फ्लैग- री-एडमिशन चार्ज व एनुअल फीस की दोहरी मार से अभिभावक परेशान

टीचर ग्रेच्यूटी फंड से लेकर स्कॉलर फंड तक वसूल रहे निजी स्कूल

ह्मड्डठ्ठष्द्धद्ब@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

RANCHI (21 न्श्चह्मद्बद्य) : राजधानी के प्राइवेट स्कूलों मनमानी जारी है। इन स्कूलों को इस बात से कोई वास्ता नहीं कि अभिभावक किस पीड़ा में है और किस हालत में फीस दे रहे हैं। एडमिशन के नाम पर वसूली का खुला खेल चल रहा है। इस बात से स्कूल प्रबंधन को कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे के अभिभावकों की आर्थिक स्थिति क्या है। ड्रेस से लेकर किताब-कॉपी व एडमिशन में भी कंफ्यूजन -कंफ्यूजन का ये स्कूल खेल कर रहे हैं। राइट टू एजुकेशन के नियमों के अधिकारों की हकमारी कर अपनी जेबें भरी जा रही हैं। विभागीय पदाधिकारियों की खामोशी भी जरा अजीब सी लगती है, शिकायतों पर कार्रवाई कागजों तक सिमट कर रह जाती है।

अजब -गजब फीस स्ट्रक्चर

प्राइवेट स्कूलों में बिजली बिल तक अभिभावकों से वसूला जा रहा है। ये बात सिर्फ एक स्कूल की नहीं है, बल्कि राजधानी के कई स्कूलों में एडमिशन के नाम पर यह गोरखधंधा चल रहा है। स्कूल प्रबंधन एडमिशन फीस तो ले ही रहा है साथ ही स्कॉलर फंड के लिए भी फीस वसूल रहा है। डेवलपमेंट फंड, मैगजीन, डायरी, टीचर की ग्रेच्यूटी सहित लैंड लीज और वाटर टैक्स की भी वसूली की जा रही है।

हर साल पचास करोड़ की वसूली (बॉक्स)

आंकड़ों के आईने से देखा जाये तो राजधानी में हर साल प्राइवेट स्कूलों में करीब पचास करोड़ की वसूली की जा रही है। एडमिशन का सीजन आते ही इन स्कूलों की मानो लॉटरी निकल जाती है। अभिभावकों से औसतन एक बच्चे के एडमिशन के लिये 15 हजार रूपये लिए जाते हैं। गौरतलब है कि राजधानी में प्राइवेट स्कूलों की संख्या एक सौ के करीब है। हर स्कूल में एडमिशन को लेकर ये खेल होता है। इन स्कूलों में हर साल 40 हजार बच्चों का एडमिशन होता है।

एनुअल फीस से सौ करोड़ की वसूली (बॉक्स)

प्राइवेट स्कूल हर साल एनुअल फीस के नाम पर करीब सौ करोड़ रूपये अभिभावकों से वसूल रहे हैं। औसतन एक स्कूल करीब दस हजार रूपये एनुअल फीस के नाम पर एक बच्चे से लेता है। राजधानी में करीब दो लाख बच्चों के अभिभावकों भुगतान करते हैं।

किस फील्ड से कितनी उगाही कर रहे स्कूल (बॉक्स)

सेक्टर प्रति स्टूडेंट स्टूडेंट्स की संख्या कुल राशि

एडमिशन 15000 30000 45 करोड़

रि-एडमिशन 10 हजार 1 लाख 100 करोड़

वर्जन

सीबीएसई और आईसीएसई के नियमों का खुला उल्लंघन है। स्कूलों में किताब की पहले बिक्री होती थी, लेकिन पाबंदी के बाद स्कूलों ने दुकानदारों से खुद को टैग कर लिया है। इसके एवज में कमाई का मोटा हिस्सा स्कूल प्रबंधन को जा रहा है। एजुकेशन सेक्टर में एक सिंडिकेट काम करता है, जिसके आगे प्रशासन बेबस हैं

- कैलाश यादव

अध्यक्ष, झारखंड अभिभावक संघ