सेवा बहाली सहित बकाया वेतन देने का निर्देश

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विभागीय जांच से बचने के लिए शार्टकट अपना कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दी जा सकती। बिना ठोस तथ्य के यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि कर्मचारी अनुपयोगी सूखी लकड़ी की तरह हो गया है और उसकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध है। कोर्ट ने कहा हो सकता है, शुरुआत में कर्मचारी ने लापरवाही अनियमितता बरती हो और बाद में अपने को सुधार लिया हो और यदि याची की सेवा पंजिका में 10 साल में 7 साल की प्रविष्टि ही नहीं की गयी। जो प्रतिकूल प्रविष्टि थी उस पर अधिकरण ने रोक लगा रखी है। आपराधिक केस में कोर्ट से बरी हो चुका है तो ऐसे कर्मी को सूखी लकड़ी की तरह नहीं माना जा सकता। वह भी तब जब स्क्रीनिंग कमेटी के सामने सारे तथ्य रखे ही न गये हों।

102 निरीक्षकों की जांच हुई

कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के आबकारी इंस्पेक्टर रिजवान अहमद की अनिवार्य सेवा निवृत्ति को रद करते हुए सेवा बहाली का आदेश दिया है। साथ ही यदि याची ने इस दौरान अन्यत्र काम न किया हो तो बकाये वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर तथा जस्टिस सीडी सिंह की खण्डपीठ ने रिजवान अहमद की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता डीसी द्विवेदी ने बहस की। याची का कहना था कि विभागीय स्क्रीनिंग कमेटी ने 102 निरीक्षकों की जांच की। याची की सत्यनिष्ठा संदिग्ध करार देते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति की संस्तुति की। जिस पर उसे सेवानिवृत्त कर दिया गया। एकलपीठ ने याचिका खारिज कर दी तो अपील दाखिल की गयी थी।

छह सालों की इंट्री नहीं

याची की 10 साल की सेवा पंजिका पर विचार किया गया। एक प्रतिकूल प्रविष्टि भी 6 सालों की इंट्री नहीं थी। बाद में अच्छी प्रविष्टि थी। फिर भी उसे उपयुक्त नहीं पाया गया। प्रतिकूल प्रविष्टि पर अधिकरण ने रोक लगा रखी है। याची के घर से भारी मात्रा में शराब की बरामदगी की एफआईआर पर कोर्ट ने उसे बरी कर दिया। विभागीय जांच में आरोप सिद्ध नहीं हुए। इन तथ्यों को कमेटी के सामने नहीं रखा गया। याची का कहना था कि विभाग द्वारा इंन्ट्री न करने की उसे सजा नहीं मिल सकी। बाद की प्रविष्टि में कार्य संतोषजनक व अच्छा पाया गया है। इस पर कोर्ट ने याची के खिलाफ कार्यवाही रद कर दिया है।