- ऐसी मां को दुत्कार भेजिए जिसने कर्ण को जन्म देने के बाद कूड़े के ढेर पर फेंक दिया

- लाख टके का सवाल क्या कर्ण लावारिस है? जवाब दिल पर हाथ रखकर दें।

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LUCKNOW: ऐसी मां पर दुत्कार है जन्म देने के कुछ देर बाद ही कूड़े के ढेर पर फेंक दिया कर्ण को। खून से सना, जिसकी कॉर्ड तक ठीक से नहीं कटी थी। वह भी हरदोई-सीतापुर बायपास के पास रात ढाई बजे के लगभग सूनसान दुबग्गा एरिया में। लेकिन वहीं रहने वाली नौ बच्चों की एक मां सफीका के दिल में ममता का सागर अभी तक सूखा नहीं था। तभी तो इतनी देर रात गए कर्ण की रोने की आवाज ने उसे जगा दिया। उसने अपने शौहर तौफीक को जगाया और कर्ण के रोने की बात बताई।

तौफीक ने आवाज के सहारे रात के अंधेरे में कर्ण को कूड़े के ढेर पर पाया। उसने उसे गोद में लेने में जरा भी देर नहीं लगाई। कुछ क्षणों के बाद कर्ण सफीका की गोद में था, जो उसे कलेजे से लगाए पूरे घर को उठा चुकी थी। नवजात की जरूरतों से वाकिफ सफीका ने कर्ण के लिए व्यवस्था करने में देर नहीं लगाई। सफीका ने कर्ण की गर्भनाल अच्छे से काटी उसे साफ किया। रुई के फाहों से दूध पिलाया। तब तक सुबह हो रही थी। तौफीक उसे लेकर डॉक्टर के पास गया, जिसने कर्ण की मेडिकल जांच की और जरूरी इंजेक्शन वगैरह दिए।

अब तक यह बात पूरे इलाके में फैल चुकी थी। सफीका और तौफीक कर्ण को अपना बच्चा मान न सिर्फ बताशे बांटने में जुटे थे, बल्कि पूरा परिवार पटाखे फोड़ थाली बजाकर परिवार में नए सदस्य के आने की खुशियां मना रहा था। इस बीच आंचल के इतने सारे साये तले कर्ण गहरी नींद सो रहा था। इस परिवार की खुशियों में भंग डालने का काम किया पुलिस ने, जो उन्हें नियम-कायदों की दुहाई दे कर्ण को ले आई। कागजी खानापूरी के बाद कर्ण को चाइल्ड लाइन के सुपुर्द कर दिया गया। वहां से कर्ण अब राजकीय बाल गृह शिशु में पहुंच कई और मांओं के आंचल में पहुंच चुका है।

इधर सफीका और तौफीक कर्ण को वापस पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। उनका सवाल यही है कि हमारी क्या गलती है। हमने तो उसे अपना बच्चा देखते ही मान लिया। सफीका का तो रो-रो कर यही कहना है, 'मेरा बच्चा मुझे वापस दे दो.' यह तो बताना भूल ही गया कि तौफीक चूडि़यां बेंच कर अपने भरे-पूरे परिवार और जिंदगी से खुश है। कर्ण को भी अपनाने को तैयार है। कैसे करेगा परवरिश पर उसका जवाब यही है 'साहब हम गरीब जरूर हैं गलीच नहीं.'

विशेष आग्रह: जब तौफीक जैसा शख्स गरीब और गलीच में फर्क समझता है, तो हमारी आंखों का पानी क्यों मरा रहा है। लगभग एक माह पहले इसी सिटी को मुस्कान मिली थी और अब कर्ण। इसको जन्म देने वाली मां तो संभवत: इस कूड़े के ढेर पर फेंक एक ही भूल का पश्चाताप कर रही हो, लेकिन हम क्यों।