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सुपरहिट बॉलीवुड मूवी 'भाग मिल्खा भाग' में अगर क्रिएटिविटी, इमेजिनेशन और स्क्रिट राइटिंग की कॉकटेल मिक्स न होती। तो बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड तोड़ने वाली यह फिल्म महज 7 सेकेंड का विज्ञापन भर होती पिछले दिनों दैनिक जागरण ऑफिस पहुंचे फेमस एड गुरू, लिरिसिस्ट और स्क्रिप्ट राइटर प्रसून जोशी ने ऐसी ही तमाम इंटरेस्टिंग बातें शेयर कीं आई नेक्स्ट रिपोर्टर से। पेश है बातचीत के खास अंश

क्रिटिक्स भी करते हैं तारीफ

एड व‌र्ल्ड में ढेरों नेशनल-इंटरनेशनल अवार्ड हासिल कर चुके प्रसून जोशी ने जब से बॉलीवुड इंडस्ट्री में कदम रखा, क्रिटिक्स भी उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। फना और रंग दे बसंती के सॉन्ग्स ने जहां उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड दिलवाया। वहीं 'तारे जमीं पर' के सॉन्ग 'तुझे सब है पता मेरी मां' के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड से नवाजा जा चुका है

एड गुरु से स्क्रिप्ट राइटर तक का सफर

आसान नहीं था यह सफर। बहुत मेहनत करनी पड़ी। भाग मिल्खा भाग का ही एग्जाम्पल ले लीजिए। मिल्खा जी जबर्दस्त इंसान हैं। उनके बारे में तो सबको पता है। फिर लोग उन पर बनी फिल्म क्यों देखने आएंगे? यह सोचकर मैं कई बार उनसे मिला। स्क्रिप्ट में भ्0 परसेंट यथार्थ लिखा और बाकी सब कल्पना है। जैसे मिल्खा और उनकी बहन वाले सीन ओरिजनल जबकि मिल्खा का थोड़ा सा लव-एंगल और गाने काल्पनिक हैं। सच कहूं तो इस फिल्म में इमेजिनेशन और क्रिएटिविटी न डालता तो भाग मिल्खा भाग पर क्89 मिनट की मूवी न बनती। बल्कि, महज 7 सेकेंड का विज्ञापन बनता।

सोर्स ऑफ इंस्पिरेशन

एड का जिंगल लिखना हो या फिर मूवी की स्क्रिप्ट और गाने। सबके लिए मेरी क्रिएटिविटी का कैनवास अलग-अलग साइज का होता है। जब मैं कविता या स्क्रिप्ट लिखता हूं तो उसका कैनवास बहुत बड़ा होता है। मगर, प्रोडक्ट एड के केस में यही कैनवास बहुत छोटा हो जाता है। तमाम बंदिशें होती हैं। सीमाएं बंध जाती हैं। मगर, इन सबका सोर्स ऑफ इंस्पिरेशन मेरी क्रिएटिविटी और इमेजिनेशन है। ऐसी पंचलाइन लिखनी होती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ें। मेरी कोशिश रहती है कि एड में देश और शहर की संस्कृति का जुड़ाव जरूर होना चाहिए। वरना उससे अटैचमेंट नहीं हो पाता।

सबसे बेहतर प्रमोटर कौन

एड व‌र्ल्ड बॉलीवुड एक्टर से लेकर क्रिकेटर, मॉडल और अब कार्टून्स के जरिए डिफरेंट प्रोडक्ट्स का प्रमोशन हो रहा है। मगर, कंज्यूमर को सबसे ज्यादा कौन प्रभावित करता है? थोड़ी देर सोचकर प्रसून ने कहा कि सबकी अपनी-अपनी इम्पॉर्टेस है। कार्टून जहां बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। वहीं बॉलीवुड स्टार्स और क्रिकेटर की अलग इम्पॉर्टेस है। सबकुछ प्रोडक्ट की आइडियोलॉजी और उसका पब्लिक से होने वाले जुड़ाव पर निर्भर करता है। कई एड तो ऐसे होते हैं, जिनमें कोई भी स्टार या जाना-पहचाना चेहरा स्क्रीन पर नहीं आता। फिर भी वो लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेता है।

नारे चुनाव नहीं जिताते

यह सही है कि इंडिया में अब पॉलिटिक्स भी एक बिग ब्रांड के रूप में डेवलप हो चुकी है। मगर, बदलते दौर में पॉलिटिकल पार्टियों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि सिर्फ नारों से चुनाव नहीं जीता जा सकता। पब्लिक के लिए पार्टी और उसके नेता की आइडियोलॉजी बहुत मायने रखती है। हमसे भी कई लीडर्स कॉन्टैक्ट करते हैं। उन्हें भी हम यही बताते हैं कि इमेज बिल्डिंग के लिए महज हवा-हवाई नारों से काम नहीं चलने वाला। ग्राउंड लेवल वर्क अहमियत रखता है।

सब कुछ सही नहीं है यहां

लोकसभा चुनाव से पहले पब्लिक के बीच जाकर 'मुद्दों' को तलाशती आई नेक्स्ट की मुहिम 'हैं तैयार हम' एक बेहतरीन इनीशिएटिव है। वोटर होने के नाते मुझे भी लगता है कि अपने देश को एक बड़े बदलाव की दरकार है। हर तरफ कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन है, एक केऑस सा है सबकुछ सही नहीं चल रहा है यहां। फीलिंग ऑफ इनसिक्योरिटी, अनिश्चितता सी छाई हुई है। देश और समाज में एक डिसिप्लिन की जरूरत है। आने वाले लोकसभा चुनाव देश की दशा और दिशा तय करने में महती भूमिका निभाएंगे।

फोर्थकमिंग प्रोजेक्ट्स

भाग मिल्खा भाग के बाद आमिर के साथ सीरियल 'सत्यमेव जयते' पर काम किया है। लास्ट टाइम के कम्पेरिजन में सीरियल का सेकेंड फेज आपको और भी ज्यादा पसंद आयेगा। अभी हमने भ् एपिसोड बनाये हैं। इन्हें मार्च में हर संडे को टेलीकास्ट किया जाना है। अभी इतना ही बता सकता हूं, आगे आप इसे खुद देखिए, कैसा बना है