- आवाज सुनकर ध्वनि प्रदूषण मापने का मजबूर राजधानी पुलिस

- मैनपावर की भी क्राइसिस से जूझ रहा प्रदूषण नियंत्रण विभाग, जिला प्रशासन की कार्रवाई साबित हो रही दिखावा

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रुष्टयहृह्रङ्ख :

हाईकोर्ट ने धार्मिक स्थलों व वैवाहिक समारोह में लगने वाले डीजे व साउंड सिस्टम से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के लिये मानक तय करने के साथ ही इसके लिये पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है। आदेश का उल्लंघन होने पर पुलिस व प्रशासन को कार्रवाई की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन हालात 'बिना हथियार जंग लड़ने' जैसे हैं। दरअसल, इन धार्मिक स्थलों व वैवाहिक समारोहों में लगने वाले साउंड सिस्टम की ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिये साउंड लेवल मॉनीटर या डेसिबल मीटर मुहैया ही नहीं कराये गए। नतीजतन, पुलिसकर्मी अपने कान से ही सुनकर ध्वनि प्रदूषण मापने को मजबूर हैं और इसी की वजह से अब तक नियम का उल्लंघन करने पर किसी एक शख्स के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं की जा सकी।

हाईकोर्ट ने दिए थे निर्देश

हाईकोर्ट की सख्ती के बाद बीती 8 जनवरी को प्रदेश सरकार ने सभी जिलों के डीएम व पुलिस कप्तानों को पत्र लिखा था। जिसमें कहा गया था कि सभी धार्मिक स्थलों को लाउडस्पीकर के लिये 15 जनवरी तक अनुमति लेनी होगी। लखनऊ जिला प्रशासन ने डीएम कौशल राज शर्मा के आदेश पर बड़ी संख्या में अनुमति न लेने वाले धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटवा दिए।

तय मानक

इंडस्ट्रियल एरिया

दिन रात

75 70 डेसीबल

कॉमर्शियल एरिया

दिन रात

65 55

रेजिडेंशियल एरिया

दिन रात

55 45

साइलेंस जोन

दिन रात

50 40 डेसिबल

सजा

- नियमों का उल्लंघन करने पर मुकदमा दर्ज करने व दोषी पाए जाने पर पांच साल की सजा व एक लाख जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

नहीं मिले मीटर , कैसे हो जांच

आदेश में यह भी कहा गया था कि अनुमति प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व पुलिस की संयुक्त टीम बनाकर नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। जिला प्रशासन ने इस पर टीम बना ली और कार्रवाई शुरु कर दी। बड़ी संख्या में संस्थानों से लाउड स्पीकर उतारे गए। कलेक्ट्रेट से शादी बारात और धार्मिक स्थलों के लिए अनुमति दी जा रही है। लेकिन इनमें बज रहे डीजे व अन्य लाउड स्पीकर में ध्वनि प्रदूषण कैसे मापे इसका कोई उपाय नहीं है। प्रशासन के पास या पुलिस के पास एक भी मशीन नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि आवाज सुन कर कार्रवाई की जाएगी। यदि कैंपस से बाहर आवाज आरही है तो यह 70 डेसिबल से अधिक होगी और ऐसे में शांति भंग की आशांका में सीजीएम कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया जाएगा।

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एक मशीन और चार जिले

राजधानी लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण मापने के लिए यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पास एक मशीन है। यह विभाग ही सभी प्रकार के प्रदूषण को अब तक मापने का काम करता है। जिला प्रशासन को कहीं पर कार्रवाई करनी होती है तो इस विभाग के अधिकारियों को ही प्रदूषण मापने के लिए भेजा जाता है। विभाग के रीजनल ऑफिस के पास सिर्फ एक ही साउंड लेवल मॉनीटर मशीन है। जिससे एक समय में एक ही स्थान पर जांच हो पाती है। इसके लिए विभाग में दो-दो वैज्ञानिक सहायक भी हैं। लेकिन इस एक मशीन पर लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर और लखीमपुर खीरी में हो रहे ध्वनि प्रदूषण को मापने की जिम्मेदारी है।

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महाराष्ट्र में सबसे बेहतर सुविधाएं

महाराष्ट्र पुलिस के पास हर थाने पर मशीनें उपलब्ध करा दी गई हैं। पुलिस का सिपाही खुद ही मशीन लेकर मौके से ध्वनि की तीव्रता की माप करता है और अधिक होने पर तुरंत मौके पर ही कार्रवाई होती है। लेकिन यूपी के लिए यह अभी दूर की कौड़ी है। सरकार ने इस पर कोई कदम तक नहीं उठाया।

कोट--

ध्वनि प्रदूषण मापने के लिए संसाधनों की कमी है। यह सबकी नॉलेज में है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कार्रवाई की जा रही है। बिना अनुमति डीजे और बैंड नहीं बजेगा। बैंड बाजा को निर्देश दिए गए हैं कि वे रात 10 के बाद नहीं बजाएंगे। बैंक्वेट हाल और धार्मिक स्थलों को निर्देश हैं कि उनके कैंपस से बाहर आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। आवाज बाहर तक आती है तो यह मानकों से अधिक आवाज है और इस पर कार्रवाई की जाएगी। लोगों से अपील है कि वे जिम्मेदार नागरिक बनें और ध्वनि प्रदूषण रोकने खुद आगे आएं। लोगों को भी इसके लिए पहल करनी होगी।

- कौशल राज शर्मा, डीएम

आदेश में ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के मुताबिक विभिन्न क्षेत्रों जैसे इंडस्ट्रियल, कॉमर्शियल, रेजिडेंशियल व शांत क्षेत्र में दिन व रात के समय अधिकतम तीव्रता निर्धारित की गई थी। इसके तहत इंडस्ट्रियल एरिया में दिन के वक्त 75 व रात के वक्त 70 डेसीबल, कॉमर्शियल एरिया के लिये 65 व 55, रेजिडेंशियल एरिया में 55 व 45 जबकि, साइलेंस जोन में दिन में 50 व रात में 40 डेसिबल ध्वनि का मानक तय किया था।