सीसीटीवी कैमरे से लेकर बसों में लगे अग्नि शमन यंत्र बन गए हैं शोपीस

आठ साल पहले कम दूरी वाले सफर के लिए चलाई गई थीं ये बसें

ALLAHABAD: काशा! लक्जरी सुविधा का सुख भोग रहे जनप्रतिनिधि व अफसर सिटी बसों में सफर कर लेते, तो उन्हें इस बात का अंदाजा लग जाता कि इन बसों की हालत कितनी जर्जर है। कम दूरी वाले सफर को आसान करने के लिए चलाई गई इन बसों की दशा काफी दयनीय है। टाटा कंपनी की मार्को पोलो हो या साधारण बसें, आठ साल में ही ये यात्रियों की सुविधा को मुंह चिढ़ाने लगीं। सुरक्षा के लिहाज से सिटी बसों में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे व अग्निशमन यंत्र शोपीस बन गए हैं। इतना ही नहीं, बेतहासा निकल रहा धुआं बसों की फिटनेस पर भी सवाल खड़ा कर रहा है।

जहां भीड़ वहीं बस का स्टॉप

इलाहाबाद में जेएनएनयूआरएम योजना के तहत सिटी बसों का परिचालन वर्ष 2010 में शुरू किया गया था। उपेक्षा व बदइंतजामी का आलम यह है कि आठ वर्षो में शहर से लेकर गांव तक जिस भी रूट पर ये बसें चल रही हैं, उनमें से अधिकांश रूटों पर कहीं भी बसों के स्टॉप का बोर्ड नहीं लगाया जा सका है। उप्र रोडवेज कर्मचारी संघ के क्षेत्रीय मंत्री राकेश कुमार द्विवेदी बताते हैं कि इन बसों के लिए कही पर भी यात्री सूचक स्थल का बोर्ड नहीं है। हद तो ये है कि किस रूट पर कौन सी बस जाएगी इसकी भी जानकारी बस स्टॉफ को नहीं दी गई है। रास्ते में जहां पर भी भीड़ दिखाई देती हैं, वही पर चालक बसों को रोक देता है।

बाक्स

वर्कशॉप में सड़ रही हैं दस बसें

इलाहाबाद में मार्को पोलो और साधारण बसों की कुल संख्या 130 हैं। इनमें से दस बसें खराब हैं। जो झूंसी स्थित रोडवेज की वर्कशाप में खड़ी हैं। शेष बसें, रेलवे जंक्शन से लालगोपालगंज, स्टेशन से सोरांव, स्टेशन से मऊआइमा, सिविल लाइंस से प्रतापपुर, बैरहना नए पुल से शंकरगढ़, कचेहरी से जसरा, कचेहरी से कोड़हार घाट व त्रिवेणीपुरम से हैप्पी होम तक रोजाना संचालित होती हैं।

पब्लिक कोट

ऐसी डग्गामार बसों में बैठने से अच्छा है कि खुद की सवारी से निकला जाए। कई बार बैठने पर देखा हूं कि बैठने पर बसों को स्टार्ट करने में ही आधा-आधा घंटा निकल जाता है।

जयवर्धन त्रिपाठी

तेलियरगंज से बसें किस समय गुजरती है इसका आज तक पता नहीं चल पाया है। सिविल लाइंस में एक-दो प्वाइंट को छोड़ दे तो शहर में कही पर भी बस स्टॉप का बोर्ड नहीं देखा हूं।

राजेश मिश्रा

सिटी बसों को देखकर तो यही लगता है कि इसकी देखभाल करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में जहां पर देखता हूं वहीं जहरीला धुंआ छोड़ते हुए बसें निकलती हैं।

प्रदीप पांडेय

अलोपीबाग चुंगी से कई बार सिटी बस में बैठकर घूमने के लिए सिविल लाइंस तक आया हूं। किसी बस में शीशा नहीं दिखा तो कई बार खुद धक्का देकर बस को स्टार्ट करवाना पड़ा था।

जमुना पांडेय

वर्जन

इलाहाबाद में वर्षो से सिटी बसों का संचालन हो रहा है। जिनका रखरखाव वर्कशाप में नियमित होता है लेकिन अब सभी बसें पुरानी हो गई है। अ‌र्द्धकुंभ से पहले इन बसों की नीलामी कराकर नई बसों का बेड़ा मंगाए जाने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है।

डॉ। हरिशचंद्र यादव, रीजनल मैनेजर उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम