- दो लोकसभा सांसद होने के बाद भी नहीं बदल पाई शहर की तस्वीर

- सांसदों ने सदन तक में नहीं उठाया मामला, न ही ग्राउंड पर हुई जांच

PATNA: पांच साल पहले दिखाया गया सपना अब दिखाने वाले और देखने वाले दोनों भूल गए हैं। एक बार फिर से नए सपने और विकास की कहानी सुनी-सुनायी जा रही है। इस बीच, बीते हुए पांच साल लौट कर नहीं आएंगे। अगर वह आता तो लोग एक बार फिर से उस सपने की हकीकत अपने सांसदों से पूछते और उन्हें आज की हकीकत से रूबरू करवाते, जिससे पटनाइट्स को आज भी परेशानी उठानी पड़ रही है। दो सांसद होने के बाद भी विकास के नाम पर सिर्फ कहानियां बनी और कुछ भी नहीं। संसद में यहां के सांसदों ने अपनी आवाज तो उठायी, पर ग्राउंड रियलिटी तक उसे पहुंचाने में नाकाम रहे। सांसद निधि की राशि अगर खर्च होती, तो भी सूरत कुछ और होती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नतीजतन पांच बड़ा मसला पांच साल बाद भी जनता की आवाज बनी हुई है। कैंडिडेट हंसते हुए उसे पूरा करने की उम्मीद दिला रहे हैं, लेकिन आपको जानकार हैरत होगा कि शहर की लाइफ लाइन ही जस की तस रुकी हुई है। सांसद इस पर कुछ भी नहीं बोल पा रहे हैं।

हवा में उड़ गया एयरपोर्ट का मसला

पिछले दो सालों में एयरपोर्ट को लेकर कई तरह के विवाद हुए। एयरपोर्ट हटाने का मसला सामने आया। जमीन की बात आई। इतने हंगामे और बयान के बाद भी सांसदों की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गए। इस मसले को ठीक करने के लिए एक सांसद ने सदन में मामला उठवाया, लेकिन उसका रिजल्ट नहीं निकला। आज भी पटनाइट्स इमरजेंसी लैंडिंग जैसी जोखिम का सहारा लेकर चल रहे हैं। न तो जमीन का मसला सुलझ पाया और न ही सिक्योरिटी की बात ही हो पायी।

लाइफलाइन टूटती रही, सांसद देखते रहे

बिहार की लाइफलाइन कहे जाने वाले गांधी सेतु की हालत दिन-ब-दिन खराब होती गयी। उसकी मरम्मती से लेकर कई तरह की बातें सामने आई। सांसद की ओर से कुछ खास कदम नहीं उठाया गया। लिहाजा, आज भी गांधी सेतु जाम और अपनी मरम्मती से बाहर नहीं निकल पाया है। इस वजह से हर आने-जाने वाले पैसेंजर्स की जान खतरे में रहती है, पर पाटलिपुत्रा और पटना साहिब के सांसद ने न तो आवाज उठायी और न ही एक बार देखने भी पहुंचे।

जाम से निपटने को कोई ठोस प्लान नहीं

पटनाइट्स की सुबह और शाम जाम में ही निकल जाती है। ऐसे में एक अदद जाम जैसी प्रॉब्लम से निपटने के लिए भी कभी भी दोनों सांसदों ने कोई खास बैठक तक नहीं की। पटनाइट्स की प्रॉब्लम को यूं ही नजरअंदाज करते रहे, जबकि इस शहर की सबसे बड़ी प्रॉब्लम जाम ही बनती जा रही है। अतिक्रमण को हटाने से लेकर सड़क चौड़ीकरण जैसे मसले पर सांसद की ओर से कोई ठोस कदम न उठाया गया और न ही अवेयरनेस कैंपेन ही चलवाया गया।

गंगा की सुध तक नहीं ली

पब्लिक के बीच कैंपेन लगाकर कभी भी पब्लिक की छोटी बड़ी प्रॉब्लम तक को सुनने की कोशिश नहीं की। सड़क, पीने का पानी आज भी दोनों संसदीय एरियाज में देखा जा रहा है। सप्लाय वाटर की हालत काफी खराब है। घरों में गंदा पानी पहुंच रहा है। वहीं गंगा की हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है, पर इसकी सुध भी सांसदों की ओर से नहीं लिया गया।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट का मतलब बाइक-कार

सांसदों ने अपने पांच साल में एक बार भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मसले पर कोई इनिशिएटिव नहीं लिया। नतीजतन, आज भी पुरानी और टूटी बसों पर जान जोखिम में डालकर लोग चल रहे हैं। बस स्टॉप पर गाडि़यां तक नहीं रुकती हैं। हालत तो यह है कि मेट्रो की बात सामने आयी तो वो भी बक्शे में बंद ही रह गया। अभी तक ग्राउंड पर किसी भी तरह की बातें सामने नहीं आयी।