RANCHI: राजधानी के सेंटर में स्थित सदर हास्पिटल में व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जहां मरीजों को एक तो समय से खाना नहीं दिया जा रहा है। वहीं हर दिन उन्हें खाने में केवल चावल ही परोसा जा रहा है। रोटी की मांग किए जाने पर भी मरीजों को निराशा ही हाथ लग रही है। ऐसे में मरीजों के पास मजबूरी में चावल खाने के अलावा और कोई चारा नहीं है। वहीं किचन के स्टाफ का कहना है कि कांट्रैक्टर उन्हें आटे की सप्लाई ही नहीं कर रहा है तो रोटी अपने घर से लाकर तो नहीं बनाएंगे। यह स्थिति सदर हास्पिटल में पिछले कई दिनों से है, लेकिन किसी भी अधिकारी का ध्यान इस ओर नहीं गया।

हर दिन भ्भ्-म्0 मरीजों का खाना

हास्पिटल में एवरेज हर दिन म्0-म्0 मरीज भर्ती रहते है। जिसमें इमरजेंसी के अलावा जेनरल वार्ड और गायनी वार्ड में भर्ती मरीजों को खाना उपलब्ध कराया जाता है। जिसका जिम्मा इनाम कांट्रैक्टर को दिया गया है। जो मरीजों को सुबह का नाश्ता, दिन का खाना और रात का खाना उपलब्ध कराता है। इस दौरान मरीजों को सुबह नाश्ते में ब्रेड, फल, अंडा और दूध देना है। वहीं दिन में चावल, रोटी, दाल, सब्जी और रात में मरीजों को रोटी-सब्जी खिलाने का चार्ट दिया गया है।

लंच में दे रहे सुबह का दूध

किचन के स्टाफ्स भी कुछ अजीबोगरीब काम करते है। जिसे समझना मरीजों के वश के बाहर की बात है। एक तो सुबह को नाश्ते में दिया जाने वाला दूध मरीजों को लंच के समय दिया जाता है। वहीं रात का खाना पांच बजे ही मरीजों को परोसकर स्टाफ घर निकल जाता है। इतना ही नहीं दिन की सब्जी और दाल ही रात में भी मरीजों को सर्व कर दी जाती है।

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दिन रात चावल खिलाया जा रहा है, तो हमलोग क्या कर सकते हैं। पूछने पर बताया कि रोटी है ही नहीं। रात को मरीज को चावल खिलाना तो ठीक नहीं है। इसलिए घर से या बाहर लाकर कुछ खिला देते हैं। खाना देखकर तो लगता है कि दिन वाला ही दाल-चावल शाम को बांट देता है।

नूरजहां

सुबह नाश्ते में ब्रेड, अंडा और फल देता है। उसके बाद दिन में चावल, दाल, सब्जी दिया जाता है। दाल को देखकर तो खाने का मन ही नहीं होगा। वहीं दाल-सब्जी को लाकर शाम में भी दे दिया जाता है। ये लोग तो रोटी देते ही नहीं है।

किशोर बाखला

हमलोग तो खाना घर से मंगवा लेते है। लेकिन हास्पिटल में जो खाना दिया जाता है उसमें रोटी नहीं होती है। दिन में भी चावल मिलता है और शाम को भी म् बजे चावल, दाल, सब्जी देकर चला जाता है। रोटी तो किसी भी मरीज को देता ही नहीं है,

गोपाल नायक