'झूठ पर चल रही है फिल्म इंडस्ट्री'

- दिल्ली में डूब गया गोरखपुर का सितारा

- हेमंत मिश्रा ने जोशीले, बैडिंट क्वीन, कंपनी जैसी फिल्मों में किया था काम

- आई नेक्स्ट को दिया था हेमंत मिश्रा ने अपनी लाइफ का लास्ट इंटरव्यू

GORAKHPUR : 'जामिनशाह' के जरिए फेमस होने वाले हेमंत मिश्रा का वेंस्डे को दिल्ली में निधन हो गया। अपनी अदाकारी से लोगों को हंसाने वाला चेहरा सदा के लिए खामोश हो गया। गोरखपुर के साथ-साथ मुंबई और दिल्ली में जब यह खबर फैली तो लोगों का यकीन नहीं हुआ। रंगकर्म से जीवन शुरू करके एनएसडी और फिल्म इंस्टीट्यूट तक का सफर करने वाले हेमंत मिश्रा का गोरखपुर से गहरा जुड़ाव था। उन्होंने पहली बार गोरखपुर में ओपन एयर थियेटर का कांसेप्ट जनरेट किया। अपने जीवन के आखिरी दिनों में एक मैरेज पार्टी में शामिल होने गोरखपुर आए हेमंत मिश्रा आठ जून को रंगाश्रम पहुंचे। इस दौरान उन्होंने आई नेक्स्ट से शेयर की दिल की बातें, पेश हैं हेमंत मिश्रा की लाइफ का लास्ट एंड एक्सक्लूसिव इंटरव्यू।

सवाल: आप ने अपना करियर कैसे स्टार्ट किया?

जवाब : सिनेमा में बहुत झूठ फरेब है। खाते हैं चोखा-भात, बताते हैं पनीर- पुलाव। इसी झूठ पर पूरी फिल्म इंडस्ट्री चल रही है। फिल्मों का ऑफर बहुत था लेकिन दिखावा रास नहीं आया। इसीलिए फिल्मों के बजाय नाटक को पंसद किया। एनएसडी पास करने के बाद भी नाटक को चुना। क्98ब् में टीवी सीरियल 'हम लोग' में काम करने का मौका मिला, लेकिन तब लगा कि सीरियल में एक खास इमेज में बंधकर रह जाएंगे। सीरियल छोड़ने के बाद सीधे फिल्म इंस्टीट्यूट चले गए। वहां शेखर कपूर के साथ पहली बार फिल्म 'रुका हुआ फैसला' में ब्रेक मिला, लेकिन फिल्मों में टिक नहीं सके।

सवाल: आपका गोरखपुर से खास रिश्ता है, कुछ इस रिश्ते के बारे में बताइए।

जवाब: मैं मूल रूप से चौरीचौरा के डूमरीखास गांव का रहने वाला हूं। मेरे पिता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ। रामदरश मिश्र को तो आप जानते होंगे। हमारी फैमिली मोहद्दीपुर में रहती थी। मेरा जन्म भी मोहद्दीपुर में हुआ था। पढ़ाई पूरी करने के बाद एक्टर बनने का शौक था, इसलिए दिल्ली की राह पकड़ ली। एनएसडी पास आउट करने के बाद दिल में मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा जागा। तब मुफलिसी के दौर में नाटक करना संभव नहीं था। यहां आए तो पता करने पर मालूम हुआ कि रुपातंर नाट्य संस्था है जिससे जुड़कर नाटक किया। लेकिन बात नहीं जमी। रुपातंर से अलग होने पर अलग रास्ता चुन लिया। 'आग' से जुड़े तो क्98फ् में नाटक 'जामिनशाह' की चुनौती सामने खड़ी हुई। बजट था नहीं और पब्लिसिटी के बिना बात नहीं बनती। गेरू में सरेस मिलाकर वाल पेटिंग के जरिए जामिनशाह का प्रचार किया गया। इसकी वजह से जामिनशाह को पब्लिसिटी भी मिली और पब्लिक के बीच तारीफ भी।

सवाल: उस जमाने में रंगमंच को एक संघर्ष कहा जाता था, क्या आपने भी ऐसा कुछ महसूस किया?

जवाब: नाटक जामिनशाह के बाद सिटी में ऑडिटोरियम की तलाश शुरू हो गई। यूपी के तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह ने ऑडिटोरियम की नींव रखी। वर्ष क्99फ् में विवादों में फंसने से कंस्ट्रक्शन रूक गया तो लोकल कलाकार परेशान हो गए। तब प्रैक्टिस करने के लिए आइडिया आया कि मंच तो बन ही सकता है। अ‌र्द्धनिर्मित प्रेक्षागृह के पास खाली पड़ी जमीन पर पीपल और पाकड़ के नीचे मिट्टी पाटकर मंच बनाया गया। बस वहीं से रंगाश्रम का सफर शुरू हो गया। केसी सेन जैसे लोग जुड़ते चले गए और रंगाश्रम का कारवां बनता गया। रंगाश्रम दुनिया की ऐसी पहली संस्था हैं जिसने एक हजार से ज्यादा नाटक किए हैं। पहला ओपन एयर थियेटर रंगाश्रम के रूप में बनाया गया।

सवाल: आप मोबाइल इंस्टीट्यूट कहे जाते हैं। आखिर इसका क्या राज है?

जवाब: मैं जहां जाता हूं, वहीं पर एक्टिंग की क्लास लगा देता हूं। एक बात साफ तौर पर जानिए कि एक्टर काहिल होता है। वह स्क्रिप्ट नहीं पढ़ना चाहता है। उसे कहानी सुनानी पड़ती है। मैंने जब नये लोगों के साथ प्रैक्टिस शुरू की तो ऐसा लगा कि सब भाग जाएंगे, लेकिन कड़ी मेहनत से वो लोग जिनको एक्टिंग की एबीसीडी तक नहीं आती थी, उनको भी सीखने का मौका मिला। धीरे- धीरे रंगाश्रम के करीब साढ़े तीन सौ नाटक में एक्टिंग कर ली। देखिए, जब भी गोरखपुर आता हूं तो पुराने साथियों को रंगाश्रम बुलाकर उनको कुछ न कुछ गुर सिखाता हूं। आज भी इनको एक्टिंग के गुर बता रहा था।

सवाल: दूरदर्शन पर आप का एक विज्ञापन काफी हिट हुआ था। उसके बाद क्या किया?

जवाब: हांहां, आपको याद है, उतनी पुरानी बात, फर्क तो पड़ता है भाई, आज के जमाने में फर्क तो बहुत पड़ा है। हमने अपना कैरियर 'हम लोग' धारावाहिक से शुरू किया। दिल्ली से मुंबई, और फिर दिल्ली के सफर के बीच कई फेमस एक्टर्स के साथ काम किया। बीच में ही एक विज्ञापन भी कर लिया। मानव रहित रेलवे गेट पार करने के दौरान होने वाले ट्रेन एक्सीडेंट के विज्ञापन से मुझे घर-घर में ख्याति मिली। शेखर कपूर की 'रुका हुआ फैसला' से फिल्मी कैरियर शुरू हुआ। इसके बाद जोशीले, बैडिंट क्वीन, हमारा दिल आपके पास है, प्रथा, कंपनी, बिजूका, बैंड बाजा बारात जैसी फिल्में मिली। दस्तूर जैसे कई टीवी सीरियल्स ने मुझे अलग पहचान दिलाई। हालांकि मेरी कभी किसी से पटी नही, चाहे वह एक्टर हो या डायरेक्टर। मेरे अक्खड़पन और समझौता न करने की जिद की वजह से मुंबई छोड़ना पड़ा।

सवाल: मुंबई छोड़ने के बाद क्या किया। आगे क्या इरादा है?

जवाब: जिदंगी है भाई, चल रही है। पता नहीं कितने दिनों तक चलेगी। मैंने जब मुंबई छोड़ी तो दिल्ली के उत्तम नगर में वेलफेयर एसोसिएशन बना लिया। छत पर मंच बनाकर एक्टर्स को ट्रेनिंग देता हूं। एक टीम है जो साल में एक बार नाटक परफॉर्म करती है। यहां पर भी ऐसे लोग हैं जो लगातार मेहनत कर रहे हैं। लेकिन उनको मीडिया और समाज की बहुत जरूरत है। आप लोगों की मदद मिले तो गोरखपुर में प्रेक्षागृह का सपना पूरा हो जाएगा।