- एसएन की ओपीडी में लगता है एमआर का जमावड़ा

- अस्पताल प्रशासन की मनाही के बावजूद नहीं लग पा रही लगाम

आगरा। एसएन मेडिकल कॉलेज में एमआर (मेडिकल रीप्रजेंटेटिव) का कब्जा है। ओपीडी में पेशेंट को देखने के टाइम पर डॉक्टर्स एमआर से डिस्कशन में बिजी रहते हैं। इससे मरीज परेशान रहते हैं। डॉक्टर से परामर्श के लिए घंटों इंतजार करते हैं।

मंगलवार दोपहर 12 बजे। स्थान एसएन मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग की ओपीडी में मरीज पर्चा लेकर खड़ा है। डॉक्टर एमआर से उनके प्रोडक्ट की जानकारी ले रहे हैं। एमआर भी मौका भुनाते हुए दवाइयों के बारे में बता रहा है कि और कंपनियों के मुकाबले हमारी दवाई बहुत अच्छी हैं। इस बीच मरीज डॉक्टर से डांट खाने के डर से चुपचाप खड़ा देख रहा है। जब एमआर ने अपनी पूरी बात कही, उसके बाद डॉक्टर मरीज को देखते हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज में हर रोज कुछ ऐसा ही हाल रहता है। यहां दवा की मल्टी नेशनल कंपनियों के एमआर का कब्जा बना हुआ है, जो मरीजों को साइड कर अपने प्रॉडक्ट्स का प्रजेंटेशन देते हैं। डॉक्टर्स भी वही दवाइयां मरीज को लिख बची हुई कसर पूरी कर देते हैं।

ओपीडी में रोज आते हैं 50-60 एमआर

ओपीडी में अलग-अलग विभागों में हर रोज 50 से 60 एमआर आते हैं। अलग-अलग कंपनियों से आए एमआर के बीच जबरदस्त कम्पटीशन के चलते डॉक्टर को सबसे पहले अपने प्रोडक्ट की जानकारी देने में ये पूरा जोर लगा देते हैं। यहां डॉक्टर्स जब मरीजों को देख रहे होते हैं, तभी एमआर ओपीडी में धावा बोलते हें। मरीजों की लंबी लाइन होने के बाद भी डॉक्टर्स उन्हें जल्दी निपटाने के चक्कर उनका प्रजेंटेशन देखते हैं।

कुछ विभागों पर रहता है ज्यादा फोकस

अस्पताल के कुछ विभागों में एमआर का ज्यादा फोकस रहता है। अस्पताल के त्वचा रोग, सांस संबंधी रोग, हृदय रोग और सामान्य बीमारियों को देखने वाले रोगों पर ज्यादा फोकस होता है। इन विभागों के डॉक्टर्स को अच्छे से बातचीत कर और कमीशन का लालच देकर महंगी दवाइयां मरीजों को लिखने के लिए कहा जाता है। नतीजा भी उनके मनमाफिक ही निकलता है। डॉक्टर को दिखाने के बाद मरीज को बाजार में महंगी दवाइयां खरीदने में जेब ढीली करनी पड़ती है।

डीजी के निर्देश की उड़ रही खिल्ली

यही नही ओपीडी परिसर में डीजीएमई के निर्देश भी चस्पा है कि डॉक्टर्स बाहर की दवाइयां न लिखें, सिर्फ अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां ही लिखें। लेकिन असलियत यह है कि बेहद सामान्य दवाई भी मरीजों को बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। एमआर की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए अस्पताल प्रशासन की ओर से इनके आने को लेकर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई, बल्कि डॉक्टर्स से मिलने का समय तय कर दिया गया। ओपीडी में दोपहर एक बजे बाद ही एमआर डॉक्टर्स से मुलाकात कर सकते हैं, लेकिन सुबह से ही इनका आना शुरू हो जाता है। सरकारी संस्थान में प्राइवेट प्रोडक्ट की ब्रांडिंग होना अपने आप में नियमों के विरुद्ध है, लेकिन फिर भी एमआर खुलेआम अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग करते घूमते हैं।