखा था। मुंबई मे इनके पिता के एक जानने वाले पुलिस इंस्पेक्टर की सिफारिश पर इनको बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई।

कंडक्टर बन काफी खुश हुए जॉनी
नौकरी को पाकर जॉनी वाकर काफी खुश हुए। खुश इसलिए हुए क्योंकि उन्हें मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने को मौका मिल गया था। इसके साथ ही उन्हें मुंबई के स्टूडियो में भी जाने का मौका मिल जाया करता था। इन्हीं दिनों में जॉनी वाकर की मुलाकात फिल्म जगत के मशहूर खलनायक एन ए अंसारी और के आसिफ के सचिव रफीक से हुई। लंबे संघर्ष के बाद इनको फिल्म 'अखिरी पैमाने' में एक छोटा सा किरदार निभाने का मौका मिला। तभी एक्टर बलराज साहनी ने इनको गुरूदत्त से मिलने की सलाह दी। गुरूदत्त ने इनकी प्रतिभा से खुश होकर अपनी फिल्म बाजी में इन्हें काम करने का मौका दिया। इसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा।

गुरुदत्त ने पहुंचाया ऊंचाइयों पर
उसके बाद जानी वॉकर ने गुरूदत्त की कई फिल्मों मे काम किया जिनमें 'आर पार', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'प्यासा', 'चौदहवी का चांद', 'कागज के फूल' जैसी सुपर हिट फिल्में शामिल हैं। गुरूदत्त की फिल्मों के अलावा जानी वाकर ने 'टैक्सी ड्राइवर', 'देवदास', 'नया अंदाज', 'चोरी चोरी', 'मधुमति', 'मुगल-ए-आजम', 'मेरे महबूब', 'बहू बेगम', 'मेरे हजूर' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों मे अपने हास्य अभिनय से दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया।

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