RANCHI : रिम्स में अब हर एक मरीज का रिकॉर्ड ऑनलाइन रखा जाएगा। कौन सा मरीज किस वार्ड में एडमिट है? किस बीमारी से वह ग्रसित है? कौन डॉक्टर उसका इलाज कर रहे हैं, ये तमाम जानकारी एक क्लिक कर स्क्रीन पर हासिल की जा सकेगी। इसके लिए हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से मरीजों का डेटा बेस तैयार किया जा रहा है। इससे यह भी पता चल सकेगा कि किस बीमारी के कितने मरीजों का इलाज रिम्स में किया गया। इससे न सिर्फ बीमारियों को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी, बल्कि पढ़ाई व रिसर्च कर रहे मेडिकोज को भी विशेष फायदा होगा। डेटा बेस तैयार करने के लिए रिम्स के प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसीन डिपार्टमेंट ने इसका प्रस्ताव दिया है।

सेंट्रल को भेजा जाता प्रस्ताव

राजेंद्र इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में हर साल 150 एमबीबीएस सीटों पर मेडिकोज का एडमिशन होता है। इसके अलावा एमबीबीएस कर चुके स्टूडेंट्स का पीजी में भी एडमिशन होता है। इस दौरान स्टूडेंट्स छोटे-मोट रिसर्च भी करते है। जिसके लिए उन्हें प्रबंधन की ओर से फंड भी उपलब्ध कराया जाता है। वहीं बड़ी बीमारियों के लिए सेंट्रल को प्रस्ताव भेजा जाता है। वहीं सेंट्रल से फंड भी उपलब्ध करा दिया जाता है।

आसानी से मिल जाएगा ट्रीटमेंट चार्ट

हॉस्पिटल में हर दिन इलाज के लिए 1500 से दो हजार मरीज ओपीडी में पहुंचते है। वहीं, इनडोर में भी लगभग इतने ही मरीजों का इलाज होता है। इसमें हर तरह के मरीज शामिल होते है। लेकिन, हॉस्पिटल में आने वाले सभी मरीजों का रिकॉर्ड ही नहीं है। चूंकि, कई बार डॉक्टर मरीजों का ट्रीटमेंट चार्ट नहीं देते है तो कभी ट्रीटमेंट चार्ट की इंट्री ही नहीं हो पाती। इस चक्कर में बीमारी तो दूर मरीजों का भी रिकॉर्ड निकालना मुश्किल होता है। लेकिन डेटा बेस तैयार होने के बाद ऐसी परेशानियों से निजात मिल जाएगी।

मरीज व बीमारियों का रहेगा रिकॉर्ड

रिम्स में इलाज कराने के बाद मरीज चले जाते हैं। लेकिन, हॉस्पिटल में आज भी यह रिकार्ड नहीं कि किस बीमारी के कितने मरीज यहां आए। सिर्फ एक एवरेज के अनुसार बता दिया जाता है कि इतने मरीज आए है। अगर एक्युरेट फिगर की बात करें तो रिम्स प्रबंधन के पास इलाज के लिए आने वाले मरीजों की संख्या के अलावा कोई रिकॉर्ड नहीं है। लेकिन, अब बीमारी के हिसाब से मरीजों का रिकार्ड होगा तो इससे डिपार्टमेंट को काम करने में परेशानी नहीं होगी।

मेडिकोज को पढ़ाई व रिसर्च में फायदा

रिम्स में मरीजों का डेटा बेस तैयार होने का मेडिकोज को भी खासा फायदा होगा। पढ़ाई व रिसर्च के दौरान डेटा से वे ये जान सकेंगे कि किस मरीज को किस वजह से कौन सी बीमारी हुई। उसका किस तरह ट्रीटमेंट किया गया और कौन-कौन सी मेडिसीन का इस्तेमाल किया गया। इससे न सिर्फ उनका नॉलेज बढ़ेगा, बल्कि वे मरीजों का इलाज बेहतर तरीके से कर पाएंगे।