एप्लिकेशन्स से घिरी हुई है यंग जेनरेशन

मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, फेसबुक, लिंक्ड इन, ट्विटर, व्हाट्स ऐप, वीचैट, हैंगआउट और लाइन इन शब्दों को शायद एक उम्र दराज इंसान न जानता हो, लेकिन इन शब्दों के मतलब और इनका यूज एक छोटे से बच्चे से भी आप पूछेंगे तो वह झट से बता देगा। इसका एक मात्र कारण है हाईटेक गैजेट्स और इंटरनेट की दुनिया में बच्चे का ज्यादा रहना। एक्सपट्र्स का मानना है कि इन सभी सुविधाओं ने जहां लाइफ ईजी कम्यूनिकेशन दिया है वहीं बच्चों को एक अनजाने खतरे में डाल दिया है।

बच्चों में आ रही है लेजीनेस

एक्सपट्र्स का मानना है कि इन सभी सुविधाओं के कारण बच्चों में लेजीनेस की कंप्लेंस ज्यादा आ रही हैं। इसके अलावा ओबेसिटी जैसे गंभीर बीमारियां लगने में भी इनका बड़ा हाथ है। बच्चे दिन भर इन गैजेट्स पर काम करते हैं। ऐसे में स्टडीज और आउटडोर स्पोट्र्स जैसी जरूरी एक्टिवटीज से वे दूर हो रहे हैं। बच्चे अपने सभी कामों में कंप्यूटर को ही अपना दोस्त मानते हैं। अपना सारा काम वह उसी पर करना चाहते हैं। इससे उनमें मोटापे, मेंटल स्ट्रेस, एग्रेशन, आंखों में कमी जैसे कई भयंकर रोग पनपने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती है।

पेरेंट्स बच्चे के डेली रूटीन पर दें ध्यान

बच्चों की इस हालत के लिए अक्सर पेरेंट्स की नजर अंदाजी जिम्मेदार होती है। इसलिए उन्हें इस स्थिति से बचाने के लिए उनकी जिम्मेदारी सबसे अधिक हो जाती है। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को अपने बच्चे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत ज्यादा हो जाती है। उन्हें चाहिए की वह अपने बच्चे के डेली रूटीन पर फोकस रखे और उसे वॉच करें। बच्चे के इंटरनेट और बाकी गैजेट्स के टाइम को भी ध्यान में रखें। अगर कुछ गलत होने का आभास होता है तो उसे तुरंत टोक दें। इसके बाद भी हालात काबू में न आएं तो एक अच्छे काउंसलर से इस पर चर्चा करें और उसे पूरी स्थिति से अवगत कराएं। इस सबसे पहले पेरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चे को टाइम दे और उसे समझने की कोशिश करें। क्योंकि एक बच्चे के लिए उसके पेरेंट्स ही पहले काउंसलर होते हैं।

बच्चे को इन सभी चीजों से फ्रेंडली होना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें इस पर डिपेंड होने दें। काउंसलिंग के लिए आ रहे अधिकतर केसेज में बच्चे इन चीजों के आदि पाए जाते हैं। जो किसी लिहाज से सही नहीं है।

- डा। मुकुल शर्मा, साइकोलॉजिस्ट

इसके लिए सबसे पहले पेरेंट्स जिम्मेदार होते हैं, बचपन में ही बच्चे के हाथ में खिलौने की तरह मोबाइल थमा देने से बच्चे के माइंड के पार्ट एमीगेला पर इफेक्ट पड़ता है, जिससे बच्चे की फीलिंग्स पर प्रभाव पड़ता है। बच्चा बचपन से ही इन चीजों को लेकर इतना फ्रेंडली हो जाता है कि वह पूरी तरह से इन्हीं पर डिपेंड हो जाता है।

- डा। वीना कृष्णन, साइकोलॉजिस्ट

बच्चे इन चीजों के इतने आदि होते जा रहे हैं। इसलिए उनमें मोटापे, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कार्डियक प्रॉब्लम्स ज्यादा देखने में आ रही हैं। इसका मुख्य कारण है बच्चे की बॉडी को यूज कम होना। इन गैजेट्स की चाह में बच्चे फिजिकल मूवमेंट करना ही नहीं चाहते। पेरेंट्स को चाहिए कि इन सभी साधनों को एक लिमिट में बच्चे को यूज करने दें।

--- डा। अनुराग नौटियाल, जनरल फिजीशियन