पहले गैंगरेप, शिकायत पर जानलेवा हमला, फिर एसिड अटैक और अब पिलाया एसिड

-जिंदगी और मौत के बीच ट्रॉमा सेंटर में झूल रही है पीडि़त महिला

-जनवरी में हैवानों ने दी थी धमकी, लेकिन नहीं मिली पुलिस सुरक्षा

हैवानियत की हद

2008 : महिला के साथ गैंगरेप

2011 : जान से मारने की कोशिश

2013 : पीडि़त पर एसिड अटैक

2017 : जबरन पिलाया एसिड

: वह रायबरेली में पति और बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थीलेकिन, वर्ष 2008 मे दरिंदों की बुरी नजर उस पर पड़ गई और उन लोगों ने रीता (बदला नाम) के संग गैंगरेप कर डाला। उनकी करतूत न खुलने पाए इसलिए दरिंदों ने रीता को चाकुओं से गोद डाला। पर, इस बार किस्मत ने रीता का साथ दिया और उसकी जान बच गई। रीता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। तीन साल तक दरिंदे रीता पर एफआईआर वापस लेने के लिये दबाव बनाते रहे। पर, वह झुकने को तैयार न हुई। दरिंदों ने रीता पर एसिड अटैक कर उसकी जुबान बंद करने की कोशिश की। हालांकि, इस बार भी दरिंदे नाकाम रहे और रीता बाल-बाल बच गई। दहशत में आई रीता लखनऊ आ गई और एसिड अटैक सरवाइवर्स द्वारा संचालित रेस्टोरेंट शीवाज हैंगआउट में नौकरी करने लगी। गुरुवार को पति व बच्चों से मिलकर लौट रही रीता को दरिंदों ने ट्रेन में पकड़कर जबरन तेजाब पिला दिया। जीआरपी कर्मियों ने उसे गंभीर हालत में रीता को ट्रॉमा सेंटर में एडमिट कराया। जहां वह मौत से जंग लड़ रही है।

पहले दी थी धमकी

दबंगों ने जनवरी में ही शीरोज हैंगाआउट में काम कर रही रीता को नौकरी से निकालने व केस वापस लेने के लिए धमकी भरा पत्र भेजा था। काफी दबाव पड़ने के बाद डीएम व एसएसपी मौके पर पहुंचे थे और गोमती नगर थाने में इसकी एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए मांग के बावजूद उसे सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई। जिसके कारण दबंगों ने गुरुवार को गंगा गोमती से लखनऊ आ रही रीता को जबरन तेजाब पिलाकर मारने की कोशिश की। चारबाग स्टेशन पर वह उतरी तो भागती हुई जीआरपी थाने पहुंची। जहां से पुलिस ने शीरोज हैंगाआउट के सदस्यों को जानकारी देकर उसे ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया। जहां उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है।

हालत देख पुलिस, डॉक्टर भी कांपे

रीता को ट्रॉमा सेंटर में मेडिसिन विभाग में भर्ती कराया गया है। दर्द इतना अधिक कि आंसू सूख गए। उसका इलाज कर रहे डॉक्टर ने बताया कि रीता थोड़ी थोड़ी देर में अचानक चौंक उठती है। जिसे देख उसकी देखरेख में लगी पुलिस की सिपाही और डॉक्टर भी कांप उठे। डॉक्टर्स के अनुसार उसके शरीर में एसिड की काफी मात्रा दाखिल हो गई है। जिसके चलते उसके पेट में गहरे जख्म हो गए हैं। फिलहाल उसकी जरूरी जांचें कराकर इलाज किया जा रहा है। शुक्रवार को इंडोस्कोपी के बाद ही पेट के भीतर के सही हालात पता चल सकेंगे।

किया था गैंगरेप

आरटीआईएक्टिविस्ट व छांव फाउंडेशन के सदस्य आशीष शुक्ला ने बताया कि 2008 दिसंबर में उसके साथ गैंगरेप हुआ था। मामले में उसके गांव के ही भोंदू सिंह, ननकऊ सिंह, त्रिभुवन सिंह अभियुक्त हैं। इन्होंने गैंगरेप के साथ ही दूसरे जगह ले जाकर चाकू से उसे गोद डाला था। जिसके बाद 2009 में मामले की एफआईआर दर्ज हुई। इसके बाद केस वापसी को लेकर आरोपियों व उनके सहयोगियों ने 2011 में जान से मारने की कोशिश की। 2013 में उसके ऊपर एसिड से हमला किया। यही नहीं लखनऊ के आलमबाग में भी उसे जान से मारने की कोशिश की गई।

शीरोज में मिला था सहारा

पिछले वर्ष उसे छांव फाउंडेशन के तहत आसरा मिला और यूपी महिला कल्याण निगम व छांव फाउंडेशन के सहयोग से चलाए जा रहे शीरोज हैंगआउट गोमती नगर में रखा गया। जहां पर वह पिछले एक वर्ष से रहती हैं। होली के दिन वह अपने पति और बच्चों के पास रायबरेली गई थी। उनका परिवार राजीव गांधी आवास में रहता है। जहां से वह गुरुवार को गंगा गोमती ट्रेन से निकली थी। लेकिन हैवानों ने चारबाग पहुंचने से पहले ही उसे जबरन तेजाब पिला दिया।

आयोग ने भी लिया था संज्ञान

छांव फाउंडेशन के आशीष शुक्ला ने बताया कि अनुसूचित जाति आयोग ने भी मामले का संज्ञान लिया था, लेकिन मामले में कुछ नहीं हुआ। न तो महिला को न्याय मिला और न ही उसे सुरक्षा मुहैय्या कराई गई। बीते दिसंबर महीने में रीता ने एडीजी लॉ एंड ऑर्डर से मिलकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी। लेकिन, सुरक्षा नहीं मिल सकी।

वर्जन

पीडि़ता द्वारा सुरक्षा की मांग से संबंधित कोई प्रार्थना पत्र मुझे नहीं मिला। एक बार उसे धमकी मिलने की बात प्रकाश में आई थी तो गोमतीनगर थाने में मैने एफआईआर दर्ज करवाई थी।

मंजिल सैनी

एसएसपी, लखनऊ

पीडि़त शीरोज कैफे में काम करती हैं और महिला छात्रावास में रहती हैं। जनवरी में धमकी के बावजूद इनको सुरक्षा नहीं मुहैय्या कराई जा सकी। जिसका नतीजा सामने है।

- आशीष शुक्ला, डायरेक्टर छांव फाउंडेशन

एसिड के कारण मरीज के मुंह में छाले पड़ गए हैं। हालत गंभीर बनी हुई है। दूरबीन की जांच की जाएगी जिसके बाद पता चलेगा कि शरीर में अंदर कितना नुकसान हुआ है।

- डॉ। हैदर अब्बास, ट्रमा सेंटर

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