-रिसर्च सोसाइटी फॉर दि स्टडी ऑफ डायबिटीज यूपी की कॉन्फ्रेंस में जेनेरिक दवाओं पर हुआ गहन मंथन

-जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी सुनिश्चित करे सरकार तो डॉक्टर्स को दवा लिखने में कोई परेशानी नहीं

KANPUR : एक तरफ जहां सरकार बेहद सस्ती जेनेरिक दवाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है, वहीं डॉक्टर्स के बीच इन दवाओं की क्वालिटी को लेकर कई तरह के सवाल हैं। रिसर्च सोसाइटी फॉर दि स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया यूपी की कांफ्रेंस में आए पद्मभूषण व मेदांता हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ। अंबरीश मित्तल भी इस चर्चा में शामिल थे। देश के बड़े सरकारी गैर सरकारी चिकित्सा संस्थानों से आए डॉक्टर्स ने मरीजों को सस्ती दवा मुहैया कराने के सरकार के प्रयास को सराहा, लेकिन जेनेरिक दवाओं को लेकर कई तरह की बातें कहीं।

90 फीसदी डायबिटीज मरीजों का इलाज

पद्मभूषण डॉ। अंबरीश मित्तल ने कहा कि डायबिटीज से पीडि़त पेशेंट्स के इलाज में 90 फीसदी को सस्ती दवाओं से ही सही किया जा सकता है। 10 फीसदी मरीजों में ही प्रॉब्लम बढ़ने पर ट्रीटमेंट बदला जाता है। कांफ्रेंस के दौरान जेनेरिक दवाओं को लेकर चर्चा में एसजीपीजीआई रोहतक के हेड इंडोक्राइनोलॉजी विभाग प्रो। राजेश राजपूत ने बताया कि डायबिटीज को लेकर जो नई दवाएं आ रही हैं, उसमें दो चीजें सबसे खास हैं पहली कि इन दवाओं के यूज से पेशेंट का वजन नहीं बढ़ता। दूसरी की वह हाईपोग्लाइसीमिया का शिकार नहीं बनता है। जो नई दवाएं आ रही हैं उसमें डायबिटीज पेशेंट्स को हार्ट डिजीज होने की संभावना भी कम हो जाती है। साथ ही इंसुलिन की डोज भी कम हो जाती है।

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क्वॉलिटी में अंतर पर उठे सवाल

आरएसएसडीआई यूपी-2017 कांफ्रेंस में आए कई सीनियर डॉक्टर्स ने जेनेरिक दवाओं को लेकर चर्चा की, जिसमें जेनेरिक व पेटेंट दवाओं की क्वालिटी में अंतर पर सवाल उठे। साथ ही देशी कंपनियों की बनाई ब्रॉन्डेड जेनेरिक दवाओं की भी एक ही कैटेगरी बनाने की मांग हुई। जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाए गए। साथ ही यह भी तय हुआ कि डॉक्टर्स ब्रांड नेम की जगह सिर्फ दवा का सॉल्ट नेम ही लिखें।