PATNA: प्रदेश का प्रदूषण टीबी का रोग दे रहा है। डस्ट के कारण फेफड़े का संक्रमण होता है जो बहुत जल्द टीबी की गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है। केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार टीबी के उन्मूलन को लेकर काफी गंभीर है। इस बार बड़ा बजट भी दिया गया, जिसमें वर्ष ख्0फ्0 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। विश्व टीबी दिवस पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आपको बताने जा रहा है कि प्रदेश में क्या है बीमारी का स्तर और बचाव को लेकर क्या किया जा रहा है उपाय।

तेजी से बढ़ रही बीमारी

स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अधिकारियों की माने तो प्रदेश में टीबी के पेसेंट वहीं पाए जा रहे हैं जहां डस्ट और धूल है। अधिकतर मरीज उस जगह बढ़ रहे हैं जो क्रशर और खदान का इलाका है। यहां मरीजों की संख्या में हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। जानकारों का कहना है कि धूल और डस्ट से बचाव किया जाए तो टीबी पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा। जानकारों का कहना है कि जहां भी गंदगी होती है वहां से बीमारी आ जाती है।

ये प्रदेश में टीबी का आंकड़ा

जानकारों का कहना है कि वर्तमान समय में 7ख् हजार टीबी के मरीजों का उपचार किया जा रहा है। राज्य में प्रति एक लाख में लगभग ढाई सौ टीबी के पेशेंट हैं। जानकारों का कहना है कि यदि प्रति एक लाख पर क्0 पेशेंट मिलते हैं तो बीमारी नियंत्रित मानी जाती है।

सरकारी अस्पतालों से दूर हैं मरीज

अगर इलाज की बात करें तो मरीज सरकारी अस्पतालों से दूर रहते हैं। वर्ष ख्0क्भ् में संबोधित संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ था। सर्वे के मुताबिक प्रदेश में म्म् प्रतिशत टीबी के मरीजों का परीक्षण व उपचार प्राइवेट अस्पतालों में होता है और फ्ब् प्रतिशत मरीज ही सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं।

प्रति वर्ष बढ़ रहे

आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष प्रदेश में औसतन 70 से 80 हजार टीबी के नए मरीज चिन्हित किए जाते हैं। इस बड़े आंकड़े पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश में कई योजनाएं चल रही हैं। वर्ष ख्0क्म् में ग्लोबल टीबी रिपोर्ट में विश्व स्तर पर ख्0फ्0 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है। वहीं भारत के आम बजट में भी इसके उन्मूलन को लेकर बड़ा बजट है।