-दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के ग्रुप डिस्कशन के दौरान बुजुर्गो के लिए हुई कई पहल

GORAKHPUR: जिन्होंने घर बनाया, आज वो बरामदों में रहने को मजबूर हैं। जिनकी परिवार में सत्ता थी, आज महत्ता तक नहीं। आखिर क्यों हमारे बुजुर्ग हाशिए पर रह गए हैं? इसको लेकर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने ग्रुप डिस्कशन कराया। इस दौरान ढेर सारे सुझाव और सलाहियतें तो सामने आई हीं, साथ ही कुछ ऐसी पहल भी हुई जो शहर में बुजुर्गो के लिए नायाब तोहफा साबित हो सकती हैं।

मुफ्त इलाज व काउंसिलिंग की सौगात

ग्रुप डिस्कशन में आए शहरवासियों ने इस पहल की खूब तारीफ की। इस दौरान सीनियर फिजिशियन और फैमिली काउंसलर डॉ। संदीप श्रीवास्तव ने ओल्ड एज होम में रह रहे लोगों को फ्री ऑफ कॉस्ट मेडिकल हेल्प देने की पेशकश की। तो वहीं साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम को दूर करने के लिए बैठे डॉ। धनंजय ने भी जरूरत पड़ने पर फ्री काउंसिलिंग करने की बात कही।

बुजुर्गो के लिए 'डे केयर सेंटर'

्रयास संस्था के संयोजक प्रवीण श्रीवास्तव ने 'डे केयर सेंटर' भी खोलने की पहल की है। इसमें सीनियर सिटीजंस के लिए सुबह से शाम तक रहने के साथ ही लंच और ईवनिंग-टी की व्यवस्था की जाएगी। दिन भर बुजुर्ग यहां रह सकेंगे और अपनी मर्जी के मुताबिक वहां मौजूद गेम्स और एटमॉस्फियर का लुत्फ ले सकेंगे। यह काफी कुछ प्रेप स्कूलों जैसा होगा।

यह आए सजेशंस -

- बुजुर्गो को बुजुर्ग न समझकर इंसान समझें।

- थोड़ा ही सही, लेकिन अपने घर के बुजुर्गो के साथ वक्त जरूर बिताएं।

- पैसे, खाने से ज्यादा उन्हें सहानुभूति की जरूरत है, उनका साथ दें।

- हर मौके और फंक्शन में बच्चों को शामिल करें ताकि वो अपनों से परिचित हो सकें।

- बच्चों को बुजुर्गो का आदर करना सिखाएं। उन्हें संवेदनशील बनाएं।

- बुजुर्गो की बात सुनें, भले ही वह एक ही बात को कई बार कहते रहें।

हमारे वृद्धाश्रम में जो लोग आते हैं, उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो खुद खाना नहीं बना सकते, कोई दूसरा काम नहीं कर सकते। ऐसे में घरवाले उन्हें बोझ समझने लगते हैं और वृद्धाश्रम में लाकर छोड़ जाते हैं।

- कनक त्रिपाठी, संचालक, वृद्धाश्रम

आज लोग अपनी तरक्की और आगे बढ़ने के लिए पैसा कमाने की कोशिश में लगे हैं। अपनों को बिल्कुल समय नहीं दे रहे हैं। रिश्तों में दूरी बढ़ती जा रही है और बुजुर्गो को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया जा रहा है।

-अनुराग पांडेय, संचालक, वृद्धाश्रम

मानवीय मूल्य खत्म होते जा रहे हैं। साथ ही संवेदनाएं भी मर रही हैं। यही वजह है कि बच्चे आज अपने बूढ़े मां-बाप को बोझ समझ रहे हैं। सब यह भूल गए हैं कि हमें भी माता-पिता बनना है और हमारे साथ भी ऐसा कुछ हो सकता है।

- जितेंद्र पांडेय, प्रोफेशनल

बुजुर्ग खूब बात करना चाहते हैं, लेकिन कोई उनके साथ बैठना नहीं चाहता। लोग पैसा देने को तैयार हैं, खाना देने को तैयार हैं, लेकिन बुजुर्गो के लिए समय नहीं है उनके पास। ऐसे में वह ऐसी जगह तलाश करते हैं कि जहां उन्हें सहारा मिल जाए।

- आतिफ जफर, सोशल वर्कर

सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं। इसके लिए उन्हें जो भी कीमत चुकानी पड़ रही है, वह पीछे नहीं हट रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि इस दौड़ में उनके अपने ही छूट जा रहे हैं। सबसे ज्यादा असर बुजुर्गो पर पड़ रहा है।

- अबुजर मोहसिन, सोशल वर्कर

लोग बच्चों को सोसाइटी से अलग कर दे रहे हैं और एजुकेशन में ही थोप दे रहे हैं। इसकी वजह से वह रिश्तेदार, नातेदार की अहमियत ही नहीं समझ रहा है, जिसका नतीजा आज लोगों के सामने है।

- प्रवीण श्रीवास्तव, सोशल वर्कर

लोग बुजुर्गो को इंसान ही नहीं समझ रहे। बच्चों को हमने बता दिया है कि सिर्फ पैसा कमाना है, वह इसी में लग गए हैं। उनके लिए अपनों की कोई वैल्यू नहीं है, इस वजह से उन्हें अकेलापन झेलना पड़ता है।

- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फैमिली काउंसलर

आज हम विकास की कीमत चुका रहे हैं। हमने यह तय कर लिया है कि इस मॉडल पर देश को आगे ले जाना है। इसके लिए लोगों से मशीनों की तरह काम ले रहे हैं। उनके पास इतना वक्त ही नहीं बच रहा है कि अपनों के साथ थोड़ा वक्त बिता सकें।

- डॉ। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

लोग जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। अपनों के लिए उनके पास समय नहीं है। घर में भी वही हाल है। सबके पास अलग-अलग मोबाइल है, सब आपस की चीजों में ही बिजी रहते हैं। घरवालों के लिए किसी के पास भी वक्त नहीं है।

- अंकित मिश्रा, प्रोफेशनल