- रेलवे अस्पताल और डाक चिकित्सालय में भी प्रॉपर इलाज और दवाओं का अभाव

- रेलवे के स्टोर में नहीं रहतीं दवाएं, डाक चिकित्सालय में महज दो डॉक्टर्स ही हैं तैनात

GORAKHPUR: बीआरडी की व्यवस्थाओं की हकीकत तो सबके सामने है ही। शहर के कुछ अन्य प्रमुख सरकारी विभागों के चिकित्सालयों में भी हाल कुछ अच्छा नहीं चल रहा। ललित नारायण मिश्र रेलवे अस्पताल और डाक विभाग का डाक चिकित्सालय जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते अव्यवस्था का दंश झेल रहे हैं। रेलवे अस्पताल में जहां मरीज दवाओं के टोटे से परेशान हैं। वहीं, डाक चिकित्सालय में तो गंभीर रोगों के इलाज का कोई इंतजाम ही नहीं है। इन अस्पतालों में पहुंची दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम को दोनों ही जगह सिर्फ मरीज के लिए दिक्कतें ही नजर आईं।

बिना दवा का रेलवे अस्पताल

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम बुधवार दोपहर 12 बजे ललित नारायण मिश्र रेलवे अस्पताल पहुंची। ओपीडी में मरीजों की भीड़ जुटी थी। डॉक्टर तो बैठे थे लेकिन लेकिन मरीजों को दवा नहीं मिल पा रही थी। पता चला कि अस्पताल के स्टोर में कुछ कॉमन दवाओं को छोड़ अन्य कोई भी दवा नहीं है। वहां बैठे जंगल मातादीन गुलरिहा निवासी रामधनी ने बताया कि रेलवे के इलेक्ट्रिक डिपार्टमेंट के बीजी ऑफिस में कार्यरत हैं। शुगर, ब्लड प्रेशर काफी अधिक बढ़ जाने से उनकी हालत इन दिनों गंभीर बनी हुई है। बताने लगे कि अस्पताल में दवाओं की कमी का ये हाल काफी समय से चल रहा है। कभी भी स्टोर में दवाएं नहीं रहतीं। डॉक्टर तो देख लेते हैं लेकिन दवा ना होने के चलते हर बार अगले दिन आने को कहा जाता है। कई लोगों ने यहां तक कहा कि अस्पताल की इस हालत की वजह से उन्हें कई बार प्राइवेट डॉक्टर्स का सहारा लेना पड़ता है।

कोट्स

यहां डॉक्टर तो देख लेते हैं लेकिन स्टोर में दवाएं कभी नहीं मिलतीं। हर बार अगले दिन आने को कहा जाता है। मजबूरी में बाहर से दवा खरीदनी पड़ती है।

- बैजनाथ प्रसाद, रिटायर्ड रेल कर्मचारी

स्टॉक में दवाएं ना होने की वजह से अगले दिन बुलाया जाता है और बाद में लोकल परचेजिंग कर दवाएं देते हैं।

- राजेंद्र प्रसाद, रिटायर्ड रेल कर्मचारी

मरीजों को दवाओं के लिए अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं। हर बार बस टाल दिया जाता है।

- तफज्जूम हुसैन, रिटायर्ड रेल कर्मचारी

वर्जन-- सीएमडी रेलवे अस्पताल

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डाक अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं

डाक विभाग के डाक चिकित्सालय की बात करें तो हाल इससे भी बुरा है। इस अस्पताल में मात्र एक नेत्र चिकित्सक और दूसरा सामान्य फिजीशियन तैनात हैं। बड़ी बीमारी वाले मरीजों को सीधे जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है। वहीं, संक्रमण के इस सीजन में दवाओं की खरीदारी भी अब तक नहीं हुई है। दोपहर दो बजे यहां पहुंची दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम को कर्मचारियों ने बताया कि इस अस्पताल के लिए 40 लाख 60 हजार रुपए का बजट निर्धारित है। इसी बजट में साल भर दवाओं की खरीद सहित इक्युपमेंट्स से लेकर स्टेशनरी और बाकी चिकित्सीय सामग्री की खरीदारी की जानी है। दवाओं की अभी तक खरीदारी ना किए जाने पर कर्मचारियों ने बताया कि 7-8 दिन पहले डिमांड ऑर्डर भेजा गया है। जल्द दवाएं आ जाएंगी।

डाक चिकित्सालय

डेली आने वाले मरीज - 100-150

कुल डॉक्टर्स - 02

कोट्स

गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए यहां कोई व्यवस्था ही नहीं है। दवाओं की भी किल्लत के चलते परेशान होना पड़ता है।

- जानकी, सीनियर सिटीजन

दवा की किल्लत रहती है। जो दवा नहीं मिलती उसे बाहर से लेना पड़ता है। गंभीर रोगों का इलाज भी यहां नहीं हो पाता

- संदीप सिंह, प्रोफेशनल

एक नेत्र चिकित्सक हैं और दूसरे जनरल फिजीशियन। डॉक्टर की कमी के कारण गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज जाना पड़ता है।

- चंद्रभान, कर्मचारी

वर्जन

डाक चिकित्सालय में दो डॉक्टर्स की तैनाती है। जो भी कर्मचारी या उनके परिवार के सदस्य बीमार पड़ते हैं, उनका इलाज होता है। दवाइयां भी कम पड़ती है तो उसकी खरीदारी कराई जाती है।

- देवव्रत त्रिपाठी, एसएसपी, डाक विभाग