करीब 100 साल पुराना है मुमुक्ष भवन का इतिहास
मोक्ष की नगरी काशी में देह त्याग करने की इच्छा रखने वाले गृहस्थ और सन्यासियों के लिए यह मुमुक्षु भवन कोलकाता के रहने वाले एक व्यापारी पंडित घनश्याम दत्त जी ने सन 1920 में 5 एकड़ की जमीन पर इसको बनवाया था। यहां रहकर लोग अपने मरने का इंतजार करते हैं। 55 कमरों वाले इस भवन में रहने के लिए लोगों से मामूली खर्चा लिया जाता है और बदले में उनके रहने और खाने की पूरी व्यवस्था लगभग निशल्क ही होती है। इस भवन में बच्चों के लिए एक संस्कृत विघालयभी है, जहां 50 से अधिक बच्चे संस्कृत भाषा की निशुल्क शिक्षा लेते हैं। शुरु से अब तक इस भवन का स्वरुप काफी बदल चुका है। मुमुक्ष भवन के संचालन औ इसमें रहने वालों की तमाम व्यवस्थाओं को ठीक ढंग से चलाने के लिए यहां के व्यवस्थापकों ने संस्था की आमदनी के बढ़ाने के लिए इस भवन में तीर्थयात्रियों के लिए अतिरिक्त कमरे, शादी विवाह कार्यक्रमों के लिए जगह दी। जिनसे संस्था की आमदनी बढ़ी और मुमुक्षु भवन की व्यवस्था बेहतर ढंग से चलती रही।
मरने की चाहत में यहां बसने आते हैं लोग!

वाराणसी के रहने लोगों को नहीं मिलती यहां जगह
मुमुक्षु भवन भले ही काशी में बना है, लेकिन काशी नगर में रहने वालों को यहां रहने की इजाजत नहीं है। वाराणसी को छोड़ देश दुनिया के किसी भी कोने से आने वालों को यहां रहने को मिलता है। वर्तमान में मुमुक्षु भवन में 150 के करीब सन्यासी और दंडी स्वामी रहते हैं, जबकि करीब 55 गृहस्थ दम्पत्ति यहां रहकर अपनी जिंदगी के आखिरी छण का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी लोगों के अलावा भवन के संस्कृत विद्यालय में पढ़ने वाले बटुकों के लिए यहां रोज निशुल्क खाने का इंतजाम किया जाता है।

 

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मौत के बाद क्या?
मुमुक्षु भवन में रहने वाले हर गृहस्थ के लिए कोई न कोई संबंधी गारंटर के तौर पर जरूर होना चाहिए, जो यहां रहने वाले अपने संबधीं के बीमार होने पर उनके इलाज की व्यवस्था करवा सके। मुमुक्षु भवन में रहने वाले सन्यासियों और दंडीस्वामियों के इलाज और उनके मरने के बाद अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था संस्था की तरफ से ही की जाती है। अगर किसी गृहस्थ दम्पत्ति की मौत होती है तो पहले उसके परिवार को सूचना दी जाती है। अगर समय रहते परिवारी जन आ जाते हैं तो उनके द्वारा अथवा संस्था द्वारा ही मोक्षनगरी काशी में उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक विधि से कर दिया जाता है।

इस तरह से मुमुक्षु भवन मोक्ष की आस पूरी करने में लोगों की निस्वार्थ भाव से सहायता करता चला आ रहा है।

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