- 2012 में राजधानी के दो थाने हजरतगंज और महानगर को मिला था आईएसओ सर्टिफिकेट

- 2015 को खत्म हो गई मियाद, पैसा जमा करने पर हो सका रिन्यूवल

- मेंटीनेंस के अभाव के चलते थाना परिसर और व्यवस्था बदहाल

Mayank.Srivastava@inext.co.in

LUCKNOW :

राजधानी के दो थाने महानगर और हजरतगंज कभी आदर्श थाने की लिस्ट में शुमार हुआ करते थे, लेकिन आज इन थानों की हालत काफी बदतर है। यहां न तो विजिटर रजिस्टर हैं और न ही पीने के पानी की व्यवस्था है। वहीं कभी हजरतगंज और महानगर थाने की शान के कसीदे पढ़ने वाले महकमे की ओर से इस तरफ ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है। जिससे स्थिति दिन पर दिन बदतर होती जा रही है।

कभी माने जाते थे शान

दरअसल, वर्ष 2012 में महानगर और हजरतगंज थाने को आईएसओ सर्टिफिकेट मिला था। शहर में यह थाने लखनऊ पुलिस की शान माने जाते थे। वर्ष 2015 तक इन थानों को व्यवस्थाओं के लिए सबसे आदर्श थाना माना जाता था, लेकिन समय बीतने के साथ आज इनकी स्थिति काफी खस्ताहाल है। वहीं यहां की बदहाली ऑफिस की दीवार पर टंगे सर्टिफिकेट को मुहं चिढ़ा रही है।

यह हैं आदर्श थाने के मानक

किसी भी थाने को आदर्श थाने की मान्यता के लिए कई मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। थाने की बिल्डिंग और रख रखाव के साथ थाने की वर्किग की भी मॉनीटरिंग के आधार पर आदर्श थाना घोषित किया जाता है। थाने में आने वाले लोगों के विजिटर रजिस्टर में एंट्री के साथ उनके बैठने तक की व्यवस्था काउंट की जाती है। रिकार्ड के रख रखाव और मेंटीनेंस को भी देखा जाता है। साथ ही थाने की वर्किग पर भी फोकस किया जाता है। वहां के माहौल के साथ ग्रीन एरिया और कॉरपेट एरिया को भी काउंट किया जाता है। जिसके बाद उन्हें आदर्श थाना घोषित किया जाता है।

तीन साल के लिए मान्य होता है सर्टिफिकेट

आईएसओ सर्टिफिकेट एक प्राइवेट कंपनी देती है। यह सर्टिफिकेट हर उस संस्थान को दिया जाता है तो इनके मानकों पर खरे उतरते हैं। सर्टिफिकेट के साथ कंपनी संस्थान के मेंटीनेंस की भी सुविधा उपलब्ध कराती है। इसके बदले वह फीस चार्ज करती है। यह सर्टिफिकेट तीन साल के लिए दिया जाता है। साथ ही संस्था इसके रिन्यूवल का भी ऑप्शन देती है, लेकिन दोनों थानों का रिन्यूवल नहीं कराया गया।

हर तरफ नजर आती है बदहाली

वर्ष 2015 में कंपनी से करार खत्म होने के बाद महानगर थाने की हालत बदहाल हो गई। बिल्डिंग तो नहीं, लेकिन आदर्श थाने के लिए मिलने वाले संसाधन ठप हो गये। थाने में जनरेटर शेड है, लेकिन उससे बिजली आपूर्ति नहीं होती है। वहीं थाने में मौजूद हेल्प डेस्क के पास पब्लिक के बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां न तो विजिटर रजिस्टर है और न ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था है।

मशीन बनी शो पीस

शुद्ध पेय जल के लिए सरकार अभियान चला रही है। इसी के तहत एसएसपी ने कई संस्थाओं से थानों में शुद्ध पेय जल मशीन लगाने के लिए करार किया था, जिसमें महानगर थाना भी शामिल है। हकीकत यह है कि मशीन तो आकर रख दी गई, लेकिन आज तक मशीन का कनेक्शन तक नहीं हुआ। थाने में आने वाले लोग और पुलिस कर्मी दूषित जल पीने को मजबूर हैं।

आग बुझाने की भी व्यवस्था नहीं

कहने को महानगर थाने में फायर एक्सटिंग्विशर्स लगाकर आईएसओ सर्टिफिकेट ले लिया गया है, लेकिन आज हकीकत इससे परे है। यहां लगे एक्सटिंग्विशर्स में आग बुझाने की क्षमता तक नहीं है। साथ ही थाने में लगे फायर एक्सटिंग्विशर्स में पड़ने वाली गैस (पाउडर) आउट ऑफ डेट हो गई है।

लावारिस वाहन बने झंझट

क्राइम सीन से बरामद और लावारिस वाहनों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि थाना परिसर में लावारिस वाहनों का कब्जा हो गया है। अंदर से लेकर बाहर तक चारों तरफ लावारिस गाडि़यां खड़ी हैं। इ

कंपनी आईएसओ सर्टिफिकेट जारी करती है। उसके मेंटीनेंस के लिए चार्ज भी पुलिस लाइन से दिया जाता है। दोनों थाने के आईएसओ सर्टिफिकेट का रिन्यूवल क्यों नहीं हुआ इसके बाबत जानकारी करूंगा। जरूरत पड़ने पर उन थानों पर पुरानी व्यवस्था को जल्द बहाल कराने का भी प्रयास करूंगा।

दीपक कुमार, एसएसपी