- 20 फीसद से अधिक स्टोर्स पर नहीं हैं फॉर्मासिस्ट

- 1 साल 6 माह पहले जिनके लाइसेंस खत्म हुए वह रीन्यूअल को नहीं आए

- 85 हजार से ज्यादा फॉर्मासिस्ट रजिस्टर्ड

-ज्यादातर मेडिकल स्टोर्स में नहीं हैं फॉर्मासिस्ट

-एक फॉर्मासिस्ट के भरोसे अरबों की दवा सप्लाई करने वाली मंडी

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LUCKNOW: राजधानी लखनऊ में ही नहीं पूरे प्रदेश में मानकों को ताक पर रखकर मेडिकल स्टोर्स चलाए जा रहे हैं. करीब 20 फीसद से अधिक स्टोर्स में फार्मासिस्ट ही नहीं हैं तो बहुत से मेडिकल स्टोर बिना लाइसेंस ही चल रहे हैं. इसे फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) की लापरवाही कहें या मैनपॉवर की कमी, लेकिन इन सबका खमियाजा मरीजों को ही भुगतना पड़ रहा है. पहले भी कई बार नकली एंटीबायोटिक सहित अन्य दवाएं पकड़ी गई, लेकिन इन पर रोक नहीं लग पा रही है.

आठ साल से बिना लाइसेंस चल रहा था स्टोर

दो दिन पहले ही अमीनाबाद में एफएसडीए की टीम ने छापा मारकर सहारा मेडिकल स्टोर को पकड़ा था. करीब आठ साल से बिना लाइसेंस अमीनाबाद की दवा मंडी में चल रहा था. करीब एक से दो किमी. की दूरी पर ही एफएसडीए के ड्रग इंस्पेक्टर का दफ्तर है. फिर भी किसी को जानकारी नहीं हुई. सूत्रों के मुताबिक यह अकेला स्टोर नहीं है. ऐसे दर्जनों मेडिकल स्टोर राजधानी में संचालित हो रहे हैं जिनके पास न तो लाइसेंस है और न ही फॉर्मासिस्ट हैं.

कैंसिल होने के डर से नहीं करा रहे रीन्यूअल

फार्मासिस्ट एसोसिएशन की मानें तो शहर में आज भी करीब 20 फीसद मेडिकल स्टोर्स ऐसे हैं जिनमें फार्मासिस्ट नहीं हैं. वहीं बहुत से ऐसे मेडिकल स्टोर्स हैं जिनके पास वैलिड लाइसेंस ही नहीं है, लेकिन एफएसडीए अधिकारी समय पर इनकी जांच कर पाने में अक्षम हैं. एफएसडीए के अधिकारियों के अनुसार पिछले वर्ष से प्रदेश में लाइसेंसिंग सिस्टम ऑनलाइन कर दिया गया. ऐसे में एक ही फॉर्मासिस्ट के लाइसेंस पर एक से अधिक मेडिकल स्टोर्स चलने पर रोक लग गई. किसी फॉर्मासिस्ट के नाम पर कोई भी नया लाइसेंस या रीन्यूअल तभी होगा जब उसके नाम पर पहले से कोई लाइसेंस नहीं होगा. यदि पहले कहीं चल रहा है तो उसे कैंसिल कराना होगा. इसके लिए फॉर्मासिस्टों की भी यूनीक आईडी जारी की गई है. इससे फर्जीवाड़ा रुक गया, लेकिन इसके बाद से पिछले डेढ़ वर्ष में जिनके लाइसेंस समाप्त हुए वो रीन्यूअल कराने ही नहीं आए. अधिकारियों की मानें तो ड्रग इंस्पेक्‌र्ट्स की कमी का फायदा ये मेडिकल स्टोर वाले उठा रहे हैं.

टीन शेड तक में चल रहे मेडिकल स्टोर्स

बहुत से बड़े अस्पतालों में बिना लाइसेंस ही मेडिकल स्टोर्स चल रहे हैं. कई जगह पर टीन शेड में ही दुकानें चलाई जा रही हैं. इसके बावजूद एफएसडीए इन पर कार्रवाई कर पाने में अक्षम साबित हो रहा है.

रस्ट्रिक्टेड पर सभी दवाओं की सेल

एक अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में रस्ट्रिेक्टेड लाइसेंस दिया जाता है, जिसमें बिना फॉर्मासिस्ट के कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति चला सकता है, लेकिन इसमें पैरासीटामाल जैसी सामान्य कुल 14 प्रकार की दवाएं ही बेची जा सकती हैं, लेकिन इसके लाइसेंस पर मेडिकल स्टोर वाले सभी प्रकार की दवाएं बेच रहे हैं. बहुत से पुराने मेडिकल स्टोर्स के पास यही लाइसेंस है.

कोट-

अब फॉर्मासिस्टों की कोई कमी नहीं है. देश में करीब 12 लाख और यूपी में 85 हजार से ज्यादा फॉर्मासिस्ट रजिस्टर हो चुके हैं इसलिए बिना फॉर्मासिस्ट के स्टोर नहीं खुलने चाहिए. यह ड्रग एक्ट 1948 की धारा 42 उल्लंघन है. कहीं भी दवा वितरण हो या दवाओं का भंडारण हो फॉर्मासिस्ट होना अनिवार्य है.

डॉ. सुनील यादव, पूर्व चेयरमैन, फॉर्मेसी काउंसिल

कोट--

नकली दवाओं को रोकने के लिए समय समय रुटीन में जांच की जाती है. वितरण, निर्माण इकाई का निरीक्षण और सैंपल कलेक्ट किए जाते हैं. साथ ही नए लाइसेंस के लिए निरीक्षण और ब्लड बैंक की जांच और शिकायतों की जांचें की जाती हैं.

रमाशंकर

असिस्टेंट कमिश्नर (ड्रग), एफएसडीए