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RANCHI (09 Mar) : सुप्रीम कोर्ट द्वारा शर्तों के साथ इच्छा मृत्यु की इजाजत दिये जाने के बाद रांची के लोगों ने इस मसले पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है। अधिकतर लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति बिना लाइफ सपोर्ट सिस्टम के जिंदा नहीं रह सकता है, तो उसे यह अधिकार होना चाहिए कि वह खुद अपनी जिंदगी को अलविदा कह दे। वहीं कई लोगों का यह भी मानना है कि इस फैसले के बाद इच्छा मृत्यु मांगने वालों की संख्या बढ़ेगी और इसकी आड़ में कुछ वैसे लोगों की भी जान जा सकती है, जो बेहतर इलाज मिलने पर ठीक हो सकते हैं। यहां प्रस्तुत है इस संवेदनशील मसले पर सिटी के कुछ चुनिंदा लोगों के विचार :

मौजूदा भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिए यह एक विवादपूर्ण स्थिति है। मौलिक रूप से हम सब आशावादी हैं और जीजिविषा के पक्ष में विश्वास रखते हैं। ऐसे में तार्किक रूप से चाहे कितने भी मजबूत तथ्य पेश किये जाएं, पर मेरा मानना है कि जीने का अधिकार छीनना एक निर्जीव शरीर के साथ जीने से भी बर्बर है। सीमित संसाधनों, उपचार में असमर्थता का हवाला देकर किसी भी व्यक्ति को खत्म कर देना सही नहीं है।

रंजन पांडेय

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। इच्छा मृत्यु में बुराई नहीं है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में जो दिशा-निर्देश जारी किया है, उसका सख्ती से पालन भी होना चाहिए।

क्ति शरण

इस फैसले का असर तुरंत तो देखने को नहीं मिलेगा, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम होंगे। हमारा समाज बदल रहा है और बदलते परिवेश में इस तरह के फैसले जरूर कुछ सकारात्मक बदलाव लाएंगे।

सूरज कलवार

जिस प्रकार जीने का हक है, उसी प्रकार जीवन को खत्म करने का भी अधिकार व्यक्ति को होना चाहिए। इच्छा मृत्यु की इजाजत मिलने से सीमित ही सही, लेकिन बेहद गंभीर पीड़ा से गुजर रहे लोगों को राहत मिलेगी।

पूजा कुमारी

इस फैसले से सहमत नहीं हूं, क्योंकि आज बड़ी संख्या में लोग बीमार हैं और परेशान भी। अगर वे सभी खुद अपना इलाज बंद करवाने लगें, तो हालात गंभीर होंगे।

प्रिया कुमारी

जिंदगी बार-बार नहीं मिलती। जीवन प्राकृतिक रूप से ही खत्म हो तो बेहतर है। अंतिम समय तक आस नहीं छोड़नी चाहिए। मौत तो सभी को आनी है, इसका फैसला हम क्यों करें।

शालिनी महतो

फैसले का जो असर होगा, वो तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इंसान को कभी खुद से मौत नहीं चुनना चाहिए। लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर जी रहे लोगों के परिवार वालों को भी धैर्य से काम लेना चाहिए।

सम्राट अशोक

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एडवोकेट की राय

यह बहुत ही अच्छा फैसला आया है। इससे बहुत लोगों को लाभ मिलेगा। अरूणा शानबाग के केस के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कुछ शर्तो के साथ पैसिव यूथेनेशिया द्वारा मरणासन्न मरीज को दया मृत्यु दी जा सकती है। इस शर्त के अनुसार मरीज के मष्तिष्क का ब्रेन डेड होना जरूरी है। ऐसे मरीज को मेडिकल बोर्ड की सहमति के बाद लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है।

मालविका शर्मा, एडवोकेट, झारखंड हाईकोर्ट