नोट : डिजिटल में दो तस्वीरें ड्रेस सिलाई और ड्रेस वितरण के नाम से पड़ी हैं। इनका इस्तेमाल कर सकते हैं।

- महिलाओं को स्वरोजगार देने के लिए शासन की अनूठी पहल

- क्षेत्रीय महिलाओं से ही सिलवाई जाएगी बच्चों की स्कूल ड्रेस

प्राथमिक शिक्षा के साथ ही महिलाओं को रोजगार दिलाने की दिशा में शासन ने एक अनूठी पहल की है। किसी मोहल्ले या गांव के प्राथमिक स्कूल में जाने वाले बच्चों को दी जाने वाली स्कूल ड्रेस उसी मोहल्ले या गांव की महिलाओं से सिलवाई जाएंगी। इस कदम से महिलाएं तो मजबूत होंगी ही, बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी जागरूकता आएगी। शनिवार को शहर उत्तरी के विधायक रविंद्र जायसवाल ने माताओं द्वारा सिली गई ड्रेस की पहली खेप आराजी लाइन ब्लाक के तीन स्कूलों में वितरित भी की।

स्वयं सहायता समूहों को ट्रेनिंग

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत यह अनूठा प्रयोग किया जा रहा है। इसके तहत प्राथमिक स्कूलों में वितरित होने वाले स्कूल ड्रेस उसी गांव या क्षेत्र की महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को ऑर्डर देकर सिलवाए जाएंगे। जाहिर है क्षेत्र के स्कूलों में इन महिलाओं के बच्चे या परिवार के दूसरे बच्चे भी पढ़ते होंगे। एनआरएलएम के श्रवण सिंह बताते हैं कि इसके लिए 25-25 महिलाओं के चार समूहों को ट्रेनिंग भी दिलवाई गई है। इसके अलावा कई समूहों को ट्रेनिंग दिलाई जा रही है।

लोन भी मिला और काम भी

आराजी लाइन की एकता महिला ग्राम संगठन को स्कूल ड्रेस सिलाई का काम दिया गया। दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत सरकार ने इन्हें लोन भी दिया। और शिक्षा विभाग से सर्व शिक्षा अभियान के कन्वर्जेस के तहत इन्हें ड्रेस सिलाई का काम भी मिला। यही नहीं, स्वरोजगार योजना के तहत इन महिलाओं को पूरे साल किसी न किसी तरह का काम दिलाने का भी शासन ने भरोसा दिलाया है।

विधायक ने बांटी पहली खेप

विधायक रविंद्र जायसवाल ने शनिवार को आराजी लाइन ब्लॉक के तीन स्कूलों में 384 बच्चों को कुल 768 ड्रेस वितरित किया। खास यह रहा कि सभी ड्रेस उसी क्षेत्र की महिलाओं ने ही सिली थी। 200 रुपये की लागत वाली हर ड्रेस पर महिलाओं को 50 से 55 रुपये का फायदा होता है।

खास-खास

- 2 स्कूल ड्रेस देनी है सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चे को

- 200 रुपये लागत है एक स्कूल ड्रेस की

- 55 रुपये की कमाई होती है सिलाई करने वाली महिला को

- 768 स्कूल ड्रेस बांटे गए तीन स्कूलों में

- महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को दिया जा रहा है काम