दैनिक जागरण कार्यालय में आए ओब्लोनोकोव ने साझा किए अनुभव

ALLAHABAD: श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान एक रूसी सैनिक को सत्य के करीब ले आया। इसी सत्य की खोज में वह भारत आया तो यही का होकर रह गया। भारतीय संस्कृति से अभिभूत यह शख्स अब दूसरों को जीवन के मायने बता रहे हैं। यह कहानी है कभी रूसी सेना में कमांडर रहे ओब्लोनोकोव इगोर की। उम्र के पचास से अधिक सावन देख चुके इगोर ने मंगलवार को दैनिक जागरण कार्यालय में अपने जीवन से जुड़े कई संस्मरण साझा किए। ड्यूटी के दौरान उन्हें एक अजनबी ने श्रीमद्भागवतगीता की छोटी पुस्तक दी। पुस्तक रसियन भाषा में अनुवादित थी। शुरुआत में उन्हें श्लोक नही समझ आए लेकिन धीरे-धीरे गीता का सार उनके रक्त में समाने लगा। और, सत्य के करीब आते गए। गीता पढऩे के बाद उन्हें पता चला कि जगत पिता तो केवल और केवल श्रीकृष्ण हैं।

जुबान पर रटे हैं गीता के श्लोक

इगोर का गीता, रामायण, महाभारत और वेदों पर गहन अध्ययन है। गीता के श्लोक उनकी जुबान पर रटे हुए हैं। बताया कि आजकल केवल रुपया कमाना, खाना-पीना, मौज-मस्ती करना, अच्छी सी कार, घर, विलासिता की चीजें खरीदने को ही लोग असली जिंदगी मान बैठे हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि असली जिंदगी क्या है। जीवन का उद्देश्य क्या है। परमानंद की खोज ही असली जीवन है। यह आनंद गृहस्थ आश्रम में रहकर भी पाया जा सकता है, पर इसके लिए गीता का अध्ययन करना होगा। पश्चिमी सभ्यता की ओर भाग रहे भारतीयों पर उन्होंने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व भारतीय संस्कृति की ओर भाग रहा है तब इंडियन पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में लगे हैं।

भारतीयों पर होता है गर्व

भारतीय संस्कृति को करीब से जानने के बाद इगोर को भारतीयों पर बहुत गर्व होता है। एक वीडियो प्रजेंटेशन के माध्यम से इगोर ने बताया कि देशभर में कई स्थानों पर उनके माध्यम से वैदिक साहित्य के अध्ययन के लिए विद्यालय खुले हैं। उनका उद्देश्य युवा पीढ़ी को वैदिक साहित्य और संस्कृति से परिचित कराना है। इस्कॉन मंदिर के नेपाल चैप्टर के अध्यक्ष रुपेश जोशी ने कहा कि इस युग में पैसा कमाना चाहिए, पर पैसे के पीछे ही नहीं लगे रहना चाहिए। जिंदगी अर्थपूर्ण होनी चाहिए। इस अवसर पर संपादकीय प्रभारी जगदीश जोशी, उप महाप्रबंधक मनीष चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।