ये है हीमोफीलिया

हीमोफीलिया एक अनुवांशिक बीमारी है। ये माता-पिता से बच्चों को मिलती है। इसके बारे में डॉक्टर्स बताते हैं कि इसका जीन एक्स क्रोमोसोम पर लिंक होता है। अब क्योंकि पुरुषों में लिंग निर्धारण के लिए एक्स वाई क्रोमोसोम होता है और महिलाओ में एक्स-एक्स होता है। ऐसे में एक एक्स क्रोमोसोम होने के कारण पुरूषों में इसका लक्षण दिखाई देने लगता है। महिलाओं में एक्स-एक्स क्रोमोंसोम होने के कारण वे इसकी वाहक बन जाती हैं।

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इसलिए ये बीमारी है जानलेवा

डॉक्टर्स इसके बारे में बताते हैं कि इसके शिकार लोगों के शरीर में रक्त का थक्का ही नहीं जमता। यही कई बार पीड़ित की र्मौत का कारण भी बन जाता है। दरअसल अगर कोई इस बीमारी से पीड़ित है और वह किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो आसानी से उसका खून बहने से नहीं रोका जा सकता। कारण है कि इस बीमारी के वजह से उसके शरीर से निकलने वाले खून का थक्का नहीं जमेगा। ऐसे में लगातार खून बहने से किसी की भी मौत हो सकती है। इसके अलावा कई बार लीवर, किडनी, मसल्स जैसे इंटरनल अंगों से भी रक्तस्त्राव होने लगता है।

दो तरह की हो सकती है हीमोफीलिया

डॉक्टर्स बताते हैं कि ये बीमारी दो तरह की हो सकती है। इन दोनों प्रकारों को ए और बी के नाम से जाना जाता है। एक में फैक्टर-8 की कमी होती है। ये कमी ज्यादा घातक होती है। वहीं बी में फैक्टर-9 की कमी होती है। फैक्टर-8 की कमी या मात्रा के अनुसार बीमारी की तीव्रता निर्धारित होती है। अब इस तरह से देखें तो फैक्टर-8 या 9 का स्तर सिर्फ दो प्रतिशत से कम है तो बीमारी ज्यादा गंभीर मानी जाती है। ये ज्यादा घातक इसलिए होती है क्योंकि इसमें खुद ही रक्तश्राव शुरू हो जाता है। ये  मसल्स और जोड़ो पर चकत्ते के रूप में दिखती है। वैसे डॉक्टर्स बताते हैं कि ऐसे बच्चों की बचपन में ही मौत हो जाती है। इसके अलावा ये मात्रा अगर 2 से 8 प्रतिशत के बीच है तो मरीज गंभीर होता है। ऐसे लोगों में थोड़ी सी चोट में भी रक्तश्राव तेजी के साथ होने लगता है। ऐसे में पैर की मांसपेशियों और अन्य अंगों में रक्तश्राव का खतरा होता है। इसके इतर अगर इसकी मात्रा 10 से 50 प्रतिशत के बीच है, तो खुद ही इसमें रक्तश्राव नहीं होता है, लेकिन सर्जरी के समय जान जाने का खतरा बना होता है।

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ऐसे कर सकते हैं बचाव

ये जानने के बाद कि अगर कोई हीमोफीलिया से पीड़ित है तो इन चंद तरीकों से इससे बचाव किया जा सकता है।

1 . एस्परिन या नॉन स्टेरॉयड दवा लेने से जहां तक संभव हो बचें।

2 . हेपेटाइटिस बी का वैक्सिनेशन जरूर लगवा लें।

3 . फैक्टर 8 और 9 से पीड़ित लोग कहीं भी जाते समय ब्लीडिंग होने या ज्वाइंट डैमेज पर होने वाले नुकसानों से बचने के उपायों का इंतजाम करके चलें। बेहतर हो कि डॉक्टर का नंबर हमेशा आपके पास हो।

4 . हीमोफीलिया से पीड़ित महिला के बेटा होने पर अगर ये प्रूफ हो गया है कि वह भी हीमोफीलिया से पीड़ित है तो पारंपरिक तौर पर उसका खतना न कराएं। जरा से खरोच पर भी आप खून का बहना न रोक पाएंगे।

5 . हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ित इससे जुड़ी जानकारी को हमेशा साथ लेकर चलें और समय-समय पर अपडेट होते रहें।

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ये है हीमोफीलिया के लक्षण

1 . जोड़ों में दर्द और सूजन, अक्सर घुटनों और कोहनी में दर्द का रहना

2 . दुर्घटना या दूसरी चोट से भारी रक्तस्राव (खून बहना), जो लंबे समय तक न रुके

3 . कई बार चोट, दुर्घटना या बड़े घाव के समय देर से खून का बहना  

4 . त्वचा के नीचे और मांसपेशियों के बीच सूजन, बुखार के साथ त्वचा विकिरण और दर्द होना

5 . पेट के इंटरनल पार्ट्स या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में इंटरनल ब्लीडिंग होना

6 . मुंह और मसूड़ों में रक्तस्त्राव होना, दांतों का टूटना या झड़ना

7 . यूरिन से खून आना

8 . पाचन संबंधी दिक्कतें जैसे कब्ज आदि

9 . अक्सर नाक से खून आना

ऐसे कर सकते हैं उपचार

अब क्योंकि यह एक अनुवांशिक बीमारी है। ऐसे में इसका इलाज जेनेटिक इंजीनियरिंग के विकास के साथ ही संभव है। फिलहाल इस समय मरीजों का उपचार फैक्टर-8 (काबुलेशन फैक्टर) को ट्रांसफ्यूज करके किया जाता है। इसके अलावा जिन जगहों पर काबुलेशन फैक्टर उपलब्ध नहीं है। वहां ये काम फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा (एफएफपी) से करते है। बता दें कि ये रक्त का सफेद अवयव है, जो ट्रांसफ्यूज किया जाता है।

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ये प्रकृतिक जड़ी-बूटियां हो सकती है मददगार

हीमोफीलिया के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ प्राकृतिक जड़ी-बूटियों को भी काफी कारगर बताया गया है। वैसे किसी भी तरह की जड़ी-बूटी को भी किसी डॉक्टर से बिना पूछे न लें तो बेहतर होगा। इसके पीछे कारण है कि कौन सी जड़ी-बूटी आपके शरीर के लिए कारगर हो और कौन सी नुकसानदेह, ये तो आपका डॉक्टर ही बेहतर बता पाएगा। वहीं कुछ डॉक्टर्स इन जड़ी-बूटियों को इस बीमारी के लिए फायदेमंद बताते हैं। इसके सेवन से खून की तरलता में कमी आती है। ये हैं वो जड़ी-बूटियां....।

1 . जिन्को बाइलोबा

2 . लहसुन

3 . अदरक

4 . जिनसेंग

5 . हॉर्स चेस्नट

6 . हल्दी

7 . व्हाइट विलो

ये है इतिहास

इस बीमारी के इतिहास के बारे में जानना चाहें तो ये सबसे पहले ब्रिटिश राजघराने में देखने को मिली थी। उसके बाद ये बीमारी पेरिस और चाइना जैसे राजघरानों में दिखी। उसके बाद इस बीमारी ने भारत में पांव पसारने शुरू किए। अब आलम ये है कि ये इस देश में भी जबरदस्त तरीके से फैल रही है। इस घातक बीमारी की अति से कुछ ही मिनट में पीड़ित की जान भी जा सकती है।

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