-हरहुआ के आयर गांव में 18 बच्चें कुपोषण के शिकार

-गरीबी और मुफलीसी में छिन रहा बचपन

केस-1

गांव आयर, नाम प्रदीप, उम्र 3 साल, वजन 9 किग्रा 275 ग्राम, शारीरिक स्थिति कुपोषित।

केस-2

गांव आयर, नाम आकाश, उम्र 2 साल एक माह, वजन 7 किग्रा 800 ग्राम, शारीरिक स्थिति अति कुपोषित।

केस-3

गांव आयर, नाम रीना, उम्र 3 साल 10 माह, वजन 9 किग्रा 450 ग्राम, शारीरिक स्थिति कुपोषित।

केस-4

गांव आयर, मुसहर बस्ती, नाम अतुल, उम्र 3 साल 10 माह, वजन 10 किग्रा 650 ग्राम, शारीरिक स्थिति कुपोषित।

यह चार केस बनारस के हरहुआ ब्लॉक स्थित उस आयर गांव की तीन बस्तियों के हैं। यहां एक दो नहीं कुल 18 बच्चें कुपोषण के शिकार है। यह हम नहीं राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के आंकड़े कह रहे हैं। वैसे तो जिले में ऐसे कई गांव हैं लेकिन यह गांव खास इसलिए है कि इसको कुपोषण से मुक्त करने के लिए जिले के डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट (डीएम) ने गोद लिया था। लेकिन अभी इस गांव के नौनिहालों की हालत क्या है? ये आप खुद ही देख और समझ भी लिजिए। सरकार को गोद लिए गांव की बेहतर तस्वीर दिखाने वाले अफसरों की पोल खोलने के लिए यह गांव की असली तस्वीर काफी है।

बदल गया गांव

सरकार की योजना के तहत जिले 47 प्रशासनिक अफसरों ने 94 गांवों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए गोद लिया है। इस योजना के तहत गोद लिए गांव को कुपोषण से मुक्त कर किसी अन्य गांव को गोद लेना था। उन्हीं में से एक है आयर गांव। इस गांव को तत्कालीन डीएम विजय किरण आनंद ने गोद लिया था। लेकिन नए डीए के आने के बाद गोद लिया गांव भी बदल गया। जिसकी वजह से यहां कुपोषण अभी भी फल-फूल रहा है।

नौ बच्चे अतिकुपोषित

एक रिपोर्ट के मुताबिक हरहुआ ब्लॉक के आयर गांव की मुसहर बस्ती, आयर खास व नई बस्ती में कुल के 152 बच्चों में 18 बच्चे कुपोषित हैं। इसमें मुसहर बस्ती के नौ बच्चे अतिकुपोषित हैं। इन बच्चों के अभिभावकों की माली स्थिति ठीक नहीं है। जिसकी वजह से न तो बच्चों की देखरेख हो पाती है और न ही भर पेट खाना मिल पाता है।

नहीं जाते एनआसी सेंटर

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल ऑफिसर का कहना है कि बच्चे अतिकुपोषित हैं फिर भी परिजन उन्हें डीडीयू में बने एनआरसी सेंटर में एडमिट कराने के लिए राजी नहीं होते। अभिभावकों का कहना है कि वे भट्टे पर मजदूरी कर किसी तरह घर चलाते हैं, अगर एक बच्चे को सेंटर में एडमिट करा देंगे तो अन्य का क्या होगा। ऐसी ही दलील सभी परिजनों की है।

इस गांव में कुपोषण खत्म करने के लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है। लेकिन बच्चों के परिजन आर्थिक स्थिति खराब होने का हवाला देते हुए एनआरसी सेंटर जाने से इनकार कर रहे हैं।

मंजू वर्मा, प्रभारी डीपीओ