300 मजदूर डेली यहां अपना श्रमदान देते
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AGRA: मंदिर के कंस्ट्रक्शन में लेबर की जेनरेशन तक बदल गई है। यहां लेबर की चौथी जेनरेशन काम कर रही है। यह कार्य अगस्त तक पूरा हो जाएगा। फिलहाल, समाधि स्थल एवं मुख्य गुम्बद पर कलश रखने का कार्य कंप्लीट हो चुका है। वर्तमान में करीब 250 से 300 मजदूर डेली यहां अपना श्रमदान देते है।मंदिर की नींव वर्ष 1904 में 52 कुओं पर रखी गई थी। वर्तमान में आ रही प्राकृतिक आपदाओं का अंदाजा आज से 114 साल पहले ही लगा लिया गया था। जिसकी वजह से मंदिर की नींव 60 फीट गहरी रखी गई है। 60 फीट गहरी खुदाई करके पत्थरों को अंदर डाला गया है। उसके बाद पिलर बनाए गए है। जिसपर मंदिर बना हुआ है।

1904 में शुरू हुआ था निर्माण

स्वामीबाग स्थित राधास्वामी मंदिर का निर्माण कार्य 1904 के अप्रैल माह में शुरू हुआ था। मंदिर का नक्शा इटली की एक कंपनी ने बनाया था। उस समय इस डिजाइन के दो लाख रूपए लगे थे। मंदिर का स्ट्रक्चर मॉडल बना कर रखा गया है। नक्शे एवं मॉडल के अनुरूप ही मंदिर का निर्माण कार्य वर्षो से चला आ रहा है।राधास्वामी मंदिर की यह भी खासियत है कि मंदिर के निर्माण कार्य में लगने वाला पैसा सब संतों के द्वारा स्वेच्छा दिया जा रहा है। तकरीबन हर साल निर्माण कार्य में सात करोड़ से ऊपर रूपया खर्च किया जाता है। जो कि किसी भी सरकारी कोष एवं चंदे पर आधारित नही है।

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मुख्य द्वार होगा आकर्षण

राधा स्वामी मंदिर की समाधि का कार्य पूरा हो चुका है। मंदिर का एंट्रेस गेट पर कार्य किया जा रहा है। जिसमें पांच द्वार बनेंगे। प्रवेश द्वार की चौड़ाई 120 एवं लंबाई 76 फुट की रखी गई है। प्रवेश द्वार से ही मंदिर की भव्यता दिखेगी। मंदिर में लगने वाले पत्थरों को राजस्थान के मकराना और अम्बा जी से मंगाया जाता है। उन पत्थरों को नक्काशी करके आकर्षण रूप शिल्पकारों द्वारा दिया जा रहा है। मंदिर के अंदर दीवारों एवं गुंबंदों की डिजाइन करविन, पच्चीकारी एवं इनले में की गई है।

मकराना और अम्बा जी से आ रहे पत्थर

करोड़ों साधकों की आस्था का प्रतीक राधास्वामी मंदिर का निर्माण कार्य अपने अंतिम पड़ाव पर चल रहा है।  मंदिर में लगे खंबे, दीवार, द्वार, खिड़कियों आदि में कारविन वर्क एवं इनले वर्क किया है। इसे बनाने में 100 वर्ष से ज्यादा का समय लगा है। खास बात यह है कि  पूरे मंदिर में कहीं भी जोड़ नही है। हर पत्थर को इस तरह फिट किया है कि समूचा मंदिर एक नजर आ रहा है। राधास्वामी मंदिर में पूरे मंदिर प्रांगण में कारविन और इनले वर्क किया गया है। पत्थरों पर उभरी हुई आकृतियां मंदिर की सुंदरता एवं उसे बेहद खास बना रही है।फर्श पर इनले वर्क किया गया है। जो देखने में रंगोली के स्वरूप का नजर आ रहा है।

जल में दिखेगा राधास्वामी मंदिर का अश्क
आध्यात्म और विज्ञान के संगम की गाथा रचने जा रहा स्वामीबाग में स्थित राधास्वामी मंदिर में इन दिनों निर्माण कार्य प्रगति पर है। आने वाले समय में मंदिर की सुंदरता को जल में प्रतिबिंब के रूप में भी देखा जा सकेगा। इसके लिए मंदिर के ठीक पीछे कमलकुंड बनाया जा रहा है। इसमें मंदिर का पूरा अश्क नजर आएगा। जो सुंदरता में चार चांद लगाएगा।

समाध के चारों ओर बनेगी नहर

राधास्वामी मंदिर के ठीक पीछे कमलकुंड बन रहा है। इसके आस-पास सुंदर गार्डन और पौधों को लगाया है। इसके जल में राधास्वामी मंदिर के भव्य स्वरूप का पूरा अश्क पानी में उतर आएगा। राधास्वामी मंदिर की मुख्य समाध के चारों ओर नहर बनाई जा रही है। नहर 18 फीट चौड़ी और सात फीट गहरी बनाई गई है। समाध को नमी प्रदान करने के लिए मंदिर को नहरों से घेर दिया गया है। जो समाध को शांति और शीतलता प्रदान करेंगी। राधास्वामी मंदिर के बैक साइड में बन रहे कमलकुंड को बनने मे तकरीबन एक साल का समय लगा है। इसे दो सौ से तीन सौ कारीगरों ने मिल कर बनाया है। कमल के आकार के कुंड में फाउंटेन भी लगाया गया है। आने वाले समय में इसे रात में रंगीन रोशनी के बीच चलाया जाएगा।

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महत्वपूर्ण तथ्य

१२
महीने में तैयार हुआ कमल कुंड
१००००
वर्ग फीट में बन रहा कुंड
३००
कारीगरों ने मिल कर बनाया है
०१
फाउंटेन भी बिखेरेगा भव्यता
०१
नहर समाध के चारों ओर रहेगी

स्वामी कुएं से जुड़ेगा कुंड

वर्षो पुराना स्वामी कुआं राधास्वामी मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित है। इसका जल प्रसाद के रूप में मठ आने वाले सत्संगियों को दिया जाता है। कुएं से सटकर नहरों को बनाया है। यह नहरें कमलकुंड पर आकर जुड़ रहीं है। नहरों में जल स्वामी कुएं से छोड़ा जाएगा। जल साफ रखने के लिए नहरों एवं कमलकुंड के जल को फिल्टर प्लांट से साफ कर दोबारा यूज में लाया जाएगा।

विश्व में दोहरी परत का होगा पहला गुंबद

स्वामीबाग स्थित राधास्वामी मंदिर की गुंबद विश्व की पहली गुबंद होगी जिसे दोहरी परत का बनाया जा रहा है। मंदिर की हर दीवार, पिलर, मीनार, दरवाजें और गुंबद स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। जो इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जाएगा। मुख्य गुंबद को बनाने में तीन साल से ज्यादा का समय लगा है। बिना किसी अत्याधुनिक उपकरणों के बीच मजदूर पिछले तीन साल से गुंबद बना रहे हैं।  गुंबद पर अब कलश चढ़ाया जा रहा है। राधास्वामी मंदिर का मुख्य गुंबद जमीन से 161 फीट ऊंचाई पर स्थित है। इसे दो परतों में डिजाइन किया गया है। इसमें एक अंदर की गुंबद है। एक बाहर की गुंबद है। दोनों के बीच 10 फीट का गैप छोड़ा गया है। इससे नीचे बने हॉल को हमेशा कुदरती रूप से ठंडा रखा जा सके।

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सुंदरता के साथ रोचक है इतिहास

समाध में बनी हर गुंबद, पच्चीकारी, फर्श, आर्किटेक्ट सभी की डिजाइन वर्षो पहले ही बनाई जा चुकी है। उन्ही मैप के आधार पर आजतक मंदिर में निर्माण कार्य किया जा रहा है। वर्ष 28 नवंबर 1939 में इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के संयुक्त प्रांतीय मेंबर इंजीनियरों की एक जमात समाध देखने के लिए राधास्वामी मंदिर आई थी। जिसमें करीब 25 इंजीनियर थे। उस समय लाला तोताराम इंजीनियर ने सबको समाध और समाध का मॉडल दिखाया था। उस समय सभी इंजीनियर ने मॉडल की बहुत तारीफ की थी और भविष्य में इसने विश्व की सुंदर इमारतों में इसके शामिल होने की बात कही थी। समाध का निर्माण व देखभाल सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल राधास्वामी सत्संग द्वारा की जाती है।

यह है समाध की खासियत

समाध के बरामदो के 24 खंभो के नीचे 25 कुएं है। प्रत्येक कुंआ पांच फुट छह इंच चौड़ा है।
चारों मीनारों के नीचे 4 कुए है। प्रत्येक कुआं दस फुट दस इंच चौड़ा है।
पूरब की ओर बड़े दरवाजों के कोनो के नीचे के 4 कुए है प्रत्येक कुंआ 8 फुट 4 इंच चौड़ा है।
उत्तर और दक्षिण की ओर मेन हॉल की दीवारों के नीचे 8 कुएं है। प्रत्येक कुआं 9 फुट चार इंच चौड़ा है।
पूरब और पश्चिम की ओर मेन हॉल  की दीवारों के नीचे 11 कुएं है प्रत्येक कुआं 6 फुट  6 इंच चौड़ा है।
 
सख्त जमीन मिलने तक खुदाई
मंदिर का निर्माण वर्ष 1904 में होना शुरू हुआ था। यमुना नदी के किनारे होने के कारण मंदिर का निर्माण रेतीली जमीन पर किया गया है। भव्य मंदिर की बुनियाद 50 फुट या करीब 17 गज गहरी रखी गई है। 50 फुट गहरा खोदकर मंदिर को 52 कुंओ पर खड़ा किया गया है।ताकि भारी भरकम मंदिर को पुख्ता मजबूती मिल सके। बताते है कि रेतीली जमीन होने के कारण जमीन को तब तब खोदना पड़ा जबतक सख्त जमीन नहीं निकल आई। सख्त जमीन पर 52 कुओं की नींव रखी गई। प्रत्येक कुएं के सिरे पर एक बुनियादी चबूतरा छह फुट लंबा, पांच फुट चौड़ा और ढाई फुट मोटे बड़े पत्थरों की दो क्रास लेयर या तहों का बनाया गया है।  हर कुएं के ऊपर बनाए गए चबूतरों पर दो तह वाली महराबें ढाई फुट मोटी बनाई गई है। सभी महराबों को मिलाकर एक विशाल दीवार का रूप दे दिया गया है। कुओं की दीवारें ईंट और चुने की बनी हुई है और कुओं के अंदर चूना और गिट्टी कूट-कूटकर भरा गया है।

मंदिर की सुंदरता जितनी भव्य है मंदिर का इतिहास भी उतना ही रोचक है. मंदिर से जुड़ा हर तथ्य आध्यात्म से जुड़ा हुआ है.
संजय कपूर, चेयरमैन स्वामीबाग

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