-गोरखपुर यूनिवर्सिटी में ऐतिहासिक चीजें होने के बाद भी नहीं कोई अहमियत

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GORAKHPUR:

किसी जगह के ऐतिहासिक महत्व को बताने के लिए वहां की धरोहरों सहेजने की जरूरत होती है। गोरखपुर का इतिहास कई सौ साल पुराना है, जिसके सबूत भी यहां मिल जाएंगे। मगर जिम्मेदारों की अनदेखी और उदासीन रवैये की वजह से शहर का इतिहास धूल फांक रहा है। बहुमूल्य धरोहरों के होने के बाद भी न तो यहां की नई जनरेशन उससे रूबरू हो पा रही है और न ही उनका रख-रखाव ही ठीक से हो पा रहा है। इस वजह से हिस्टोरिकल इंपॉर्टेस रखने वाले गोरखपुर की नई जनरेशन अपने इतिहास से आज भी अनजान है। इतिहास बचाने के लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एक पहल की गई और पूर्वाचल संग्राहलय बनाय गया। मगर आज भी इसका ताला नहीं खुल सका है, जिसकी वजह से अहम धरोंहरों को सहेजकर लोगों तक पहुंचाने की कोशिशें दम तोड़ रही है। अगर यही हाल रहा, तो कोठरी में ही यह इतिहास दफन हो जाएगा और शहर की गाथा सुनाने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रहेगा।

एक साल पहले हुआ था इनॉगेरशन

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एतिहासिक धरोहरों को सहेजने के लिए म्यूजियम बनाया गया। प्लानिंग यह थी कि यहां पर पुराने अवशेषों के साथ ही शहर की अहम धरोहरों को सहेज कर रखा जाएगा। इसके जरिए न सिर्फ लोग गोरखपुर के इतिहास से रूबरू हो सकेंगे, बल्कि नई जनरेशन को अपनी पढ़ाई और रिसर्च में भी काफी मदद मिलेगी। इसका इनॉगरेशन मई 2016 में कन्नौज सांसद डिंपल यादव और राज्यसभा सांसद जया बच्चन और कनक लता के हाथों हुआ था। इसके बाद से यह म्यूजियम एक दिन के लिए भी नहीं खुला और आज भी वहां ताला लटका हुआ है।

एंसियंट हिस्ट्री डिपार्टमेंट में हैं धरोहरें

एतिहासिक धरोहरों की खोज और खुदाई में गोरखपुर यूनिवर्सिटी का अहम रोल है। एंसियंट हिस्ट्री डिपार्टमेंट के जिम्मेदार गोरखपुर और आसपास में करीब आधा दर्जन से ज्यादा इलाकों में हुई खुदाई के गए और यहां से कई अहम एतिहासिक प्रूफ लेकर वापस लौटे, यह सभी गोरखपुर यूनिवर्सिटी के एंसियंट हिस्ट्री डिपार्टमेंट के म्यूजियम में रखी हुई हैं। मगर अफसोस कि यहां भी हमेशा ही ताला लगा रहता है। स्टडी के लिए कभी कभार स्टूडेंट्स वहां जाते हैं, लेकिन फिर इन्हें बंदिशों में ही कैद कर दिया जाता है।

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प्रशासनिक जिम्मेदारों का भी पता नहीं

इतिहास की अहम धरोहरें शहर में मौजूद हैं। मगर इनकी अहमियत क्या है? यह किस काल की है? इसकी कीमत क्या है? इसे बताने के लिए कोई भी प्रशासनिक अधिकारी मौजूद नहीं है। गोरखपुर में धरोहरों की पहचान और इसकी कीमत के आंकलन के लिए एक अधिकारी का पद है, लेकिन पिछले चार साल से उसको भरा नहीं गया। इसकी वजह से पिछले कुछ सालों के दौरान मिलने वाली धरोहरों की पहचान और कीमत के आंकलन में काफी परेशानी आ रही है। इसके लिए इनटेक ने सीएम और यूपीएएसआई से कई बार लेटर लिखकर डिमांड भी की है, लेकिन अब तक इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है।

किस पीरियड का क्या मौजूद -

1. नवपाषाण काल -

कॉर्डेट वेयर - गोरखपुर में खुदाई के दौरान कार्डेट वेयर मिले हैं। आर्कियोलॉजिस्ट्स की माने तो यह चाक पर बने मिट्टी के बर्तन होते हैं, इन्हें डोरी छाप मृदभांड कहा जाता है। इसे नवपाषाण काल की अहम पहचान भी माना जाता है।

कुल्हाडि़यां - खुदाई के दौरान बेसाल्ट पत्थर से बने कुल्हाड़ी नुमा हथियार भी मिले हैं। इसमें आगे का हिस्सा धारदार होता है। जिसका यूज जानवरों को मारने के लिए किया जाता था।

सिल लोढ़े - खुदाई के दौरान मिले सिल लोढ़े भी पाए गए हैं। यह पुराने जमाने में हाथ से आटा पीसने वाली चक्की की तरह दिखती है। ऐसा माना जाता है कि इसपर पाषाण काल के लोग अन्न कूटते थे।

2. ताम्रपाषाण काल -

तांबे की कटिया - खुदाई के दौरान ताम्रपाषाण काल की तांबे की कटिया भी मिली है। यह कटिया देखने में मछली पकड़ने वाले कांटे की तरह ही दिखती है।

तांबे के उपकरण - तांबे के कई उपकरण भी मिले हैं, इनमें तांबे के बने बाणाग्र, तांबे की कील भी शामिल है।

हड्डी के उपकरण - ताम्रपाषाण काल में बने हड्डी के कई सामना मिले हैं, इसमें कान के कुंडल, गले के आभूषण शामिल हैं।

ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर- काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तन जोकि आम बर्तनों के मुकाबले में काफी चमकीले होते हैं।

सुराही, कटोरे और तश्तरियां - खुदाई के दौरान मिट्टी की बनी सुराही, कटोरे और तश्तरियां मिली हैं। यह देखने में आज के वक्त की तरह ही दिखती हैं।

3. प्रारंभिक एतिहासिक काल -

ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर- काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, यह देखने में आम बर्तनों के मुकाबले में काफी चमकीले दिखाई देते हैं।

लोहे के बाणाग्र - खुदाई के दौरान लोहे के बाण का अगला हिस्सा भी मिला है। यह आगे का टूटा हुआ ऊपरी नुकीला पार्ट है, जिसे बाणाग्र कहा जाता है।

लोहे की कील - प्रारंभिक एतिहासिक काल में लोहे की कील भी मिली है। यह देखने में एकदम मछली को पकड़ने के लिए बनी कटिया की तरह ही दिखती है।

4. ऐतिहासिक काल -

ब्लैक एंड स्लिप्ड वियर- काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, यह देखने में आम बर्तनों के मुकाबले में काफी चमकीले दिखाई देते हैं।

लोहे के बाणाग्र - खुदाई के दौरान लोहे के बाण का अगला हिस्सा भी मिला है। यह आगे का टूटा हुआ ऊपरी नुकीला पार्ट है, जिसे बाणाग्र कहा जाता है।

मिट्टी की मूर्तियां - डिफरेंट प्लेसेज पर हुई खुदाई में कुषाण पीरियड की कई मूर्तियां मिली हैं। इसमें फीमेल, मेल के साथ कई देवी-देवताओं की मूर्तियां शामिल हैं।

अगेट पत्थर - खुदाई में सफेद और चमकीले पत्थर भी मिले हैं। आर्कियोलॉजिस्ट्स का मानना है कि इनसे उपकरण बनाए जाते थे।

काले लेनियन पत्थर - इस दौरान मिले काले लेनियन पत्थर भी मिले हैं जोकि देखने में बेलनाकार और गोल हैं। आर्कियोलॉजिस्ट्स की माने तो इनका यूज आभूषणों को बनाने में किया जाता था।

पहिया - मिट्टी की बनी पहिया नुमा आकृति भी मिले है, जिससे खिलौने के तौर पर यूज किया जाता था।

लटकन - खुदाई में लटकन भी मिले हैं। यह कानों, गले और नाक में पहने जाने वाले गहने होते हैं, जोकि मिट्टी और हड्डियों के बने होते थे।

ढक्कन - बर्तनों को ढकने के लिए मिट्टी के बने ढक्कन भी पाए गए हैं।

ठप्पे - मिट्टी के बर्तनों को ठोंक और गढ़ने के लिए यूज किए जाने वाले ठप्पे भी मिले हैं। इनको सुखाने के बाद आग में पकाया जाता था और बर्तनों में कलाकारी की जाती थी।

यहां हो चुकी है खुदाई -

सोहगौरा

इमलीडीहा खुर्द

लहुरादेवा

नरहन

टीला उस्मानपुर

बसडीला

वीराभारी

इन पीरियड्स के मिले अवशेष

नवपाषाण काल

ताम्रपाषाण काल

प्रारंभिक एतिहासिक काल

मौर्य काल

कुषाण काल

गुप्तकाल

बौद्ध काल

वर्जन

गोरखपुर के हिस्ट्री को नवपाषाण से जोड़ने वाली पहली फाइंडिंग 1974-75 में मिली है। इसके लिए सर्वे काफी पहले 1960-61 से ही स्टार्ट हो गया था, मगर 14-15 साल तक कोई फाइंडिंग्स नहीं मिली। मगर गोरखपुर यूनिवर्सिटी के सर्वेयर्स को 1974-75 में पहली कामयाबी मिल गई। सोहगौरा में हुए खनन में नवपाषाण काल के कई अवशेष मिले। यह सभी यूनिवर्सिटी के म्यूजियम में मौजूद हैं।

- डॉ। शीतला प्रसाद, एंसियंट हिस्ट्री, डीडीयूजीयू

गोरखपुर में काफी अहम धरोहरें मौजूद हैं, लेकिन इसका रख-रखाव बिल्कुल प्रॉपर तरीके से नहीं किया जा रहा है। इनटेक धरोहरों को सहेजने की लगातार कोशिशों में जुटा हुआ है। पूर्वाचल म्यूजियम बनने के बाद भी अब तक लोगों को इसका फायदा नहीं मिल सका है। अगर जरूरत पड़ी तो इनटेक धरोहरों को सहजने के लिए दूसरे ऑप्शन भी तलाश करेगा।

- एमपी कंडोई, अध्यक्ष, इनटेक गोरखपुर चैप्टर