फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं

भारत में एक तरफ जहां अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। वहीं दूसरी ओर भारतीय सिनेमा नए-नए दौर से गुजर रहा था। उस वक्त कई ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने बॉलीवुड को पाल-पोसकर चलना सिखाया। ऐसे ही एक निर्देशक, प्रोड्यूसर और एक्टर थे वी. शांताराम। बॉलीवुड में मनोरंजन से इतर प्रयोगवादी फिल्में करने का श्रेय शांताराम को जाता है।

दो आंखे बारह हाथ वाला मशहूर डायरेक्‍टर,जिसने सिनेमा को रंग दिया

पहला मूविंग शॉट बनाने का श्रेय

शांताराम का पूरा नाम राजाराम वानकुर्दे शांताराम था। लोग प्यार से उन्हें वी शांताराम कहकर बुलाते थे। अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने के लिए पढ़ाई-लिखाई की जरूरत नहीं होती। इस बात को साबित किया शांताराम ने। नाम मात्र की शिक्षा लेने के बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा को वो सबकुछ सिखा दिया जो सालों तक याद किया जाएगा। बतौर निर्देशक उन्होंने अपने स्टूडियो में नई-नई मशीनों को उपयोग किया, यही वजह है कि पहली मूविंग शॉट बनाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। चंद्रसेना फिल्म में उन्होंने पहली बार ट्राली का प्रयोग किया। चंद्रसेना फिल्म में उन्होंने पहली बार ट्राली का प्रयोग किया।

दो आंखे बारह हाथ वाला मशहूर डायरेक्‍टर,जिसने सिनेमा को रंग दिया

चार्ली चैपलिन ने देखी थी इनकी फिल्म

साल 1921 में आई मूक फिल्म 'सुरेख हरण' से शांताराम ने अपने करियर की शुरुआत की। चार साल बाद आई फिल्म 'सवकारी पाश' में उन्होंने किसान की भूमिका निभायी। इन सालों में शांताराम को फिल्म निर्माण की समझ भी आ गई और उन्होंने बतौर निर्देशक नई पारी की शुरुआत की। उन्होंने साल 1927 में पहली फिल्म 'नेताजी पालकर' बनाई बाद में अपने बैनर राजकमल कला मंदिर की स्थापना की। साल 1939 में शांताराम ने एक मराठी फिल्म 'मनूस' का निर्माण किया, यह उन चुनिंदा भारतीय फिल्मों में एक है जिसे चार्ली चैपलिन ने भी देखा। चैपलिन ने यह फिल्म देखने के बाद शांताराम की काफी तारीफ की थी।

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दो आंखे बारह हाथ ने रच दिया इतिहास

शांताराम की सर्वाधिक चर्चित फिल्म दो आंखें बारह हाथ है, जो 1957 में प्रदर्शित हुई। यह एक साहसी जेलर की कहानी है, जो छह कैदियों को बिल्कुल नए तरीके से सुधारता है। अपनी अनूठी कथा, पृष्ठभूमि के कारण यह फिल्म आज भी दर्शकों को पसंद आती है। बताते हैं कि शाहरुख खान ने अपने बेटे आर्यन को एक्टिंग सीखने के लिए यही फिल्म देखने को कहा था। इस फिल्म को राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक सम्मान दिया गया था। साथ ही इसने बर्लिन फिल्म महोत्सव में सिल्वर बियर सहित कई विदेशी पुरस्कार जीता।

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समाज को संदेश देने वाली फिल्मों पर जोर

शांताराम ने समान को संदेश देने वाली फिल्मों पर जोर दिया। उन्हें पता था कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन और मसाला के लिए नहीं बल्िक देश और समाज को सुधारने का काम भी कर सकती हैं। इसीलिए उनकी फिल्में इसी टॉपिक के इर्द-गिर्द घूमती थीं। गीत और संगीत शांताराम की फिल्मों का एक और मजबूत पक्ष होता था। उनकी फिल्मों में जहां कहानी बेहद सधे हुए तरीके से आगे बढ़ती थी, वहीं गीत और संगीत उनमें चार चांद लगाते। मिसाल के रूप में 'झनक झनक पायल बाजे' को देखा जा सकता है।

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