म्यांमार की सेना पर सुनियोजित तरीके से रोहिंग्या मुसलमानों के जातीय नरसंहार के आरोप लग रहे हैं।

शनिवार को जनरल मिन ऑन्ग लैंग ने अपने फ़ेसबुक पेज पर म्यांमार के लोगों और मीडिया से रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर एक होने की अपील की।

 

जातीय समूह

जनरल लैंग ने कहा कि 'चरमपंथी बंगालियों' से 93 झड़पों के बाद सेना ने अपनी कार्रवाई शुरू की। वे 'रोहिंग्या चरमपंथियों' को 'चरमपंथी बंगाली' कह रहे थे।

बकौल जनरल मिन ऑन्ग लैंग 'रोहिंग्या कभी भी एक जातीय समूह नहीं रहे हैं।'

म्यांमार के जनरल अपनी सेना के बचाव में ऐसे वक्त में उतरे हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई की आलोचना हो रही है और बांग्लादेश को मजबूरन हज़ारों शरणार्थियों को पनाह देना पड़ा है।

म्यांमार की सेना का कहना है कि उत्तरी रखाइन में उसकी कार्रवाई 25 अगस्त को पुलिस थानों पर रोहिंग्या विद्रोहियों के हमले के बाद शुरू हुई।

 

म्यांमार: वो अकेला शख्‍स जो सुलझा सकता है रोहिंग्या संकट

कौन हैं जनरल मिन ऑन्ग लैंग?

साल 2011 में म्यांमार के सैनिक नेतृत्व ने देश की जुंटा सरकार को भंग कर दिया और चुनाव कराए। इन चुनावों में आंग सान सू ची के नेतृत्व वाली नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी ने भाग लिया और अप्रैल, 2016 में जाकर उनकी सरकार बनी।

हालांकि जनरल मिन ऑन्ग लैंग ने कई शक्तियां अपने पास रखीं और म्यांमार की संसद में एक चौथाई प्रतिनिधि की नियुक्ति आर्मी चीफ़ खुद करते हैं।

इसका सीधा मतलब ये निकलता है कि म्यांमार में सेना के पास किसी भी बड़े बदलाव को रोकने की ताक़त है।

आंग सान सू ची की सरकार का तीन बड़े बुनियादी मंत्रालयों- गृह, रक्षा और सीमा पर कोई अधिकार नहीं है। हिंसा प्रभावित रखाइन में जनरल लैंग खुद कमान संभाले हुए हैं।

 

 

म्यांमार: वो अकेला शख्‍स जो सुलझा सकता है रोहिंग्या संकट

 

एक अकेला शख़्स

'बर्मा कैम्पेन यूके' के मार्क फ़्रैमनर का कहना है कि ब्रिटेन के विदेश मंत्री को म्यांमार के सेना प्रमुख की आलोचना करनी चाहिए क्योंकि जनरल मिन ऑन्ग लैंग के सैनिक ही रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, जनरल मिन ऑन्ग लैंग म्यांमार में वो अकेले शख़्स हैं जो रोहिंग्या गांवों में हमले कर रहे सैनिकों को रुकने का आदेश देने का अधिकार रखते हैं।

ब्रितानी अख़बार 'द गार्डियन' ने हाल ही में अपने एक संपादकीय में लिखा कि रोहिंग्या लोगों पर हो रहे अत्याचार को आंग सान सू ची नहीं रोक सकतीं।

अख़बार के मुताबिक़, "रखाइन में सेना ने कमान संभाल रखी है और चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल करने के बावजूद सू ची की सरकार के पास सुरक्षा का जिम्मा नहीं है। वे सत्ता में जरूर हैं लेकिन उनके पास केवल बयान देने का नैतिक हथियार है। वे सैनिक कार्रवाई रोकने के लिए म्यांमार में जनमत तैयार कर सकती हैं।"

अख़बार लिखता है, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन का फ़ायदा उठाने वाला एक सनकी जनरल सू ची के असर को खारिज नहीं कर सकता है। वे अपने विदेशी समर्थकों का इस्तेमाल म्यांमार की सेना पर दबाव डालने के लिए कर सकती हैं।"

International News inextlive from World News Desk

 

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