क्या कहते हैं आंकड़े
अपराधी द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका उसकी जिंदगी और मौत का फैसला करती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा देने के बाद दोषी राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजकर जिंदगी बचाने की गुहार लगा सकता है। वैसे 1992 से लेकर अभी तक कुल 43 दया याचिका भारत के राष्ट्रपतियों द्वारा ठुकराई जा चुकी हैं। इनमें से 84 प्रतिशत डेथ वारंट पर तो सिर्फ दो राष्ट्रपतियों ने ही साइन किए हैं। वहीं दूसरी तरफ कुल 37 अपराधियों को दया भी मिली है।

(1) प्रणब मुखर्जी :-

भारत के इतिहास में अभी तक प्रणब मुखर्जी ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो सबसे ज्यादा डेथ वारंट पर साइन कर चुके हैं। उन्होंने तगभग 92 परसेंट दया याचिका ठुकराई हैं। इनमें अफजल गुरु, अजमल कसाब और याकूब मेमन जैसे चर्चित मामले भी शमिल हैं। प्रणब मुखर्जी ने इन तीनों की दया याचिका को ठुकरा दिया था। प्रणब मुखर्जी के अभी तक के कार्यकाल पर नजर डालें, तो उनके पास 24 मर्सी पिटीशन आईं थी जिसमें कि 22 वह ठुकरा चुके हैं। सभी राष्ट्रपतियों ने मिलकर जितनी दया याचिका ठुकराई, उनमें से 51 परसेंट अकेले प्रणब मुखर्जी के हिस्से की हैं।

(2) शंकर दयाल शर्मा :-
शंकर दया शर्मा भारत के अकेले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने सभी दया याचिका ठुकरा दी थीं। शर्मा के पास कुल 14 मर्सी पिटीशन आईं थी और उन्होंने सभी डेथ वारंट पर साइन किए।

(3) प्रतिभा पाटिल :-
प्रतिभा पाटिल के आंकड़े बिल्कुल उलटे हैं। उन्होंने 92 परसेंट दया याचिका स्वीकार कर ली थीं। प्रतिभा पाटिल के पास कुल 39 दया याचिका आईं थी, जिसमें कि 34 अपराधियों को उन्होंने फांसी की सजा से बचा लिया। हालांकि 5 दया याचिकाएं उन्होंने ठुकराईं थी जोकि राजीव गांधी के हत्यारों की थीं।

(4) के.आर नारायण :-

के.आर नारायण भी अपराधियों के खिलाफ थोड़ा सहृदय थे। उनके कार्यकाल में कुल 10 मर्सी पिटीशन आईं थी जिसमें कि 9 लोगों को उन्होंने नई जिंदगी दी, जबकि 1 को फांसी के फंदे पर चढ़ने स नहीं बचाया। और वह शख्स था धनंजय चटर्जी जो 14 साल की लड़की के साथ रेप और मर्डर का दोषी पाया गया।

(5) एपीजे अब्दुल कलाम :-
भारत के मिसाइलमैन नाम से मशहूर डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम आज भले ही हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन वह अपराधियों के प्रति थोड़ा सहृदय थे। उनके कार्यकाल में कुल 25 दया याचिका आईं थी। जिसमें कि 1 को उन्होंने खारिज कर दिया था जबकि 1 स्वीकार कर ली थी। और 23 दया याचिकांए पेंडिग पड़ी रहीं।

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