-अन्तरमंडलीय खिलाडि़यों को सुविधा के नाम पर हो रहा मजाक

-जनरल बोगी में सफर के बाद गंदे बिस्तर पर नींद लेना मजबूरी

BAREILLY:

खेल और खिलाडि़यों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार बड़े-बडे वादे करती है। अपेक्षा भी करती है कि खिलाड़ी मेडल भी लेकर आएं। अफसोस, सोने-चांदी का तमगा लेकर आने वाले इन खिलाडि़यों को सरकार चपरासी के बराबर भी नहीं आंकती है। यही वजह है कि जब अंतर मंडलीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए खिलाड़ी दूसरे शहरों में जाते है तों उन्हें भरपूर नींद के लिए एक अदद ढंग का बिस्तर भी नसीब नही हो पाता है। क्योंकि सरकार उन्हे डीए के नाम पर केवल चंद रुपए ही देती है।

खिलाड़ी को 50 तो चपरासी 195 रुपए

खिलाडि़यों को टीए डीए के नाम पर दी जाने वाली सुविधाओं की व्यथा चौंकाने वाली है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने 8 अक्टूबर के अंक में 'मेडल के लिए जनरल बोगी से दौड़' खबर प्रकाशित कर खिलाडि़यों के कठिनाई भरे सफर की सच्चाई को उजागर किया था। इसी क्रम में अब डीए यानि खिलाडि़यों के ठहरने की बात करें तो जनरल बोगी में थक हारकर पहुंचे खिलाडि़यों की गंदे बिस्तर पर नींद भी पूरी नही हो पाती है। क्योकि सरकार इनसे मेडल की उम्मीद तो रखती है, लेकिन उनके ठहरने के लिए डीए देने में कंजूसी कर जाती है। शर्मनाक तो यह है कि इन खिलाडि़यों को चपरासी बराबर भी सरकार नही समझती है। नगर निगम के चपरासी को डीए के तौर पर जहां 195 रुपए प्रतिदिन मिलते है। तो अंतर मंडलीय स्तर के खिलाड़ी को महज 50 रुपए मिलते है।

स्टेडियम में ठहरे तो 30 रुपए

खेल विभाग के अधिकारियों की माने तो अंतर मंडलीय प्रतियोगिताओं में आने वाले खिलाड़ी यदि स्टेडियम में ठहराए जाते है तो उनके लिए डीए महज 30 रुपए मिलते है। इतने में गद्दा, चद्दर और तकिया भी किराए पर नही मिल पाती है। ऐसे में, पुराने गंदे और फटे बिस्तर ही मिल पाते है। अधिकारियों की यह मजबूरी यदि सच है तो फिर सरकार की खिलाडि़यों से मेडल लाने की उम्मीद भी बेमानी है।

ट्रेन की जनरल बोगी में खिलाड़ी धक्का खाकर प्रतियोगिता में भाग लेने जाते हैं, लेकिन वहां सोने के लिए गंदे और फटे बिस्तर नसीब होते हैं, जिसकी बदबू के चलते नींद भी पूरी नहीं होती है। बड़ा खिलाड़ी बनने तक सब कुछ सहन करना हमारी मजबूरी है।

नैना कपूर, खिलाड़ी

जब भी कोई प्रतियोगिता होती है, तो अतिथि के रूप में आने वाले अफसर और राजनेता कहते हैं कि सरकार खेल और खिलाड़ी को बढ़ावा दिया जा रहा है। अफसोस हमें जनरल बोगी से धक्के खाकर जाना प्रतियोगिता में जाना पड़ता है, जहां सोने के लिए ढंग का बिस्तर भी नहीं मिलता है।

शिवा, खिलाड़ी

अपनी काबिलियत को निखारने के फेर में असुविधाओं को लड़ना हमारी आदत बन गई है। जिला और मंडल स्तर पर हम अपने खर्च से आते हैं। अन्तरमंडलीय खेल में सरकार टीए-डीए देती भी है, तो वह सुविधा के नाम पर छलावा ही है।

पिंकी गंगवार, खिलाड़ी

अन्तरमंडलीय प्रतियोगिताएं होती हैं, डीए कम होने की वजह से खिलाडि़यों को ठहरने की व्यवस्था करने में दिक्कतें होती हैं। जैसे-तैसे व्यवस्था की जाती है। वैसे टीए-डीए का नियम पुराना है। इसमें बदलाव के लिए हम लोग शासन को पत्र लिखेंगे।

लक्ष्मी शंकर सिंह, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी