आजादी की जंग को किया मजबूत

कोलकाता के शचींद्र नाथ सान्याल का जन्म 1893 में हुआ था। 1908 में पिता की मौत के बाद वे वाराणसी आ गए। यह उनका देश को आजाद कराने का संकल्प ही था कि वे महज 15 साल की उम्र में आजादी के लड़ाई के मैदान में कूद पड़े। वाराणसी में शचींद्र ने न सिर्फ क्रांति की अलख को मजबूत किया बल्कि युवाओं को जोड़ कर अनुशीलन समिति बनाई। यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि इस समिति ने आजादी की लड़ाई में कितना अहम रोल अदा किया। सान्याल आजादी की लड़ाई की रणनीति बनाते रहे और अंग्रेजी हुकूमत को चोट पर चोट देते रहे। बनारस षडयंत्र कांड के समय सान्याल का नाम पहली बार पुलिस के रिकॉर्ड में आया। लाहौर कांड के बाद वे अंग्रेजी पुलिस की आंखों में 8 महीने तक धूल झोंकते रहे। अंत: उन्हें गिरफ्तार कर ही लिया गया। सान्याल को काकोरी कांड का दोषी बता कर आगरा जेल में भी रखा गया था। क्रांति की इस लड़ाई में अंग्रेजों ने उन पर बाकुड़ा (राजद्रोह) और काले पानी की सजा सुनाई थी। एक गंभीर बीमारी के बाद उन्हें गोरखपुर भेज दिया गया, जहां उनका 1943 में पुलिस की नजरबंदी के दौरान उनकी मौत हो गई।

अब केवल इतिहास के पन्नों में

आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले शचींद्र नाथ सान्याल ने यह सोचा भी नहीं होगा कि उनकी कुर्बानी को लोग इस कदर भूल जाएंगे। जिस देश में आजाद रह कर लोग फक्र महसूस कर रहे हैं, उन्हें यह भी पता नहीं कि सान्याल कौन थे? सबसे बड़ी विडंबना यह है कि उन्हें गोरखपुर में ही कोई नहीं जानता। जबकि उन्होंने सिटी में रह कर आजादी की लड़ाई में नई-नई रणनीति बनाई थी और अंग्रेजों को पानी पिला दिया था, लेकिन आज सान्याल को शायद ही गोरखपुर में कोई जानता है। जिन्हें सान्याल के बहादुरी के किस्से याद है, वे या तो फ्रीडम फाइटर के रिलेटिव्स हैं या फिर इतिहासकार। नई पीढ़ी को सान्याल के बारे में शायद कुछ नहीं मालूम। सिटी में सान्याल के नाम पर कुछ भी नहीं है। यदि है तो सिर्फ लाइब्रेरी की धूल फांकती किताबों के बीच कुछ पन्ने, जिनके अक्षर बमुश्किल पढ़े जाते हैं।

शचींद्र नाथ सान्याल ने आजादी की लड़ाई में अहम रोल अदा किया था। काकोरी कांड से लेकर बनारस और लाहौर में विद्रोह के अगुवा थे। सान्याल गोरखपुर से जुड़े थे। इसके बाद भी गोरखपुर में सान्याल को जानने वाले बहुत कम है। उनकी यादें सिर्फ कुछ किताबों में ही सिमटी हैं।

-श्यामानंद श्रीवास्तव, प्रेसिडेंट राम प्रसाद बिस्मिल परिषद