इस हमले में दूतावास में तैनात ईरानी सांस्कृतिक मामलों के अधिकारी इब्राहीम अंसारी की भी मौत हो गई है.

अल क़ायदा से जुड़े एक लेबनानी सुन्नी गुट अब्दुल्लाह आज़म ब्रिगेड्स ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है.

अधिकारियों का कहना है कि मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है. टीवी तस्वीरों में जली हुई कारें, लाशें और टूटी-फूटी इमारतें दिखाई गई हैं.

वहाँ से बीबीसी संवाददाता का कहना है कि इन धमाकों के ज़रिए ईरान और शिया चरमपंथी संगठन हिज़्बुल्लाह को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई है. हिज्बुल्लाह इस समय लेबनान की सीमा से सीरियाई विद्रोहियों को जाने वाले आख़िरी सप्लाई रास्ते को रोकने में लगा हुआ है.

आत्मघाती हमलावर

ईरान को लेबनानी शिया चरमपंथी गुट हिज़्बुल्लाह का समर्थक माना जाता है, जिसने बशर अल असद सरकार के समर्थन में अपने लड़ाकों को सीरिया भेजा था.

सीरियाई संघर्ष ने लेबनान के भीतर भी सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है.

बेरूत धमाकों में 'अल क़ायदा गुट' का हाथ

एसोसिएटेड प्रेस ने बताया है कि दूतावास के मुख्य गेट को उड़ा दिया गया है और तीन मंज़िला इमारत को काफ़ी नुकसान पहुंचा है.

एपी और हिज़्बुल्लाह टीवी चैनल अल-मनार ने कुछ स्रोतों के हवाले से कहा है कि पहला धमाका एक फ़िदायीन के ज़रिए किया गया जबकि दूसरा एक कार धमाका था जिसने ज़्यादा नुक़सान पहुंचाया.

हालांकि इस बात की सरकारी तौर पर तसदीक नहीं की गई है.

पहले भी हुए हमले

दक्षिण बेरूत में ईरानी दूतावास के आसपास के इलाक़े को हिज़्बुल्लाह का गढ़ माना जाता है. इस पर पिछले कुछ महीनों में कई बार हमले हो चुके हैं.

लेबनान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी एनएनए के मुताबिक़ कार्यकारी प्रधानमंत्री नजीब मिकाती ने इन हमलों को ‘कायरतापूर्ण चरमपंथी कार्रवाई’ बताया है.

उन्होंने कहा, "इन धमाकों का मक़सद लेबनान में हालात को बिगाड़ना है और अपना संदेश देने के लिए लेबनीज़ ज़मीन का इस्तेमाल करना है."

ईरान और शिया चरमपंथी गुट सीरियाई सरकार के प्रमुख समर्थक हैं, जो फ़िलहाल लेबनान की सीमा से लगे सीरियाई विद्रोहियों का सप्लाई रूट कटने से रोकना चाहते हैं.

इससे पहले 15 अगस्त को दक्षिण बेरूत में हुए एक धमाके में 27 लोगों की मौत हो गई थी.

माना जाता है कि इस धमाके के ज़रिए हिज़्बुल्लाह के विरोधी एक सुन्नी मुस्लिम धर्मनेता को निशाना बनाने की कोशिश की गई थी. हालांकि धार्मिक नेता बच गए थे.

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