-कैंट स्टेशन से संचालित ट्रेंस के लेडीज कोच में जर्नी कर रहे जेंट्स

-क्त्रक्कस्न जवान व ञ्जञ्जश्व की मिलीभगत से चल रहा खेल

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टीटीई की टोली ट्रेंस के लेडीज कोच में सरेआम सीट की बोली लगा रही है। यही नहीं कोच में जेंट्स को लेडीज बनाने के काम में जीआरपी व आरपीएफ भी हाथ मिलाए हुए है। कहने को रेलवे महिलाओं की सुविधा को लेकर फिक्रमंद है। लेडिज के लिए लगभग हर ट्रेन में अलग कोच भी लगाता है। लेकिन रेल कर्मचारी व ऑफिसर इस सुविधा को पलीता लगा रहे हैं। जवानों की शह पर खुलेआम इन कोचेज में जेंट्स जर्नी कर रहे हैं जबकि इनसे पूछने वाला कोई नहीं है। हालात यह है कि इस कोच में शायद ही आधी सीट पर लेडीज बैठती हों, बाकि सीट पर जेंट्स का ही कब्जा रहता है।

खुलेआम करते हैं जर्नी

अकेले जर्नी करने वाली महिलाओं के लिए रेलवे ट्रेंस में अलग कंपार्टमेंट लगाता है। जिसमें केवल लेडीज के बैठने की व्यवस्था होती है। उस कोच में कोई और नहीं बैठ सकता। यदि कोई अन्य बैठ गया तो उसके खिलाफ रेलवे एक्ट के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। खासतौर से जेंट्स के लिए तो कोई गुंजाइश ही नहीं है। पर शायद ही कोई ट्रेन होगी जिसके लेडीज कोच में जेंट्स न बैठते हों। कैंट स्टेशन से ओरिजिनेटेड ही नहीं यहां से होकर रवाना होने वाली ट्रेंस का भी यही हाल है। इनमें खुलेआम जेंट्स की टोली जर्नी करती है।

ऐसे होता है खेल

कैंट स्टेशन से मेट्रो सिटीज को जोड़ने वाली शायद ही कोई ट्रेन होगी जिसके स्लीपर और जनरल कोच में ठसाठस भीड़ न होती हो। कई बार तो तिल रखने की जगह नहीं होती है। खासतौर से वेकेशन व फेस्टिव सीजन में तो हालत बहुत ही खराब होती है। लोग बस किसी तरह खड़े होकर ट्रेन में जर्नी पूरा करते हैं। इससे बचने के लिए लेडीज कोच ही एकमात्र सहारा होता है। ऐसे में इसकी डिमांड जबरदस्त रहती है। बस यहीं से शुरु हो जाता है टीटीई, आरपीएफ व जीआरपी का खेल। इस कोच में लेडीज से बची हुई सीट का वो सौदा कर लेते हैं। मात्र बैठने की जगह को वो मुंह मांगी रेट पर बेच देते हैं।

मिलकर काटते हैं जेब

ट्रेन में टिकट चेक करने की जिम्मेदारी टीटीई की होती है। टीटीई की बिना मर्जी से कोई ट्रेन में जर्नी नहीं कर सकता है। लेकिन लेडीज कोच के मामले में ये आंख मूंदे रहते हैं। इनको महिला कोच में बैठे जेंट्स दिखायी नहीं देते। वजह एकदम साफ है। टीटीई, जीआरपी व आरपीएफ की कमायी में इनका भी हिस्सा होता है। यही वजह है कि लेडिज कोच की ओर ये झांकते भी नहीं हैं। बस टिकट चेक करने तक ही अपने को सीमित रखते हैं। इनको इस कोच में लेडिज के अलावा बैठे लोग दिखायी नहीं देते।

सुपरफास्ट से पैसेंजर तक

ऐसा नहीं कि पैसेंजर ट्रेन में ही बिना फैमिली मेंबर्स के साथ लेडिज जर्नी करती हैं। बल्कि सुपरफास्ट व एक्सप्रेस ट्रेंस में भी बड़ी संख्या में लेडीज एक शहर से दूसरे शहर में जाती हैं। इसको ध्यान में रखते हुए ही रेलवे ने सभी कैटेगरी की ट्रेंस में अलग लेडीज कंपार्टमेंट का इंतजाम किया है। इन ट्रेंस में आगे या पीछे यह कोच जोड़ा जाता है। जिसमें केवल महिला या ग‌र्ल्स एंट्री कर सकती हैं। यहां तक कि किसी लेडिज के साथ यदि उनका एडल्ट बेटा है तो भी वह इस कोच में सवार नहीं हो सकता। उसे अन्य कोच में ही अपना ठौर तलाशना होगा।

वर्जन---

ट्रेंस के लेडिज कोच में जेंट्स के बैठने और जर्नी करने की जांच होगी। इस पूरे मामले में लिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही इन कोचेज में बैठने वालों के खिलाफ कैंपेन भी चलाया जाएगा।

एके पांडेय, स्टेशन मैनेजर

कैंट स्टेशन

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जेल के अलावा फाइन भी

ट्रेन के लेडीज कोच में किसी जेंट्स के जर्नी करते हुए पाए जाने पर रेलवे एक्ट के तहत कार्रवाई होती है। पकड़े जाने वाले को जेल की सजा के साथ ही फाइन भी भरना पड़ सकता है। नाम न लिखने की शर्त पर एक ऑफिसर ने बताया कि कोच में रंगेहाथ पकड़ लिए जाने पर एक साल तक की सजा हो सकती है। इसके अलावा फाइन भी जमा करना पड़ सकता है। या दोनों में से केवल एक दंड हो सकता है। हालांकि फाइन की राशि की कोई लिमिट नहीं होती है। यह संबंधित ऑफिसर के विवेक पर निर्भर करता है।

डिसएबल का भी बुरा हाल

कैंट स्टेशन से ओरिजिनेटेड व यहां से होकर रवाना होने वाली ट्रेंस में लेडीज कोच का जो हाल है उसी तरह की स्थिति दिव्यांग कोच की भी है। इसमें भी डिसएबल पैसेंजर कम अन्य ज्यादा सवार रहते हैं। यहां तक कि इनको इस कोच में चढ़ने ही नहीं दिया जाता है। जिसके कारण ये अन्य कोचेज में धक्का खाते हैं। आए दिन खुद के साथ होने वाले मिसविहेब की ये कंम्प्लेन भी करते रहते हैं।