2016 का आंकड़ा

4518960 ओपीडी में मरीज आए

44880 मरीज भर्ती

46540 इमरजेंसी में आए

12184 बड़े आपरेशन

4352 सीटी स्कैन

नंबर गेम

-756 बेड

-94 डॉक्टर्स के पद

- 14 पद खाली

-4 हजार से अधिक की रोजाना ओपीडी

- 300-400 मरीज 1 डॉक्टर के भरोसे ओपीडी में

बेव लिंक- मरीजों को राहत देने के लिए बलरामपुर प्रशासन को क्या कदम उठाने चाहिये?

LUCKNOW:

राजधानी ही नहीं प्रदेश में सबसे अहम स्थान रखने वाला बलरामपुर चिकित्सालय भी मरीजों के बोझ तले दबा है। 2012 के मुकाबले 2017 तक मरीजों की संख्या में लगभग दोगुने का इजाफा हो चुका है। एक एक डॉक्टर 300 से 400 मरीजों को रोजाना ओपीडी में देख रहे हैं। जिसके कारण मरीजों को ढाई से तीन घंटे का समय लाइन में डॉक्टर को दिखाने से दवा लेने में लग रहा है।

ढाई घंटे में बस इतनी दवा

सांस के मरीज मनल डॉक्टर्स को दिखाने बलरामपुर अस्पताल पहुंचे थे। सुबह लगभग 10.30 बजे पर्चा बनवाने और लाइन में लगने के बाद वे दोपहर साढ़े 12 बजे डॉक्टर को दिखा सके। उस पर भी उन्हें सिर्फ पांच दिन की दवा मिली। मनल ने बताया कि इतना समय देने के बाद भी दवाई केवल पांच दिन की मिली है। बार बार आना भी संभव नहीं है।

बस है समय की दिक्कत

लखनऊ के ही निर्मल तिवारी अपनी पैर में चोट को दिखाने आए थे। निर्मल ने बताया कि सब कुछ ठीक है, लेकिन मरीजों की लंबी लाइन और लगने वाला समय खलता है। डॉक्टर को दिखाने में ढाई से तीन घंटे का समय लग गया। लाइन बहुत लंबी थी। हालांकि दवा तो सिर्फ 10 मिनट में मिल गई। उन्होंने कहा कि लाइन में लगने वाला समय दर्द को और बढ़ाता है। इससे छुटकारा मिले तो बहुत अच्छा होगा।

खराब हो गई मशीन

बलरामपुर अस्पताल में दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। रामसनेही घाट से अपनी बहू की जांच कराने आए माता प्रसाद बैठे इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि बहू पूनम को जैसे ही जांच के लिए लिटाया गया मशीन खराब हो गई। लगभग 40 मिनट उन्हें इंतजार करते हो गए थे। उन्होंने कहा कि जांच न हो पाई तो दोबारा आना पड़ेगा। बलरामपुर के डॉक्टर्स ने बताया कि सीटी स्कैन मशीन बहुत पुरानी है। जिसके कारण अक्सर यह मशीन खराब होती है और मरीजों की जांच नहीं हो पाती।

नहीं है एमआरआई की सुविधा

बलरामपुर चिकित्सालय राजधानी का जिला अस्पताल है। यहां पर लगभग सभी स्पेशलिटीज की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां पर न्यूरो सर्जरी की भी सुविधा है जबकि प्रदेश के किसी अन्य सरकारी अस्पताल में यह सुविधा नहीं है, लेकिन मरीजों की जांच के लिए अब तक यहां पर एमआरआई की सुविधा उपलब्ध नहीं है। डायरेक्टर डॉ। राजीव लोचन ने बताया कि शासन को एमआरआई के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। ट्रॉमा से भी बड़ी संख्या में मरीज बलरामपुर भेजे जाते हैं इसलिए यहां पर एमआरआई की सुविधा बहुत जरूरी है।

756 बेड का बड़ा अस्पताल

बलरामपुर चिकित्सालय में 756 बेड हैं। जिन पर हर समय 800 से अधिक मरीज भर्ती रहते हैं। केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में ज्यादातर समय बेड फुल होने पर मरीजों को सीधे बलरामपुर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। इमरजेंसी डॉक्टर्स के अनुसार हर रोज देर शाम में एक्स्ट्रा बेड लगाकर मरीज भर्ती करने पड़ रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है।

स्ट्रेचर पर दवा, सामान

बलरामपुर अस्पताल में मरीजों को भले ही अक्सर स्ट्रेचर नहीं मिल पाता, लेकिन दवाएं और अन्य सामान स्ट्रेचर पर ढोया जा रहा है। हॉस्पिटल में कुत्तों का आतंक है। अक्सर ये तीमारदारों को काट लेते हैं। जिनसे अस्पताल प्रशासन निपट पाने में अक्षम साबित हो रहा है।

मरीजों की संख्या लगातार बढ़ी है। जिसके लिए डॉक्टर्स की डिमांड की गई थी। जिसमें से 9 और डाक्टर मिले हैं। हॉस्पिटल में दवाएं और सभी सामान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

डॉ। राजीव लोचन, डायरेक्टर, बलरामपुर चिकित्सालय