कानपुर। अलेग्जेंडर फ्लेमिंग एक स्कॉटिश चिकित्सक सह वैज्ञानिक थे। उन्होंने पेंसिलिन की खोज के लिए मान्यता प्राप्त की थी। बता दें कि अलेग्जेंडर ने आज ही के दिन यानी कि 28 सितंबर, 1928 को 'पेंसिलिन' नाम के दवा की खोज की थी। अलेग्जेंडर ने कभी भी पेंसिलिन की खोज में अपना श्रेय नहीं लिया। वे शुरू से अंत तक यही कहते रहे कि ये दवा मेरी खोज नहीं बल्कि कुदरत की देन है। पेंसिलिन, जो एक एंटीबायोटिक दवा है, इसकी खोज के पीछे भी एक कहानी है। आइये उसके बारे में जानें।

पहले की लाइसोइज्म की खोज
दरअसल, अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, पहला विश्व युद्ध खत्म होने के बाद फ्लेमिंग सेना के मेडिकल कोर में बतौर कप्तान कार्यरत थे। उसी दौरान, उन्होंने देखा कि उनके ज्यादातर सैनिक युद्ध में हमले के बाद घावों से कम और संक्रमण से अधिक मर रहे हैं। ये इन्फेक्शन ऐसा था, जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। इस संक्रमण को सिर्फ एंटीसेप्टिक्स से खत्म किया जा सकता था, जो अक्सर ज्यादा नुकसान करते थे। एक इंटरव्यू में फ्लेमिंग ने गहरे घावों में एनारोबिक बैक्टीरिया की उपस्थिति के बारे बताया, जो एंटीसेप्टिक्स के बावजूद बढ़ गए थे। शुरू में, उनके शोध को स्वीकार नहीं किया गया लेकिन फ्लेमिंग ने लगातार अपना रिसर्च जारी रखा और 1922 में, उन्होंने लाइसोइज्म की खोज की, जो कमजोर बैक्टीरियारोधी गुणों वाला एंजाइम था।

अग्रजेल छिड़कने पर बैक्टीरिया साफ
इतिहास के मुताबीक, ठंड से संक्रमित होने पर, फ्लेमिंग ने अपने कुछ नासोफैरेनजील म्यूकस को पेट्री डिश में ट्रांसफार कर दिया। इसके बाद उसे मेज पर रखकर करीब दो सप्ताह तक भूल गए। उस समय, बैक्टीरिया की कई उपनिवेशों में वृद्धि हुई और बढ़ी। हालांकि, जिस क्षेत्र में म्यूकस लगाया गया था वह ठीक हो गया था। आगे की जांच के बाद, फ्लेमिंग ने म्यूकस में एक पदार्थ की उपस्थिति की खोज की, जो जीवाणु वृद्धि को रोकती थी और उसने इसे lysozyme नाम दिया। इसके बाद 1928 में, फ्लेमिंग ने आम स्टैफिलोकोकल बैक्टीरिया से जुड़े प्रयोगों की एक सीरीज शुरू की। फ्लेमिंग ने पाया कि अग्रजेल छिड़कने के बाद मोल्ड कालोनीज के नजदीक में बैक्टीरिया खत्म हो रहे थे। फिर उसके जरिये एक और एंटीबायोटिक दवा तैयार किया और उसे पेंसिलिन का नाम दिया।

1945 में मिला नोबेल पुरस्कार
फ्लेमिंग ने अपनी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए। 1928 में, वह सेंट मैरीज़ में बैक्टीरियोलॉजी के प्रोफेसर बने। वह 1943 में रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गए और 1948 में वे लंदन विश्वविद्यालय में बैक्टीरियोलॉजी के एमेरिटस प्रोफेसर के स्तर तक पहुंचे। 1945 में फिजियोलॉजी/मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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