इंग्लैंड के ऑक्सफोस्ड से पढा़ई पूरी की

बता दें कि सुचित्रा सेन बॉलीवुड की ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होंने इंडस्ट्री में सबसे पहली बार अंतरराष्ट्रीय सम्मान पाने का मौका मिला। सुचित्रा एक बंगाली एक्ट्रेस थीं। जिनका जन्म बांग्लादेश के पवना में हुआ था। सुचित्रा को मिला कर उनके पांच भाई बहन थे जिनमें से वो तीसरे नंबर पर आती थीं। उनके पिता एक स्कूल के हेडमास्टर हुआ करते थे। सुचित्रा ने अपनी पहचान बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री से ही बनाई। बाद में सुचित्रा ने पढा़ई करने के लिए इंग्लैंड के समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर पढा़ई पूरी होने के बाद वापस लौट कर बंगाल के जाने माने बिजनेसमैन आदिनाथ सेन से शादी रचा ली।

विदेश में सम्मान पाने वाली पहली बॉलीवुड एक्ट्रेस

बता दें कि अभिनय की ओर सुचित्रा ने साल 1952 में ही पहला कदम रख दिया था। उन्होंने सबसे पहले एक बंगाली फिल्म ही चुनी जिसका नाम था 'शेष कोथा'। इसके बाद फिर साल 1952 में एक बंगाली फिल्म 'सारे चतुर' में नजर आईं। इसके बाद साल 1963 में सुचित्रा ने बंगाली सुपरहिट फिल्म 'सात पाके बांधा' में काम किया जिसके लिए उन्हें मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस के लिए सम्मानित किया गया। बॉलीवुड के लिए ये उस समय बडे़ गर्व की बात थी क्योंकि पहली बार किसी को भारतीय सिनेमा में अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला था। सुचित्रा की इसी फिल्म 'सात पाके बांधा' का बाद में हिंदी रिमेक बना जिसका नाम था 'कोरा कागज'।

'देवदास' की पारो का किरदार भी निभाया

सुचित्रा को अपने फिल्मी करियर में तब सफलता मिली जब साल 1955 में उनकी फिल्म देवदास रिलीज हुई जिससे उन्हें बच्चा बच्चा जानने लगा। फिल्म में सुचित्रा ने पारो का किरदार निभाया था। बिमल रॉय की फिल्म देवदास से सुचित्रा ने बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री ली फिर तो उन्हें बॉलीवुड और आम आदमी सभी की अटेंशन मिलने लगी। इसके बाद साल 1975 में फिल्म आंधी में नजर आई थीं।  

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राज कपूर ने झुककर दिया था फूल

सुचित्रा अपने मान सम्मान को ले कर अक्सर ही बडी़ सजग रहती थीं। कई बार कुछ चीजें ठीक न लगने पर लोगों के प्रस्ताव एक झटके में ठुकरा दिया करती थीं। सुचित्रा ने फिर ये भी नहीं देखा की जिनका प्रताव वो ठुकरा रही हैं वो बडे़ फिल्ममेकर हैं या फिर छोटे। कहा जाता है कि फिल्ममेकर राजकपूर ने एक बार सुचित्रा को झुककर फूल देने की कोशिश की थी जो सुचित्रा को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और उन्होंने सिरफ इस वजह से राजकपूर की कई फिल्मों को ठुकरा दिया। बाद में उन्हें सत्यजीत राय ने फिल्म देवी चौधरानी के लिए ऑफर करना चाहा पर सुचित्रा ने इसके लिए भी न कह दिया। फिर साल 2005 में सुचित्रा को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की बात चल रही थी तो सुचित्रा ने उसे भी ठुकरा दिया।

आखिरी बार यहां आई थीं नजर

सुचित्रा आखिरी बार साल 1978 में एक बांग्ला फिल्म 'प्रणोय पाश' में दिखी थीं। इस फिल्म के बाद उन्होंने काम करना छोड़ दिया और दूसरे कामों में लग गईं। बाद में सुचित्रा को साल 1972 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था। सुचित्रा का फिल्मी सफर बांग्ला फिल्मों से शुरु हो कर बांग्ला फिल्मों पर ही खत्म हो गया। सुचित्रा ने अपने लोगों के बीच अभिनय से अपनी अमिट छाप छोड़ दी पर साल 2014 को इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

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