- मेडिकल कॉलेज में अफसरों की लापरवाही पड़ी भारी

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-लिक्विड ऑक्सीजन के मामलें को नजरअंदाज करता रहा मेडिकल कॉलेज प्रशासन

GORAKHPUR: हर तरफ बस चीख-पुकार। कोई अपने लाडले की लाश गोद में उठाए भाग रहा है। कोई अपने मासूम की बची सांसों को बचाने के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल का रुख कर रहा है। दर्द और आंसुओं का यह खतरनाक मंजर था शुक्रवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में, जिसे देख किसी का भी कलेजा फट जाए। अपने लाडलों की मौत का मातम मनाती माएं थीं, जिन्हें देखकर किसी का भी कलेजा फट जा रहा था।

दर्द बयां करते रोने लगा पिता

पडरौना के रहने वाले मृत्युंजय का छह दिन का बच्चा इंसेफेलाइटस वार्ड में मौत और जिंदगी की जंग लड़ रहा था। वह वार्ड से बाहर निकलकर आए। जब दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने उनसे बात करने की कोशिश तो अपना दर्द बयां करते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगे। बोले जब ऑक्सीजन ही नहीं है तो अब बच्चे की उम्मीद भी क्या करना? कभी भी मौत की सूचना के लिए तैयार हूं।

मासूम की लाश लिए निकला पिता

मृत्युंजय अभी अपने दर्द को बयां कर ही रहे थे कि हाथ में 11 महीने के बच्चे की डेडबॉडी लिए बस्ती जिले दीपचंद बाहर निकले। आंखों में आंसू और आवाज में गुस्सा था। अपनी बच्ची की मौत से बेजार दीपचंद ने कहा कि इस अस्पताल में कोई इलाज के लिए न आए। यहां ना तो डॉक्टर जिम्मेदार हैं और ना हेल्थ एंप्लाइज। जब ऑक्सीजन ही नहीं तो भर्ती क्यों कर रहे समझ में नहीं आ रहा। मेरी बेटी को लील लिया।

भगवान भरोसे हैं मरीज

खोराबार के रहने वाले राधेश्याम सिंह अपनी पोती को लेकर पूरी तरह निराश थे। उनका कहना था कि दवा तो पहले से खरीद रहे थे और ऑक्सीजन भी खत्म है। ऐसे में मरीज भगवान भरोसे हैं। तभी आंखों से छलकता आंसूओं के साथ हाथ में बेटी प्रतिज्ञा का डेडबाडी लेकर अस्पताल से निकले देवरिया के रहने वाले अमित सिंह बेहद गुस्से में थे। कहा कि मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स ने उनकी बेटी को मार डाला। बिना ऑक्सीजन के इलाज करते रहे, लेकिन रेफर नहीं किया। वार्ड के बाहर मौजूद सभी फैमिली मेंबर्स इसी मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे और हर पल उनकी चीख-पुकार उनका दर्द बयां कर रही थी।

मौतों का पलड़ा जिंदगी पर भारी

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हो रही मौतों का पलड़ा जिंदगी पर पल-पल भारी पड़ रहा था। इसका डर वहां मौजूद हर उस व्यक्ति के चेहरे पर नजर आ रहा था। जिसके कलेजा का टुकड़ा इस जंग में हार की कगार पर खड़ा था। थमी सांसें और आंखों से बहते आंसू और उन सबके बीच जेहन में उठ रहे व्यवस्था पर सवाल की छटपटाहट हर फैमिली मेंबर्स के चेहरे पर साफ झलक रही थी।

हर तरफ बेबसी का आलम

मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खत्म होने का सीधा दर्द वहां एडमिट फैमिली मेंबर्स के चेहरे पर देखने को मिल रही थी। अपनी गलती छिपाने के लिए डॉक्टर्स की ओर से बार-बार आईसीयू केबिन के गेट को बंद कर दिया जा रहा था। इससे फैमिली मेंबर्स को और भी डरे सहमे थे। कइयों को भी यह डर सता रहा था कि पता नहीं उनका लाडला या लाडली अब इस दुनिया में है भी या नहीं। मौका मिलते ही केबिन के बाहर जाकर निहार आते लेकिन पास तक न जाने की मनाही उनकी परेशानी को और बढ़ा रही थी।