कैसी होगी दुनिया?
अगर ऐसा ही होता रहा, तो आगे चलकर क्या होगा? दुनिया कैसी होगी? इंसान कैसे होंगे? तकनीक पर हमारी बढ़ती निर्भरता दुनिया को और बेहतर बनाएगी या फिर कुछ गड़बड़ भी हो सकती है? जो पॉजिटिव सोच रखने वाले हैं, तकनीक पर आंख मूंदकर यकीन करते हैं, वो कहते हैं कि दुनिया आगे चलकर आज से बेहतर ही होगी। इंसान की जिंदगी और आसान होगी। मगर, ये जरूरी तो नहीं। हो सकता है कि आगे चलकर इंसान उस तकनीक, उस मशीन का ग़ुलाम बन जाएए जो ख़ुद इंसान ने ही ईजाद की! ये भी हो सकता है कि तकनीक इंसानियत की तबाही का सबब बन जाए। बीबीसी की रेडियो सीरीज द इन्क्वायरी के एक एपिसोड में इसराइल के इतिहासकार युवल नोआ हरारी से बात कर इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई। युवल हरारी येरूशलम की हीब्रू यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाते हैं।
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दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे हम
युवल हरारी ऐसे इतिहासकार हैं जो इतिहास के सबसे बड़े सबक जो इतिहास से नहीं सीखते, वो इतिहास को दोहराने के लिए शापित होते हैं, पर दिल से यक़ीन करते हैं। उनके मुताबिक, आगे चलकर इंसानों के बीच गैरबराबरी बढ़ेगी। कुछ इंसानों का दर्जा बाकियों के मुकाबले बहुत ऊंचा हो जाएगा। वैसे मानवता का इतिहास ग़ैरबराबरी का ही रहा है। ये स्थिति आज से हजारों साल पहले भी थी, आज भी है और शायद आगे भी रहेगी। आज से तीस हजार साल पहले के भी इंसानों के बीच अमीर और गरीब की खाई थी और वक्त के साथ हालात और बिगड़ गए।

बराबरी का क्या होगा?
लेकिन उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति और साम्राज्यवाद के विस्तार ने इंसानों के बीच बराबरी का माहौल बनाया। नए कारखानों में काम करने के लिए लोग चाहिए थे। जंग लडऩे के लिए भी भारी तादाद में इंसानों की जरूरत थी। इस जरूरत ने समाज में बराबरी लाने में मदद की। युवल हरारी के मुताबिक, औद्योगिक क्रांति से समाज में बराबरी के सिद्धांत को बल मिला। लेकिन एक बार फिर आम जनता की हालत कमजोर हो रही है।

इंसानों पर मशीनें भारी
आज ऐसी मशीनें बनाई जा रही हैं, जो इंसानों की जगह ले रही हैं। कारखानों में रोबोट काम कर रहे हैं। बैंकों में, शेयर बाजार में कंप्यूटर इंसानों का काम कर रहे हैं। जंगें लडऩे के लिए भी इंसानों की जरूरत कम से कमतर होती जा रही है। जैसे-जैसे तकनीक बेहतर होगीए बहुत से ऐसे काम जो आज इंसान करते हैं, वो मशीनें करेंगी। ऐसे में इंसानों का ऐसा वर्ग तैयार होगा, जिसकी समाज को, देश को जरूरत ही नहीं होगी। उनकी किसी को फिक्र नहीं होगी। उनकी आवाज कोई सुनेगा नहीं। न उनकी पढ़ाई की किसी को फिक्र होगी, न उनकी सेहत और न ही उनके बेहतर रहन-सहन को लेकर कोई सोचेगा। क्योंकि तकनीक की दुनिया में ये इंसान ही गैरजरूरी हो जाएंगे।

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खतरा कौन?
सिर्फ मशीनें ही इंसानियत के लिए खतरा नहीं। खुद इंसान ही इंसान के लिए खतरा बन जाएंगे। ऐसे में, मौत हर इंसान को बराबरी पर ला खड़ी करती है। पहले के दौर में बीमारियों का बोलबाला था। अब बायोइंजीनियरिंग के जरिए इंसान के अंगों में हेर-फेर किया जा रहा है।यानी वो दिन दूर नहीं जब प्रयोगशाला में इंसान की उम्र बढ़ाने का फॉर्मूला तैयार किया जा सकेगा। अगर एक बार इंसान अपनी उम्र सवा सौ या डेढ़ सौ साल तक बढ़ा सकाए तो आगे चलकर वो इसे दस लाख साल तक भी बढ़ा सकेगा। इससे समाज में असमानता और बढ़ेगी।

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क्या होगी स्थिति?
अगर ऐसा हुआ तो इंसानियत दो हिस्सों में बंट जाएगी। एक तो वो जो तकनीकी रूप से सुपरह्यूमन होंगे। दूसरे वो जो कमजोर और दूसरे दर्जे के इंसान होंगे। जिनके पास बेहतर संसाधन होंगे, वो इसकी मदद से बाकी दुनिया को अपना ग़ुलाम बना लेंगे। वैसे, डर इस बात का भी है कि एक दौर ऐसा आए कि तकनीक ही इंसान की माई-बाप बन जाए। आज मशीनें ऐसे-ऐसे काम कर रही हैं, जो इंसान के बस की बात नहीं। मगर मशीनें और तकनीक जिस तरह से इंसानों पर हावी हो रही हैं, उससे इंसानियत के लिए आगे का दौर बेहद बुरा हो सकता है।

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